इन 3 मंदिरों में दर्शन से पूरी होती है विंध्याचल यात्रा, देखें त्रिकोण परिक्रमा की अद्भुत तस्वीरें

विंध्याचल धाम में मां विंध्यवासिनी के साथ मां काली, मां अष्टभुजा का त्रिकोण परिक्रमा करना जरूरी होता है. माना जाता है कि जब तक आप तीनों देवियों का दर्शन नहीं कर लेते हैं तब तक आपकी विंध्याचल धाम की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है.

शारदीय नवरात्र की शुरुआत आज यानी 22 सितंबर से हो गई है. ऐसे में देशभर के मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है. नवरात्र के पहले दिन देवी मां के शैलपुत्री स्वरूप दर्शन-पूजन किया जाता है मिर्जापुर के विध्यांचल धाम में भी मंगला आरती के बाद से ही मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए लोग लंबी कतारों में लग रहे हैं.
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विंध्याचल धाम का एक अहम महत्व है. यहां दर्शन करने वालों भक्तों को इच्छा, क्रिया और ज्ञान की प्राप्ति होती है. इच्छा की देवी मां विंध्यवासिनी, क्रिया की देवी मां काली और ज्ञान की देवी मां अष्टभुजा हैं. यहां पर आकर दर्शन करने से सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. नवरात्रि में यहां आने वाले भक्तों की संख्या में रिकॉर्डतोड़ इजाफा होता है. देवी मां के दर्शन के लिए रात से ही श्रद्धालु लंबी लाइनों में लग जाते हैं. नवरात्रि के खास मौके पर पूरे मंदिर को झालरों और रंग-बिरंगे फूलों से सजाया गया है.
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धर्माचार्य मिट्ठू मिश्रा कहते हैं कि नवरात्र में विंध्यवासिनी मां का दर्शन करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. जब तक मां विंध्यवासिनी के साथ मां काली, मां अष्टभुजा का त्रिकोण परिक्रमा का दर्शन नहीं कर लेते हैं तब तक भक्तों की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है. त्रिकोण दर्शन करने से असंतुलित मानव भी संतुलित हो जाता है. बता दें कि विंध्याचल धाम 51 शक्तिपीठों में से एक है.
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विंध्याचल धाम में 3 देवियां वास करती हैं. पहली मां विंध्यवासिनी को इच्छा की देवी कही जाती हैं. इन्हें लक्ष्मी की देवी भी कहा जाता है. दूसरी देवी मां काली हैं जो खिचरी मुद्रा में ऊपर मुंह खुले हुए विराजमान हैं. ऐसे भक्त जो विकास से ग्रसित होते हैं वे महाकाली के पास आकर तंत्र पूजा के माध्यम से पूजा करते हैं तो देवी उन्हें विकारों से मुक्त कर देती हैं. इसलिए इन्हें क्रिया की देवी कहा जाता है. तीसरी देवी मां अष्टभुजा हैं.
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पुराणों के अनुसार जब देवकी के आठवें गर्भ से भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो कंस से बचाने के लिए वसुदेवजी ने कृष्ण को गोकुल भेज दिया और उनकी जगह एक कन्या को जन्म के बाद कंस के पास ले गए. जब कंस ने उस कन्या को मारने का प्रयास किया तो वह योगमाया के रूप में प्रकट हो गईं और कंस के हाथों से छूटकर सुरक्षित अष्टभुजा पहाड़ पर आकर विराजमान हो गईं. यहां से उन्होंने भक्तों का कल्याण करना शुरू कर दिया. इन्हें ज्ञान की देवी भी कहा जाता है.
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काशी और प्रयागराज के मध्य बसे मिर्जापुर के विंध्याचल धाम में पहुंचने के लिए रेल और बस के साथ ही हवाई मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है. दिल्ली-हावड़ा रेलवे रूट से आने वाली सभी ट्रेनें नवरात्र में विंध्याचल धाम रुकती हैं. इसके अलावा आप बस के माध्यम से भी आराम से विंध्याचल पहुंच सकते हैं.
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विंध्याचल धाम में नवरात्र मेले को लेकर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए तीन सुपर जोन, 10 जोन और 21 सेक्टर में विभाजित किया गया है. सुरक्षा के लिए भारी संख्या में अधिकारी और पुलिस बल लगाई गए हैं. सीसीटीवी और सिविल ड्रेस में निगरानी की जा रही है. गंगा घाट पर बैरिकेडिंग की गई है इसके साथ ही फ्लड पीएसी की भी ड्यूटी लगाई गई है.
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