कानपुर में ऐसा शिव मंदिर, जहां पहले अश्वस्थामा करते हैं पूजा, रोज मिलते हैं निशान

सावन में महादेव की पूजा अर्चना का विशेष विधान हिंदू धर्म ग्रंथों में बताया गया है. ऐसे में आज हम आपको कानपुर के एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जान रहे हैं जहां पर आज भी सबसे पहले पूजा अश्वस्थामा करते हैं. इसके निशान भी हर रोज यहां मिलते हैं.

खेरेश्वर धाम

सावन मे महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना का विधान होता है, इसलिए ये काफी खास होता है. अगर हम कानपुर की बात करें तो यहां कई ऐसे शिव मंदिर है जो भक्तों की आस्था के साथ कई रहस्यों के लिए भी जाना जाता है. ऐसा ही महादेव का एक मंदिर है, जिसका नाम खेरेश्वर है. ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा करने के लिए शिव भक्त अश्वत्थामा आज भी आते हैं और इस बात का प्रमाण रोज सुबह देखने को मिलता है.

हिंदू धर्म में सात लोगों को चिरंजीवी माना जाता है यानी ये वो लोग हैं जो सृष्टि के रहने तक इस धरती पर रहेंगे. यह सात चिरंजीवी हनुमान, विभीषण, वेद व्यास, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, परशुराम और राजा बली हैं. इनमें से किसी को भी देखना तो संभव नहीं है. इन्हीं चिरंजीवियों में से एक अश्वत्थामा हैं और ये कानपुर के खेरेश्वर महादेव मंदिर में इनके आने के सबूत मिलते हैं. ये मंदिर शिवराजपुर में स्थित है.

रोज सुबह मंदिर में सबसे पहले पूजा

कानपुर से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर है शिवराजपुर में प्रसिद्ध खेरेश्वर मंदिर में भक्त दूर-दूर से पूजा के लिए आते हैं. यह मंदिर महादेव शिव का मंदिर है. कहां जाता है कि इस मंदिर को महाभारत काल में बनवाया गया था. महाभारत काल के बाद अश्वत्थामा को अजर अमर रहने का वरदान मिला था. इसके बाद से कहा जाता है कि रोज सुबह इस मंदिर में सबसे पहले अश्वत्थामा पूजा करने आते हैं. यह पूजा विशेष फूलों या अन्य माध्यम से रोज सुबह की हुई मिलती है.

सबसे खास बात है कि रात को शयन आरती के बाद इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है. सुबह जब मंदिर के कपाट खोले जाते है तो यहां पर शिवलिंग की पूजा अर्चना की हुई मिलती हैं. यह सिलसिला आज भी रोज जारी है. मंदिर के पुजारी का कहना है कि कई टीम यहां पर आई, मंदिर के अंदर तक कैमरे लगा दिए लेकिन उनको कुछ पता नहीं चल पाया क्योंकि रात के बाद सब कैमरे या तो अपने आप बंद हो गए या फिर कुछ रिकॉर्ड नहीं हो पाया.

वैसे तो यहां पर रोज भक्तों का आना रहता है लेकिन, महाशिवरात्रि वाले दिन दूर-दूर से भक्त खेरेश्वर महादेव के दर्शन करने के लिए आते है. लोगों का भरोसा है कि यहां महादेव की पूजा से भक्तों को विशेष कृपा मिलती है. अश्वत्थामा को भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त माना जाता है. कहते हैं कि अश्वत्थामा शिव के ही अंश है और वो रोज अपने आराध्य की पूजा करने आते हैं.

अश्वत्थामा को क्यों मिला था श्राप?

शिवराजपुर कानपुर का बाहरी हिस्सा पड़ जाता है. इसकी वजह से आस-पास के लाखों भक्त सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते हैं. अगर हम ग्रंथों की बात करेंगे तो पता चलता है कि अश्वत्थामा के लिए अमर रहना वरदान नहीं अभिशाप है. महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था.

युद्ध हारने के बाद अश्वत्थामा पांडवों का वध करने गए लेकिन कृष्ण की वजह से पांडव बच गए. पांडव की जगह पर द्रौपदी के पुत्र मारे गए जिसकी वजह से कृष्ण क्रोधित हो गए. उन्होंने भीम को आदेश देकर अश्वत्थामा की विशेष मणि उसके माथे से नोचवा लिया और उसको बीमार शरीर के साथ धरती पर रहने का श्राप दिया. इसलिए कहते है कि चिरंजीवी होना अश्वत्थामा के लिए वरदान नहीं बल्कि अभिशाप है.