अलीगढ़ की आन-बान-शान पहलवान ‘टिक्की’… पूर्व सीएम कल्याण सिंह की भी थी पसंदीदा, PHOTOS
अलीगढ़ के अतरौली की पहलवान टिक्की का स्वाद चखने दिल्ली, आगरा, बदायूं, हाथरस से भी लोग बड़ी संख्या में आते हैं. इसे अतरौली का गौरव भी माना जाता है. बता दें कि इस टिक्की का स्वाद यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह को भी बेहद पसंद थी.
अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील में बनने वाली पहलवान अपने अनोखी बनावट, स्वाद और ऐतिहासिक जुड़ाव के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध है. यह टिक्की बिना अरारोट के तैयार की जाती है, जो इसे कुरकुरी, हल्की और प्राकृतिक स्वाद वाली बनाती है.
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खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह (जिन्हें प्यार से “बाबूजी” कहा जाता था) वह भी इस टिक्की के शौकीन थे. वे अक्सर इसे खाते थे. यह उनकी जन्मभूमि अतरौली से जुड़ी एक भावनात्मक याद के रूप में भी जानी जाती है.
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यह टिक्की न सिर्फ अलीगढ़ और आसपास के जिलों (जैसे हाथरस, बदायूं) में मशहूर है, बल्कि दिल्ली, आगरा और यहां तक कि अन्य राज्यों के पर्यटक भी इसे चखने आते हैं. इसे अतरौली का गौरव भी माना जाता है. स्वर्गीय कल्याण सिंह के शौक ने इसे राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्व भी दिया.
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यह टिक्की पारंपरिक तरीके से बनाई जाती है, जिसमें आधुनिक बाइंडर्स जैसे अरारोट या कॉर्नफ्लोर का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता. इससे यह अधिक कुरकुरी और प्राकृतिक रहती है, लेकिन टूटने का खतरा भी रहता है. इसे बनाने के लिए उबले और मसले हुए आलू, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर, लाल मिर्च, गरम मसाला, नमक, अदरक-लहसुन पेस्ट. आलू का स्टार्च और थोड़ा सा सूखा आटा, देसी घी या तेल की जरूरत पड़ती है.
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इसे बनाने के लिए आलुओं को उबालकर मैश करें और मसाले मिलाएं. मिश्रण से गोल या चपटी टिक्कियां बनाएं. फिर गर्म तवे पर देसी घी में दोनों तरफ से सेंकें. जब तक सुनहरी-भूरी न हो जाएं. यह टिक्की अतरौली में “पहलवान टिक्की वाले” के एक छोटे से स्टॉल पर मिलती है. इसकी बिक्री सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक होती है, लेकिन वीकेंड पर इस स्टॉल पर ज्यादा भीड़ ज्यादा रहती है.
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बिना अरारोट के होने से यह टिक्की पाचन में भी अच्छी होती है. इसे व्रत और उपवास पर भी खाया जाता है. इसमें कैलोरी भी कम होती है. लेकिन स्वाद इतना तीखा-मसालेदार और मजेदार है कि एक बार खाने पर दोबारा खाने का मन जरूर करेगा.