गजब कानून! अभी भी गवाहों को मिलता है 2 रुपया का यात्रा भत्ता, 1976 का नियम अब तक न बदला

उत्तर प्रदेश का 1976 साक्षी व्यय भुगतान कानून आज के समय के हिसाब से उपयोगी नहीं है. इसके जरिए गवाहों को केवल 2-4 रुपये का यात्रा भत्ता मिलता है, जो उनके वास्तविक खर्चों से बहुत कम है. वकीलों के मुताबिक, कानून में तत्काल संशोधन की आवश्यकता है ताकि गवाहों को उचित आर्थिक सहायता मिल सके और न्याय व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके.

दो रुपये मिल रहा है भत्ता

देश के आपराधिक कानून को एक साल पहले बदल दिया गया. कई सारी ऐसी धाराएं जो किसी काम की नहीं थीं उनको बदल दिया गया और कई धाराओं को खत्म कर दिया गया. इसके बावजूद अभी भी कुछ कानून ऐसे हैं जिनमें आज के समय के मुताबिक, बदलाव की जरूरत है. ऐसा ही एक कानून है साक्षी व्यय भुगतान कानून. उत्तर प्रदेश परिवादी एवं साक्षी दंड न्यायालय व्यय भुगतान नियमावली 1976 के तहत गवाहों को यात्रा और आहार भत्ता देने का प्रावधान है, लेकिन यह व्यवस्था आज के समय में नाकाफी साबित हो रही है. नियमावली के मुताबिक, गवाहों को दो श्रेणियों में बांटा गया है. उच्च और सामान्य.

उच्च श्रेणी के गवाहों को प्रथम श्रेणी रेल किराए के रूप में न्यूनतम 2 रुपये और अधिकतम 4 रुपये, जबकि सामान्य श्रेणी के गवाहों को 2 रुपये का भत्ता देने का प्रावधान है. 1976 में लागू इस नियमावली की दरें आज भी अपरिवर्तित हैं, जबकि महंगाई और यात्रा खर्च कई गुना बढ़ चुके हैं.

कानपुर की अदालतों में आने वाले गवाह

अगर हम कानपुर कोर्ट की बात करें तो घाटमपुर, बिल्हौर, जैसे क्षेत्रों से रोजाना सैकड़ों गवाह दूर-दूर से कानपुर की अदालतों में गवाही देने आते हैं. इनके आने-जाने का खर्च लगभग 200- 300 रुपये तक पहुंचता है. ऐसे में 2 रुपये का यात्रा भत्ता न केवल अपर्याप्त है बल्कि, गवाहों के लिए मजाक बनकर रह गया है. नियमावली के तहत गवाहों को यात्रा भत्ता प्राप्त करने के लिए अदालत में अर्जी देनी पड़ती है. इसके बाद सरकारी वकील इसकी संस्तुति करता है और फिर अदालत की सहमति के बाद नजारत से भुगतान होता है. यह प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली है, जिसके कारण कई गवाह भत्ता लेने से वंचित रह जाते हैं.

स्थानीय वकीलों का कहना है कि पुरानी दरों और जटिल प्रक्रिया के चलते गवाहों का अदालत में आना मुश्किल हो रहा है, जो न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है. स्थानीय निवासी राम शरण हैं, जो हाल ही में गवाही देने के लिए आए थे. उन्होंने बताया कि 200 रुपये खर्च करके 2 रुपये के भत्ते के लिए कौन लाइन में लगेगा?

इस नियमावली का पुनरीक्षण किया जाए

यह व्यवस्था गवाहों के साथ अन्याय है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि नियमावली का तत्काल पुनरीक्षण हो, ताकि यात्रा भत्ता आज के खर्चों के अनुरूप किया जाए. प्रशासन और सरकार से मांग की जा रही है कि इस नियमावली को यथाशीघ्र संशोधित किया जाए, ताकि गवाहों को उचित आर्थिक सहायता मिले और न्याय व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके.

वरिष्ठ अधिवक्ता कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि यह कानून आज के समय के हिसाब से उपयोगी नहीं है. इसके लिए नए प्रावधान आने चाहिए जिससे कि गवाहों को इतना भुगतान हो पाए कि उनके आने-जाने का खर्चा निकल सके. उन्होंने बताया कि एनआईए के गवाहों को पूरा भुगतान मिलता है.

जिला शासकीय अधिवक्ता दिलीप अवस्थी ने बताया कि इस मद के लिए बजट भी आता है. उन्होंने बताया कि कानपुर में एक महीने में तकरीबन 1600 के आस-पास गवाही होती है लेकिन 2 रुपए लेने के लिए मात्र इक्का-दुक्का गवाह ही आते हैं. नए कानून बीएनएसएस की धारा 398 के तहत प्रदेश सरकार को गवाहों के लिए उचित व्यवस्था करनी है लेकिन, अभी यह व्यवस्था प्रदेश में शुरू नहीं हुई है.