काशी के स्वयंभू शिवलिंग ‘मार्कण्डेय महादेव’, जहां सावन में पूजा करने से दूर होती है परेशानी – TV9 Uttar Pradesh
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काशी के स्वयंभू शिवलिंग ‘मार्कण्डेय महादेव’, जहां सावन में पूजा करने से दूर होती है परेशानी
वैसे तो पूरे देश में भगवान शिव के अनेकों रूप हैं और सभी शिवलिंग की अपनी अपनी मान्यता है, लेकिन काशी में एक ऐसा स्वयंभू शिवलिंग है, जहां दर्शन करने के लिए भक्त देश से ही नही बल्कि विदेशों से भी आते हैं. ऐसी कई मान्यताएं हैं जिसकी वजह से लोग पूरी श्रद्धा के साथ 'मार्कण्डेय महादेव' के दर्शन करते हैं. इस शिवलिंग से जुड़ी और क्या- क्या मान्यताएं हैं, आपको बताते हैं.
काशी के कैथी में महादेव का एक ऐसा स्वरुप भी है, जिनके दर्शन के लिए देश और दुनियां के अलग अलग हिस्सों से लोग पहुंचते हैं.पौराणिक मान्यता है कि मार्कण्डेय महादेव अकाल मृत्यु को टालने वाले और पुत्र रत्न देने वाले महादेव के स्वरुप हैं.
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वैसे तो यहां सालभर भक्तों की भीड़ दिखाई देती है लेकिन सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु अपनी मनकोमानाएं लेकर यहां आते हैं. भक्तों का कहना है सावन में बाबा के दर्शन करने से विशेष लाभ होता है.
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वाराणसी के कैंट स्टेशन से करीब 28 किलोमीटर दूर कैथी स्थित ‘मार्कण्डेय महादेव’ गंगा और गोमती नदियों के संगम पर विराजमान हैं. ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग को किसी ने स्थापित नही किया बल्कि वे यहां खुद से प्रगट हुए हैं यानी स्वयंभू शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं.
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मंदिर के पुजारी रोहित कृष्ण प्रेमेश बताते हैं कि मार्कण्डेय महादेव को लेकर पुराणों में जो वर्णन है उसके अनुसार ऋषि मृकण्ड और उनकी पत्नी मनस्विनी के पुत्र मार्कण्डेय के बारे में ज्योतिषियों ने बताया था कि इस बालक की 14 वर्ष की अवस्था में ही मृत्यु हो जाएगी.
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इसके बाद मार्कण्डेय के पिता ने गंगा-गोमती के संगम पर रेत से शिव विग्रह बनाया और उनकी पूजा करने लगे. मार्कण्डेय ऋषि के पिता तपस्या में लीन हो गए. जब बालक मार्कण्डेय ऋषि 14 साल के हो गए थे. जैसे ही यमराज उनका प्राण हरने चले वैसे ही भगवान शिव प्रकट हो गए.
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भगवान शिव को देखकर यमराज नतमस्तक हो गए. भगवान शिव ने कहा कि मेरा भक्त सदैव अमर रहेगा और इसकी पूजा की जाएगी. कहा जाता है तभी से भगवान शिव के साथ-साथ मार्कण्डेय जी की भी पूजा की जाती है. भगवान शिव ने उनको ये वरदान दिया कि उनसे पहले मार्कण्डेय जी की पूजा होगी.
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तभी से ये मार्कण्डेय महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. मंदिर के पुजारी रोहित कृष्ण प्रेमेश बताते हैं कि सावन के महीने में यहां श्रद्धालु खासतौर पर पुत्र प्राप्ति की इच्छा के लिए आते हैं. इसके अलावा मार्कण्डेय महादेव के दरबार में दर्शन करने से अकाल मृत्यु का खतरा भी टल जाता है.
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सावन के महीनें में मार्कण्डेय महादेव मंदिर में चार बार विशेष आरती की जाती है. इसमें सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में मंगला आरती होती है. इसके बाद दोपहर के समय मध्यान आरती होती है. दिन के तीसरे पहर में शाम के समय सप्तऋषि आरती होती है और अंतिम बार रात करीब 10:30 बजे शयन आरती सम्पन्न होती है और फिर रात्रि 11 बजे मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं.