विंध्य पर्वत का क्यों झुका है सिर? हैरान कर देगी ये कहानी; देखें Photos

विंध्य पर्वत अपना सिर झुकाए गुरु अगस्त्य के दक्षिण भ्रमण से लौटने का इंतजार कर रहा है.यह प्रसंग कई पौराण‍िक ग्रंथों में भी दर्ज है.

उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर वैसे तो ढेर सारे पौराणिक घटनक्रमों का साक्षी रहा है, लेकिन इसमें विंध्य पर्वत की कहानी बिलकुल अनूठी है. यहां आज भी विंध्य पर्वत अपना सिर झुकाए गुरु अगस्त्य के दक्षिण भ्रमण से लौटने का इंतजार कर रहा है.यह प्रसंग कई पौराण‍िक ग्रंथों में भी दर्ज है. प्रसंग है कि विंध्य पर्वत को हिमालय से ईर्ष्या हो गई और वह तेजी से ऊपर की ओर बढ़ने लगा. इससे धरती पर सूर्य का प्रकाश तक आना बंद हो गया था.
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हर तरफ त्राहि-त्राहि मच गई तब देवताओं ने अगस्त्य मुनि से प्रार्थना की. दरअसल विंध्य पर्वत अगस्त्य मुनि का शिष्य है. देवताओं की प्रार्थना पर ही अगस्त्य मुनि मिर्जापुर आए और विंध्य पर्वत से दक्षिण की ओर जाने के लिए रास्ता मांगा. उस समय विंध्य ने रास्ता तो दिया, लेकिन अगस्त्य मुनि ने कहा कि वह दक्षिण भ्रमण कर जब तक वापस लौट ना जाएं, वो ऐसे ही झुका रहे. गुरु का आदेश मानकर विंध्य पर्वत उसी समय सिर झुकाए अपने गुरु के लौटने का इंतजार कर रहा है.
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उसी समय से अगस्त्य मुनि ने दक्षिण भारत को ही अपनी तपोस्थली बना लिया. उस समय क्षिण के उस क्षेत्र को बंजर और पठारी क्षेत्र माना जाता था, लेकिन अगस्त्य मुनि ने दक्षिण भारत को सिंचित कर कृषि योग्य बनाया था. आखिर में वहीं पर उन्होंने शरीर भी त्याग दिया. इस प्रकार अगस्त्य मुनि ने जहां दक्षिण भारत में जन जीवन के विकास में मदद दी, वहीं उत्तर भारत में भी विंध्याचल पर्वत को ऊपर उठने से रोककर यहां के जीव जंतुओं की प्राण रक्षा की.
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विंध्य पर्वत बड़ी संख्या में ऋषियों मुनियों के तपोस्थली रहा है. त्रेतायुग में अगस्त्य मुन‍ि खुद इसी क्षेत्र में तप करते थे. रामायण में प्रसंग आता है कि 14 वर्षों के वनवास का कुछ समय भगवान राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ उनके आश्रम में बिताया था. भगवान राम और सीता मैया ने पिता दशरथ की मृत्यु के बाद यहीं पर गंगा में तर्पण भी किया था. उस स्थान को आज राम गया घाट कहा जाता है.
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इसी विंध्याचल पर्वत पर मां अष्टभुजा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है. यह वहीं माता हैं जो द्वापर में यशोदा मैया के कोख से पैदा हुई थी, लेकिन जब कंस ने उन्हें पत्थर पर पटकने की कोशिश की तो उसके हाथ से छूटकर यहां पहाड़ी पर बैठ गई थीं. उस समय भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि कलियुग में उनकी बड़ी महिमा होगी. उनकी कृपा से भक्तों के कष्ट दूर होंगे. इसकी वजह से इस मंदिर में भक्तों की खूब भीड़ होती है.
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