‘…अखिलेश यादव को डरा सकते हो मौलाना को नहीं’, आजम खान पर क्यों भड़कें नूर अहमद अजहरी?

हाफिज नूर अहमद अजहरी ने आजम खान के उलमा वाले टिप्पणी पर करा विरोध जताया है. उन्होंने कहा कि मुसलमान अखिलेश यादव को मुस्लिम हितैषी समझ कर वोट देता है, आजम खान के नाम से नहीं. अजहरी ने कहा, 'क्या मुसलमान उनकी दहलीज की गुलाम है, जो हर वक्त उनकी बात मानी जाए.'

आजम खान पर भड़कें नूर अहमद अजहरी

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष हाफिज नूर अहमद अजहरी ने शनिवार को समाजवादी पार्टी नेता आजम खान पर बड़ा हमला बोला है. उन्होंने उलमा (मुस्लिम स्कॉलर, मौलाना) को मस्जिदों तक सीमित रखने के प्रयासों की आलोचना की. साथ ही आजम खान के ‘मौलाना को राजनीति नहीं करनी चाहिए’ वाले बयान पर जमकर भड़ास निकाला है.

नूर अहमद अजहरी ने कहा कि आज मुल्क में एक तबका ऐसा है जो चाहता है कि उलमा मस्जिद और मदरसे की चारदीवारी में कैद रहें. वह चाहता है कि उलमा सिर्फ़ नमाज पढ़ाएं, फतवे दें मगर मैदान में न उतरे. क्योंकि वह जानता है कि उलमा ही असल इंकलाब लाने की कुव्वत रखते हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि उलमा को दबाने की कोशिशें नाकाम होंगी.

कुछ अहंकारी नेता उलमा के बढ़ते कद से परेशान

अजहरी ने कहा कि उलमा ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और वे ही समाज में क्रांति ला सकते हैं. उनकी राजनीतिक समझ को कम नहीं आंकना चाहिए. आजम खान जैसे नेता उलमा को मस्जिदों में कैद रखना चाहते हैं. उलमा मुखालिफ ताकत अकसर उलमा को सियासी मैदान में देख कर परेशान हो जाती हैं.

उन्होंने कहा कि यही वजह है कि आज भी कुछ सियासी दल और कुछ अहंकारी नेता उलमा के बढ़ते कद से परेशान हैं. वे नहीं चाहते कि कोई मौलाना, कोई मदरसे से निकलने वाला शख़्स संसद या राजनीति के मंच तक पहुंचे. मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को जिस अंदाज में आजम खान ने टारगेट किया है. वह निहायत ही अफसोसजनक है.

आजम खान ने मुसलमानों का कौन सा काम किया?

नूर अहमद अजहरी ने कहा कि वह आजम खान को काफी अरसे से जानते हैं. सत्ता और पावर में उनका अंहकार भी देखा. वह एक मगरूर और उलमा मुखालिफ शख़्स हैं जो हमेशा खुद को सबसे बड़ा नेता समझते हैं. उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब उनकी गिरफ्तारी हुई थी तो उनके हक में आवाज उठाने वाले उलमा ही थे. जबकि उनके शहर की अवाम खामोश थी.

उन्होंने कहा कि आजम खान खुद एक मौलाना के नाम पर मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी के संचालक हैं. जो सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मदद से बनी. अगर आपको ‘मौलाना’ शब्द से इतनी नफरत है तो यूनिवर्सिटी का नाम ‘जौहर’ पर क्यों रखा गया? उन्होंने सवाल किया कि आजम खान ने मंत्री रहते हुए मुसलमानों के लिए कौन सा बुनियादी काम किया?

मौलाना की गर्दन पतली नहीं है आजम खान

अजहरी ने कहा कि अब वक्त आ गया है जब उलमा को राजनीति की समझ होनी चाहिए. जिस दिन उलमा ने ठीक से सियासत पर दिमाग़ लगा लिया, उस दिन बहुत से नेता सियासत करना भूल जाएंगे. उन्होंने कहा, ‘तुम अखिलेश यादव को डरा सकते हो उलमा को नहीं. अखिलेश यादव को मुसलमान मुस्लिम हितैषी समझ कर वोट देता है आजम खान के नाम से नहीं.’

उन्होंने कहा कि टिकट उनको अखिलेश यादव ने खुद नहीं दिया तो उन से नाराजगी नहीं है, नाराजगी मौलाना से है. क्योंकि उनकी नज़र में मौलाना तो सिर्फ मस्जिद में इमामत कर सकता है, उसकी तो गर्दन पतली होती है. उन्होंने कहा कि आजम खान को बड़ी भूल है कि मौलाना की गर्दन पतली होती.