श्रीयंत्र पर स्थापित है देवी का यह इकलौता शक्तिपीठ, महाभारत से जुड़ी है कहानी

ललिता देवी मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा शक्ति पीठ है, जो पूरी तरह सर्व सिद्धि वाहक श्री यंत्र पर आधारित है. यहां माता के साथ-साथ श्रीयंत्र भी पूजे जाते हैं. इसके अलावा इस शक्तिपीठ का एक कनेक्शन महाभारत काल से भी है.

शारदीय नवरात्रि को देखते हुए इस समय देशभर के देवी मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ आया है. प्रयागराज के ललिता देवी मंदिर में माता के दर्शन के लिए भारी भीड़ जुट रही है.यहां देवी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी रूप में विद्यमान हैं. इस जगह माता सती के दाहिने हाथ की 3 उगलियां गिरी थी. यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में विशेष स्थान रखता है.
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ललिता देवी मंदिर इकलौती ऐसी पीठ है जहां दस महाविद्याओं में अंतिम व परम सिद्धि के वाहक श्री यंत्र पर अवस्थित है .इन्हीं विशेषताओं के चलते ही ललिता देवी धाम में देवी के दर्शन व पूजा-अर्चना के लिए नवरात्र में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. माता का पूजन अर्चन करने वाले भक्तों की सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
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कालिंदी के तट पर स्थित शक्ति पीठ ललिता देवी में अष्टधातुओं, पंचामृत और फूलों से देवी का श्रृंगार किया जाता है. जम्मू के वैष्णो देवी धाम के बाद यह दूसरी ऐसी शक्तिपीठ है जहां देवी की एक साथ तीन रूपों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूप में पूजा की जाती हैं. परम लालित्य और अपूर्व सौन्दर्य की वजह से देवी के इन रूपों को ललिता का नाम दिया गया है.
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मुख्य पुजारी शिव मिश्रा के मुताबि शक्तिपीठ ललिता देवी धाम दुनिया का इकलौता ऐसा शक्ति पीठ है, जो पूरी तरह सर्व सिद्धि वाहक श्री यंत्र पर आधारित है. मंदिर की मुख्य इमारत श्रीयंत्र के स्वरुप में है. यहां की दीवारों पर भी यह जगह-जगह नजर आती है. ललिता धाम में त्रिपुर सुन्दरी में विराजमान देवी के चरणों में भी 108 श्रीयंत्र अर्पित है. देवी के दरबार में आने वाले साधक एवं श्रद्धालु श्रीयंत्रों पर सिन्दूर, धूप, घी और पुष्प चढाकर माता से धन-धान्य और ऐश्वर्य प्राप्ति की कामना करते हैं.
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श्री यंत्र की साधना दस महाविद्याओं में अंतिम व सबसे प्रमुख होती है. इसे शक्ति का वाहक और वैभव की देवी लक्ष्मी का वाहक माना जाता है. मान्यता है कि इसकी अभिमंत्रित साधना भक्तों के दारिद्रय दूर कर उनके यहां लक्ष्मी का पदार्पण कराती है. साथ ही ऐश्वर्य, संतान ज्ञान व शक्ति भी प्रदान करती है. शक्ति की देवी भगवती के धाम ललिता मंदिर में जगह-जगह स्थापित यह श्रीयंत्र भी मां के साथ ही पूजे जाते हैं.
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मंदिर परिसर में ही एक प्राचीन कूप भी है जिसे पांडव कूप कहा जाता है. मान्यता है कि महाभारत काल में लाक्षाग्रह से बचने के बाद पांडवों ने तीन दिनों तक देवी के इसी धाम में शरण लेकर मां ललिता से अपनी रक्षा और विजय का आर्शीवाद प्राप्त किया था. युद्ध जीतने के बाद पांडवों ने यहां वापस आकर उत्सव भी मनाया था.
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ललिता देवी धाम में देवी भगवती के 51 विग्रहों के चित्रों का अनूठा संग्रह भी है, जो यहीं से सभी शक्तिपीठों के दर्शन श्रद्धालुओं को कराता है. माना जाता है कि ललिता धाम में शीश नवाजे बिना तीर्थराज प्रयाग की धर्म यात्रा भी अधूरी मानी जाती है. ऐसे में माना जाता है कि अगर आप प्रयाग की यात्रा पर हैं तो ललिता देवी मंदिर पहुंचकर माता का दर्शन जरूर करें.
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