कौन बनेगा राजाओं का अध्यक्ष? ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन का चुनाव, दांव पर दो रियासतों का वर्चस्व

लखनऊ में ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन (BIA) अध्यक्ष का चुनाव शुरू है. अध्यक्ष पद पर शाही भिड़ंत होने वाला है. बलरामपुर और मनिकापुर रियासतों के वारिसों के बीच टक्कर है. यह 165 साल पुरानी संस्था का चुनाव सिर्फ दो रियासतों की लड़ाई नहीं, बल्कि अवध की सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है.

ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन चुनाव: शाही जंग

उत्तर प्रदेश की दो सबसे पुरानी और प्रभावशाली रियासतों, बलरामपुर और मनिकापुर के वारिसों के बीच लखनऊ में एक ऐतिहासिक टकराव देखने को मिला. करीब 165 साल पुरानी ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन (BIA), जिसे उर्दू में ‘अंजुमन-ए-हिंद’ के नाम से जाना जाता है, के अध्यक्ष पद के लिए बलरामपुर एस्टेट के महाराजा जयेंद्र प्रताप सिंह और मनिकापुर एस्टेट के केंद्रीय मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह आमने-सामने हैं.

कैसरबाग की सफेद बारादरी में सुबह 9 बजे शुरू हुई वोटिंग शाम 5 बजे तक चली, और उसके तुरंत बाद मतगणना शुरू हो गई. कुल 322 राजा-महाराजाओं और तालुकदारों के वोटों के साथ यह चुनाव न सिर्फ संस्थागत वर्चस्व की लड़ाई है, बल्कि आधुनिक राजनीति और परंपरा के संगम का भी प्रतीक बन गया है.

लखनऊ के हृदयस्थल कैसरबाग बारादरी

एक औपनिवेशिक स्थापत्य का जीवंत नमूना में सुबह से ही रौनक छाई रही. अवध के 14 जिलों से आए राजपरिवारों के सदस्य, जिनमें कई आज के सियासी दिग्गज भी शामिल हैं, वोट डालने पहुंचे. योगी सरकार के मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह और राज्यसभा सदस्य संजय सेठ जैसे प्रमुख नामों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की.

चुनाव प्रभारी राकेश प्रताप सिंह ने बताया, ‘वोटिंग शांतिपूर्ण रही. अब शाम को होने वाली काउंटिंग में एक से डेढ़ घंटे में नतीजे स्पष्ट हो जाएंगे.’ उम्मीद है कि आज रात तक विजेता का नाम घोषित हो जाएगा, जो न सिर्फ एसोसिएशन का भविष्य तय करेगा, बल्कि इन रियासतों के पारंपरिक रसूख को भी नई दिशा देगा.

राजा आनंद सिंह के निधन से शुरू हुई जंग

यह चुनाव संयोगवश ही नहीं, बल्कि एक दुखद घटना से उपजा है. इस साल 6 जुलाई को मनिकापुर एस्टेट के पूर्व राजा और पूर्व मंत्री आनंद सिंह का निधन हो गया, जिससे अध्यक्ष पद रिक्त हो गया. आनंद सिंह के पुत्र और केंद्रीय राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने तुरंत मैदान संभाला. वहीं, बलरामपुर एस्टेट के जयेंद्र प्रताप सिंह, जो एसोसिएशन के संस्थापक दिग्विजय नाथ सिंह के वंशज हैं, ने भी नामांकन दाखिल कर दिया.

शुरू में दोनों पक्षों ने निर्विरोध चुनाव की कोशिश की, लेकिन सहमति न बनने पर यह मुकाबला खुलकर सामने आ गया. कीर्ति वर्धन सिंह, जो गोंडा से सांसद हैं और केंद्र में राज्य मंत्री के रूप में सक्रिय हैं, ने अपने पिता की विरासत को मजबूत करने का संकल्प लिया है. दूसरी ओर, जयेंद्र प्रताप सिंह बलरामपुर के पारंपरिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए संघर्षरत हैं.

165 साल का गौरवशाली इतिहास

ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन की जड़ें 1860 में बलरामपुर एस्टेट के दिग्विजय नाथ सिंह द्वारा स्थापित हुईं. यह संस्था अवध के तालुकदारों और जमींदारों का प्रतिनिधित्व करती थी, जो ब्रिटिश शासन के दौरान भूमि सुधारों और हक-अधिकारों की लड़ाई लड़ती रही. दावा किया जाता है कि इसका मूल मुगल काल से जुड़ा है, जब अवध के नवाबों से इसे मान्यता मिली थी.

आज भी यह एसोसिएशन लखनऊ के प्रतिष्ठित कॉल्विन तालुकेदार कॉलेज की मैनेजमेंट कमेटी का निर्धारण करती है. सदस्यों में विविधता ही इसकी ताकत है. क्षत्रियों के अलावा ब्राह्मण, कायस्थ, खत्री और मुस्लिम समुदाय के राजा-तालुकदार शामिल हैं. कुल 322 वोटरों में से कई आज राजनीति के मैदान में सक्रिय हैं, जो इस चुनाव को और रोचक बनाता है.

कांटे की टक्कर, कौन लेगा कमान?

यह न सिर्फ एक पदाधिकारी का चुनाव है, बल्कि अवध की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को संरक्षित करने की होड़ भी. शाम ढलते-ढलते कैसरबाग में उत्साह चरम पर पहुंच गया. वोटिंग खत्म होते ही मतपेटियां सील हुईं, और काउंटिंग का बेसब्री से इंतजार शुरू हो गया. अगर कीर्ति वर्धन जीतते हैं, तो मनिकापुर एस्टेट का रसूख केंद्र की राजनीति से जुड़कर और मजबूत होगा.

वहीं, जयेंद्र प्रताप की जीत बलरामपुर को परंपरा का नया अध्याय देगी. यह चुनाव सिर्फ दो रियासतों की लड़ाई नहीं, बल्कि इतिहास और वर्तमान के टकराव का आईना है. नतीजों के साथ ही अवध की यह पुरानी संस्था नया मोड़ लेगी. क्या यह परंपरा की जीत होगी या राजनीतिक धाक की? शाम के अंधेरे में स्पष्ट जवाब मिलेगा.