जब पहली बार सुसराल पहुंचे राम जी, बानर-भालू भी गए साथ; कहानी सुनकर हंसते-हंसते फूल जाएगा पेट
14 साल के वनवास के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे तो माता सीता की सहेलियों के आमंत्रण पर जनकपुर भी गए थे. रामायण के इस मनोरंजक प्रसंग में वर्णन मिलता है कि भगवान राम के साथ बंदर भालू भी गए थे. जामवंत के नेतृत्व में वानरों ने जनकपुर में खूब मस्ती की, जिसे सुनकर आप भी लोटपोट हो जाएंगे.

भगवान राम 14 साल का वनवास काटकर अयोध्या लौट आए थे. यहां उनका बड़े धूमधाम से राजतिलक हुआ और वह माता सीता के साथ गद्दी पर भी बैठकर राजकाज भी संभालने लगे. इन्हीं दिनों जनकपुर से एक चिट्ठी आई. यह चिट्ठी महाराज जनक ने नहीं, बल्कि माता सीता की सहेलियों ने भेजा था. इस चिट्ठी में राम जी के लिए जो संदेश लिखा था, उसे पढ़ने के बाद वह भावुक हो गए. उसी समय उन्होंने हरकारे से वापस संदेश भेज दिया कि जल्द ही वह पूरे लाव लश्कर के साथ जनकपुर आ रहे हैं. इस कथा का भावपूर्ण वर्णन महर्षि वाल्मिकी ने रामायण में किया है.
दरअसल जब यह पत्र लेकर जनकपुर से हरकारा अयोध्या पहुंचा तो भगवान राजदरबार में बैठे थे. बगल में माता सीता भी बैठी थीं. भगवान ने हरकारे को पत्र पढ़ने के लिए कहा. लेकनि हरकारे ने कहा कि यह पत्र भगवान के लिए है और नितांत व्यक्तिगत है. यह सुनकर भगवान मुस्कराए और अपने हाथ में पत्र ले लिया. इसमें माता सीता की सखियों ने लिखा था कि भगवान को देखने का सौभाग्य उन्हें एक बार ही मिला है. वह भी स्वयंबर की भीड़-भाड़ में वह भगवान की रूप माधुरी का रस नहीं ले पायीं. अब भगवान के वन से लौटने के बाद अयोध्या वाले तो उनके दर्शन कर निहाल हो रहे हैं, लेकिन उन्हें यह सौभाग्य कब मिलेगा.
पूरी बारात लेकर ससुराल पहुंचे थे भगवान
इस पत्र को पढ़ते समय भगवान के चेहरे के भाव लगातार बदल रहे थे. इसे माता सीता ने देखा तो वो भी मुस्कराने लगीं और फिर पत्र की अंतिम लाइन पढ़ने के बाद भगवान और माता के बीच आंखों आंखों में ही संवाद हुआ और भगवान ने अपना फैसला सुना दिया. भगवान ने हरकारे से कहलवा भेजा कि बहुत जल्द अयोध्या से एक बार फिर उसी लाव लश्कर के साथ जनकपुर आएंगे, जैसे स्वयंबर के वक्त बारात गई थी. फिर पूरी तैयारी के साथ भगवान अपने तीनों भाइयों और चारों बहुओं समेत पूरी बारात लेकर जनकपुर गए थे.
बानर-भालुओं को नहीं ले जाना चाहते थे भगवान
जनकपुर जाने की तैयारी हो रही थी, उस समय भगवान ने कह दिया कि सभी बानर-भालू यहीं अयोध्या में ही रूकेंगे. यह सुनकर सभी बानर भालू निराश हो गए. बाद में जामवंत ने भगवान से अनुयय विनय की तो भगवान साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए. लेकिन शर्त रखी कि वहां कोई उदंडता नहीं करेगा. जामंवत ने इसकी जिम्मेदारी ली और आकर सभी बानर भालुओं को समझाया कि कोई भी अपने मन से कुछ नहीं करेगा. बल्कि सभी उनका अनुशरण करेंगे. अब सभी खुश हो गए.
ऐसा मचा उधम, लोटपोट हो गए महाराज जनक
भगवान राम का लश्कर जनकपुर पहुंचा. वहां सभी बानर भालू बड़े शांति से जामवंत के पीछे खड़े थे. फिर सब को नाश्ते में आम परोसा गया. जामवंत को देख सभी बानरों ने आम हाथ में ले लिया. जामवंत आम चूसने लगे तो बानर भालू भी सूचने लगे. संयोग से जामवंत का आम थोड़ा टाइट था. इसलिए वह दबाकर घुलाने लगे. बानर भालू भी ऐसा ही करने लगे. इतने में जामवंत के आम की गुठली उछल गई. फिर क्या था, बानरों में गुठली उछालने का कंपटीशन शुरू हो गया. यह देख महाराज जनक भी हंसते हंसते लोटपोट हो गए.
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