35 साल पुराने 5055 रुपये के कर्ज ने दी ऐसी टेंशन… मौलाना तौकीर रजा की कुर्क हो सकती है संपत्ति, मिली चेतावनी
मौलाना तौकीर रजा की 35 साल पुरानी एक फाइल खुल गई है. उन्होंने 1990 में 5 हजार रुपये का कर्ज लिया था, जो बढ़कर 40 हजार पार कर गया है. अब बैंक रसूलपुर पुठी साधन सहकारी समिति ने वसूली के लिए नोटिस जारी किया है. कर्ज नहीं भरने की स्थिति में उनकी संपत्ति भी कुर्क की जा सकती है.

बरेली में जुमे की नमाज के बाद हुई हिंसा मामले में मौलाना तौकीर रजा की परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही है. फर्रुखाबाद की फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में बंद मौलाना की अवैध संपत्तियों पर हाल ही में प्रशासन ने बुलडोजर चलाने का फैसला किया है. अब मौलाना तौकीर रजा नए मुसीबत में फंसते हुए नजर आ रहे हैं.
दरअसल, मौलाना तौकीर रजा ने वर्ष 1990 में करीब 5,055 रुपये का कृषि कर्ज लिया था. यह लोन फसली खेती के लिए खाद और बीज खरीदने के मकसद से लिया गया था.लेकिन आज तक इसे भरा नहीं गया. अब बदायूं जिले की रसूलपुर पुठी साधन सहकारी समिति ने उनके खिलाफ बकाया वसूली की प्रक्रिया को शुरू कर दिया है. समिति ने इसके लिए मौलाना के बिहारीपुर सौदागरान स्थित घर पर नोटिस लगा दिया है.
5055 रुपये का कर्ज बढ़कर 40,555 रुपये का हो गया
बता दें कि 1990 में करीब 5,055 रुपये का लिया गया कर्ज अब धन और वर्षों से बढ़ा ब्याज शामिल करके 40,555 रुपये हो गया है. अब समिति ने मौलाना तौकीर रजा को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उन्होंने 15 दिन के अंदर रकम नहीं चुकाई तो उनके खिलाफ संपत्ति कुर्की की कार्रवाई शुरू की जाएगी.
नहीं जमा किया बकाया तो संपत्ति होगी कुर्क
बैंक अधिकारियों के मुताबिक मौलाना के खाते को एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) घोषित कर दिया गया है. बैंक नियमों के मुताबिक यह खाता अब वसूली के लिए अधिनियम के तहत कार्रवाई योग्य है. बैंक ने यह भी कहा है कि मौलाना ने बदायूं की अपनी संपत्तियां बेच दी हैं. ऐसी स्थिति में जिस जगह मौलाना कि संपत्ति मिलेगी वहां कुर्की की कार्रवाई की जाएगी.
बरेली हिंसा में नाम आने के बाद खुलने लगी पुरानी फाइलें
बता दें कि बरेली हिंसा में नाम आने के बाद मौलाना तौकीर रजा की मुसीबतें बढ़ गई. उनकी पुरानी गतिविधियां और मामलों की फाइलें खुल गई हैं. इन्हीं में 1990 का यह पुराना कर्ज प्रकरण सामने आया. इसपर कार्रवाई तेज कर दी गई है.बता दें कि 1996 में जब राज्य सरकार ने किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणा की थी, तब भी मौलाना का नाम उस सूची में शामिल नहीं हुआ. फिर 1997 में बैंक के सामने जांच के बाद यह मामला फिर आया था लेकिन राजनीतिक रसूख के चलते बकाया वसूली नहीं हो सकी.