पहली बार यहां पैदा हुई अग्नि, महर्षि भृगु ने रचा ये महान ग्रंथ; अब उस जगह का कैसा है हाल?

ब्रह्मा के आठ प्रचेताओं में प्रथम महर्षि भृगु ने ऋग्वेद की कई ऋचाओं का सृजन किया है. उन्हें अग्नि और आग्नेयास्त्रों का जनक माना जाता है. इसीलिए अग्नि का एक नाम भृगि भी है. अर्थात भृगु से उत्पन्न.

पहली बार यहां पैदा हुई अग्नि, महर्षि भृगु ने रचा ये महान ग्रंथ; अब उस जगह का कैसा है हाल?
भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु ऋषि का इकलौता मंदिर उत्तर प्रदेश के बलिया में है. पतित पावनी गंगा और सरयू के संगम पर स्थित यही वो स्थान है जहां पहली बार अग्नि की उत्पत्ति हुई और तमाम अग्नेयास्त्रों को डिजाइन किया गया. पौराणिक मान्यता के मुताबिक ब्रह्मा के आठ प्रचेताओं में प्रथम महर्षि भृगु ने ऋग्वेद की कई ऋचाओं का सृजन किया है.
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उन्हें अग्नि और आग्नेयास्त्रों का जनक माना जाता है. इसीलिए अग्नि का एक नाम भृगि भी है. अर्थात भृगु से उत्पन्न. माना जाता है कि बलिया में बना महर्षि भृगु का मौजूदा मंदिर दो सौ साल पहले तीसरी बार स्थापित हुआ. पहले यह मंदिर गंगा पार बिहार में था. उस स्थान पर आज भी भृगु आश्रम का शिलापट्ट लगा है, लेकिन बाढ़ की वजह से इस आश्रम को यहां लाया गया.
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पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यही गंगा की रेती पर ही भृगु मुनि ने ज्योतिष के महान ग्रंथ भृगु संहिता की रचना की. जब महर्षि इस ग्रंथ की रचना कर ही रहे थे, उन्हें आभाष हो गया कि 5000 हजार वर्षों के बाद गंगा सूख जाएंगी. इसलिए उन्होंने गंगा को पुर्नजीवित करने के लिए अयोध्या से सरयू को खींचकर बलिया ले आए और गंगा में संगम कराया था.
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भृगु मंदिर के पुजारी मनन मिश्रा बताते हैं कि इस मंदिर में एक स्वर्ण कलश है. यह कलश उस समय स्थापित किया गया था, जब 88 हजार ऋषियों ने यहां पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन यज्ञ किया था. महर्षि भृगु के शिष्य दर्दर मुनि के नाम पर यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन मेला भी लगता है.
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ऋग्वेद के मुताबिक महर्षि भृगु अग्नि को पृथ्वी पर लाए. यही वजह है कि यज्ञ में अग्नि की आराधना भृगु कुल के ऋषियों के जरिए होता है. कई पौराणिक विवरणों में महर्षि अंगिरा को भृगु का पुत्र बताया गया है. ऋग्वेद में कई जगह भृगु अंगिरस नाम का उल्लेख मिलता है.
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पौराणिक कथाओं के मुताबिक त्रिदेवों की परीक्षा लेते समय भृगु ने भगवान नारायण के वक्ष पर लात मारी थी. इसके बाद उनका मन बेचैन हो गया था और उसी समय वह धरती पर आ गए और यहां गंगा की रेती पर बैठकर तपस्या करने लगे थे. उनके इसी भाव की वजह से उन्हें श्रेष्ठ का दर्जा प्राप्त है. श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय में खुद भगवान नारायण कहते हैं कि वह ऋषियों में भृगु हैं.
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पुजारी मन्नन मिश्रा विष्णु पुराण के हवाले से बताते हैं कि भगवान नारायण की पत्नी माता लक्ष्मी महर्षि भृगु की ही बेटी थीं. उनके ही वंश में महर्षि मार्कण्डेय, शुक्राचार्य, ऋचीक, विधाता, दधीचि, त्रिशिरा, जमदग्नि, च्यवन और नारायण के ओजस्वी अवतार परशुरामजी के जन्म का उल्लेख मिलता है. महर्षि भृगु ने ही महाराज मनु को मानव आचार संहिता लिखने के लिए प्रेरित किया था. यही वजह है कि मनु स्मृति के आखिर में उनका आभार प्रकट किया गया है.
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