सीट ना मिलने का गम या 2027 की बार्गेनिंग, ओपी राजभर का तेजस्वी प्रेम क्या कहता है?

सुभासपा प्रमुख और योगी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने तेजस्वी यादव की तारीफ कर रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में ये चर्चाएं शुरू हो गई हैं कि ओम प्रकाश राजभर की मांगे बीजेपी ने नहीं पूरी कीं तो वह एक बार फिर अपना पाला बदल सकते हैं.

ओमप्रकाश राजभर ( फाइल फोटो) Image Credit:

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों ओम प्रकाश राजभर को लेकर चर्चाएं गर्म हैं. योगी सरकार में मंत्री रहते हुए भी वे तेजस्वी यादव की तारीफ कर रहे हैं. साथ ही वह बीजेपी पर यह तंज भी कसते नजर आ रहे हैं कि पांच-पांच मुख्यमंत्री, 80 मंत्री और पूरी केंद्र सरकार एक लड़के से लड़ रही है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ओम प्रकाश राजभर क्या चाहते हैं.

सूत्रों के मुताबिक ओपी राजभर ने बिहार चुनाव से पहले NDA में 25 से 30 सीटों की मांग रखी थी. लेकिन उनको मना कर दिया गया था, अब वही सीटें “इगो” बन चुकी हैं. राजभर ने 27 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए और NDA को हराने की बात करने लगे. भले ही नतीजा कुछ भी हो, लेकिन मेसेज साफ है कि मुझसे पंगा मत लो, मैं खेल बिगाड़ भी सकता हूं और बना भी सकता हूं.

तेजस्वी से ‘प्रेम’ या स्ट्रैटेजी?

राजभर का तेजस्वी प्रेम कोई नया नहीं. अब वे खुलेआम कह रहे हैं कि अगर ज्यादा वोटिंग हुई तो तेजस्वी की सरकार बनेगी. मैंने गूगल पर चेक किया है. राजनीतिक जानकार मानते हैं, बिहार बस बहाना है, असल टारगेट 2027 का यूपी है. पूर्वांचल की लगभग 20 विधानसभा सीटों पर राजभर समाज निर्णायक भूमिका रखता है. घोसी, बलिया, मऊ, गाजीपुर और आजमगढ़ जैसे इलाकों में राजभर की एक आवाज वोटों का रुख बदल सकती है.

2019 की स्क्रिप्ट दोबारा?

2019 में भी ओपी राजभर ने BJP से बगावत की थी फिर 2022 में वापसी की. अब फिर वही स्क्रिप्ट दोहराई जा रही है. 2024 लोकसभा में उन्होंने 7 से 10 सीटों की मांग की थी. लेकिन भाजपा नहीं मानी. इस बार मांगें और बड़ी हैं. ओमप्रकाश राजभर की लिस्ट में OBC आरक्षण कोटे में अति-पिछड़ों का हिस्सा बढ़ाना से लेकर 2027 में 20–25 विधानसभा सीटें और डिप्टी CM या राज्यसभा सीट के पैकेज की डिमांड है.

बिहार की वोटिंग और पूर्वांचल की चिंता

बिहार में 68% वोटिंग ने सबको चौंकाया है. राजभर का दावा है कि ज्यादा वोटिंग मतलब राजद की जीत. ये बयान सिर्फ बिहार नहीं यूपी के वोट बैंक को संकेत देने वाला है. अगर बिहार में NDA कमजोर होता है, तो उसका मनोवैज्ञानिक असर यूपी के चुनावी मूड पर पड़ सकता है.

अब आगे क्या?

ओमप्रकाश राजभर एक बार फिर 2025–26 में NDA से दूरी बना सकते हैं. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव पहले से ही दरवाजा खुला रखे हुए हैं. 2027 की राह पर राजभर ने अपनी दुकान पहले ही सजा ली है. सवाल बस इतना है यह बिहार चुनाव के दौरान और बाद में ओम प्रकाश राजभर का यह रूख बिहार में सीटें ना मिलने का सिर्फ गम है या फिर 2027 विधानसभा चुनाव के लिए अपनी बार्गेनिंग डील को और मजबूत करने की तैयारी है.