काशी की ‘पहचान’ पर बुलडोजर! हटाई गई चाची की कचौड़ी और पहलवान की लस्सी की दुकानें

वाराणसी की फेमस चाची की कचौड़ी और पहलवान लस्सी की दुकानें, सड़क चौड़ीकरण में हटा दी गई हैं. ये दुकानें 100 साल से भी ज़्यादा पुरानी थीं और बीएचयू के छात्रों के साथ-साथ पर्यटकों को भी काफी पसंद थीं. इन दुकानों के बंद होने से बनारसी खान-पान से इनका स्वाद नहीं ले पाएंगे.

रोड चौड़ीकरण में तोड़ी गईं दुकानें

महादेव की नगरी काशी सिर्फ धार्मिक नगरी ही नहीं बल्कि, लजीज खानपान की वजह से भी जानी जाती है. बनारसी पान के अलावा यहां बहुत सी ऐसी दुकानें हैं, जहां लोग जाकर स्वादिष्ट खाने का लुत्फ उठाते हैं. ऐसी ही यहां चाची की कचौड़ी की दुकान भी मशहूर है. मगर अफसोस अभी ये दुकान चली गई है. इसके पीछे की वजह रोड चौड़ीकरण है.

चाची की कचौड़ी की दुकान सौ साल से भी ज़्यादा पुरानी थी. मगर अब ये दुकान और बनारस की जानी मानी पहलवान लस्सी की दुकान दोनों ही इतिहास बन चुके हैं. ये दोनों ही दुकानें बनारस के लंका इलाके में एकदम आस-पास मौजूद थीं. यहां लोगों की खूब भीड़ भी लगती थी. 1915 में चाची की कचौड़ी की दुकान खुली थी. ये दुकान बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स की मनपसंद दुकान हुआ करती थी.

कैसे बनती थी कचौड़ी?

चाची की कचौड़ी की दुकान में उड़द की दाल मिलाकर कचौड़ी बनाया जाता था. साथ ही आलू सीताफल की बिना लहसुन प्याज़ वाली सब्ज़ी का स्वाद लाजवाब होता था. यहां कुरकुरी जलेबी की दीवानगी लोगों में देखते ही बनती थी. इसके साथ ही उसपर चाची की बेहिसाब गालियां भी लोग सुनते थे. लोगों का कहना था कि उनकी गालियां भी कचौड़ा जायका बढ़ाया ही करती थीं. चाची को भी दुनियां से गए ज़माना बीत गया और अब उनकी वो दुकान भी नहीं रही.

बीएचयू के छात्र -छात्राओं और पर्यटकों में पहलवान लस्सी को लेकर भी दीवानगी कम नहीं थी. बनारस के फेमस लस्सी की दुकानों में ये शुमार होता था. बीएचयू के पढ़े पुरातन छात्र दुनियां के किसी भी कोने में क्यूं न बस गए हों लेकिन इन दोनों दुकानों के नाम से ही उनकी बांछे खिल जाती हैं. लेकिन, अब ये बातें बीते वक़्त का हिस्सा हैं. हकीकत ये है कि आज ये दोनों दुकानें हमेशा के लिए हटा दी गई हैं.

लहरतारा से भिखारीपुर तिराहा होते हुए लंका चौराहे से भेलूपुर विजया मॉल तक 9.5 किमी लम्बी सड़क 242 करोड़ की लागत से बनाई जा रही है. और इसके जद में सत्तर साल से लेकर सौ साल तक के करीब तीस दुकानें आ रही थीं. उन सबको मुआवजा देकर खाली करा लिया गया. मंगलवार की देर रात उनसब पर बुलडोजर चलाकर सड़क को बराबर कर दिया गया. इस तरह बनारस में लगातार खत्म होते जा रहे इतिहास में एक कड़ी और जुड़ गई.