15 दिन के बेटे को फ्रिज में रखने वाली मां इस बीमारी से है पीड़ित

मुरादाबाद में एक महिला ने अपने नवजात बच्चे को रोने पर फ्रिज में रख दिया था. इस घटना ने पूरे परिवार को झकझोर कर रखा दिया. परिवार ने पहले झाड़-फूंक का सहारा लिया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. एक पड़ोसी की सलाह पर उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया, जहां पता चला कि वह एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में हाल में एक हैरान कर देने वाली घटना सामने आई थी. एक महिला ने अपने 15 दिन के बच्चे को केवल रोने के चलते फ्रिज में रख दिया था. इसके बाद वह खुद सोने चली गई. बच्चे के रोने की आवाज सुनकर दादी ने उसे फ्रिज से बाहर निकाला. इस घटना ने पूरे परिवार को हिलाकर रख दिया. साथ ही लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि एक मां इतनी निर्दय कैसे हो सकती है.

हैरानी की बात तो तब हुई जब महिला से इस बारे में पूछा गया. उसने बताया कि बच्चा रो रहा था, इसलिए उसने उसे फ्रिज में रख दिया. इससे परिवार वालों को लगा कि उसपर कोई साया है, उसे झाड़-फूंक वाले बाबा के पास ले गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. बाद में एक पड़ोसी की सलाह पर उसे फेमस साइकेट्रिस्ट डॉ. कार्तिकेय गुप्ता के पास ले जाया गया, जहां पता चला वह पोस्टपार्टम साइकोसिस से ग्रस्त है.

प्रसव के बाद कुछ महिलाओं में दिखती है लक्षण

डॉ. कार्तिकेय गुप्ता ने बताया कि महिला को एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति से ग्रस्त है, जिसे पोस्टपार्टम डिसऑर्डर (Postpartum Disorder) कहा जाता है. यह प्रसव के बाद कुछ महिलाओं में देखी जाती है. डॉक्टर का कहना है कि प्रसव के बाद लगभग 10-15 फीसदी महिलाओं में पोस्टपार्टम ब्लूज़ (Postpartum Blues) के लक्षण दिखाई देते हैं, जो आमतौर पर कुछ दिनों या हफ्तों में ठीक हो जाते हैं.

पोस्टपार्टम साइकोसिस एक मानसिक बीमारी

उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में यह स्थिति गंभीर होकर पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression) या पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis) का रूप ले सकती है. पोस्टपार्टम साइकोसिस एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जो 0.1-0.2% महिलाओं में देखी जाती है. यानी हजार में एक-दो लोग ही शिकार होते हैं. इससे प्रभावित महिला को भ्रम, मतिभ्रम, चिंता, नींद न आना, और कभी-कभी अपने या बच्चे के प्रति हानिकारक व्यवहार की प्रवृत्ति हो सकती है.

इलाज संभव, लेकिन घ्यान रखने की जरूरत

कार्तिकेय गुप्ता कहते हैं कि ऐसी महिलाओं को लग सकता है कि कोई उन्हें या उनके बच्चे को नुकसान पहुंचाएगा. उन्होंने कहा कि इसका इलाज संभव है. इसमें मनोचिकित्सक द्वारा दवाइयों, मनोवैज्ञानिक परामर्श और परिवार के सहयोग की आवश्यकता होती है. समय पर इलाज शुरू करने जरूरी है. साथ ही परिवार वालों को महिला का ध्यान और उसे भावनात्मक समर्थन करते रहना चाहिए.