बलिया से सांसद सनातन पांडे ने एक विवादित बयान दिया है. समाजवादी पार्टी की एक बैठक दौरान उन्होंने कहा कि बीजेपी 2014 के चुनावी वादों को पूरा नहीं कर पाई थी. इसलिए साजिश कर 2019 के लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए पुलवामा हमला कराया था.
बलिया में आयुष यादव नाम के एक युवक की हत्या के बाद माहौल बिगड़ गया है. अब मृतक की बहन ने पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए चेतावनी दी है कि अगर प्रशासन अपना काम सही से नहीं कर सकती तो मुझे खुद कदम उठाना होगा. पूरे देश में जहां भी हत्यारे दिखेंगे, वहीं मारूंगी.
ददरी मेला पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होकर एक महीने तक चलने वाले इस मेले की खासियत तो बहुत है, लेकिन आज हम बात करने वाले हैं स्वाद की. इस मेले की चटहिया जलेबी यानी गुड़ही जलेबी का स्वाद जो एक बार ले ले, वह बार बार खाने की कोशिश करेगा.
सपा सांसद सनातन पांडेय के 'जान दे देंगे या ले लेंगे' बयान से यूपी में राजनीतिक बवाल मच गया है. उन्होंने बीजेपी और उत्तर प्रदेश सरकार पर चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए कहा कि 2027 में ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा. पांडेय ने बलिया के कलेक्टर को भी चुनौती दी, दावा किया कि वह अलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का हमेशा विरोध करेंगे.
उत्तर प्रदेश सरकार ने महर्षि भृगु कॉरिडोर को मंजूरी दी है, जिससे बलिया को उसका प्राचीन गौरव वापस मिलेगा. यहां ज्योतिष विज्ञान का रिसर्च सेंटर भी बनेगा, जिससे भृगु संहिता पर नए शोध हो सकेंगे. यह पहल बलिया को पर्यटन मानचित्र पर लाएगी और ज्योतिष के क्षेत्र में विश्वव्यापी मान्यता दिलाने में सहायक होगी. यह कॉरिडोर क्षेत्र के समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा.
बलिया में 'क्रांति का कुआं', जिसे महादेव कूप भी कहते हैं, के दिन बहुरने वाले हैं. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण प्रतीक इस कुएं का इतिहास हजारों साल पुराना है. यह कुआं कभी ददरी मेले के श्रद्धालुओं का ठिकाना था, पर बाद में बलिया के बागियों और क्रांतिकारियों का केंद्र बना. यहीं से 1870 के दशक में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका गया और 1942 की अगस्त क्रांति की रणनीति भी बनी. आज भी यह कुआं बलिया के गौरवशाली इतिहास का साक्षी है.
बलिया की धरती अंग्रेजों के समय में खूब राजस्व देती थी, लेकिन चोरी-डकैती के कारण ब्रिटिश सरकार ने 1921 में यहां 4 खास तिजोरियां बनवाईं. ये तिजोरियां आज भी वैसी ही हैं, न जंग लगा, न रंग उतरा. जमीन में तीन-चौथाई धंसी ये तिजोरियां कथित तौर पर गैश कटर से भी नहीं कटतीं. ये तत्कालीन चार तहसीलों का राजस्व सुरक्षित रखने के लिए बनी थीं, जो अब इतिहास का हिस्सा हैं.
बलिया के ददरी मेले को वैसे तो उत्तर भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला कहा जाता है, लेकिन इस साल यह मेला अपनी रौनक खो चुका है. मेला क्षेत्र बढ़ने के बावजूद बॉलीवुड और अन्य कलाकारों की अनुपस्थिति, साथ ही लंपी वायरस के डर से पशु मेले का न लगना इसकी प्रमुख वजहें हैं. मेले की शान भारतेंदु मंच पांच दिनों से सूना पड़ा है.