इस मंदिर में दर्शन से जीवन में आता है संतुलन, शिवलिंग नहीं, साक्षात विराजमान है शिव-पार्वती
क्या आपने कभी ऐसा मंदिर देखा है, जहां शिवलिंग नहीं, साक्षात भगवान शिव और मां पार्वती एक साथ विराजमान हैं. जहां दर्शन मात्र से आत्मा को परम शांति मिले. आज हम ऐसे ही अद्भुत मंदिर के बारे में बताते हैं, जो त्रेतायुग से जुड़ी मान्यताओं से भी समृद्ध है.
सावन का महीना शुरू हो चुका है, यह विशेष पवित्र महीना भगवान भोलेनाथ को समर्पित है. इस दौरान शिवभक्त अपने आराध्य महादेव की भक्ति में लीन रहते हैं. कांवड़ यात्रा से लेकर जलाभिषेक तक, भक्त महादेव के लिए विभिन्न अनुष्ठान करते हैं. पूरे देश में महादेव के 12 ज्योर्तिंलिंग के अलावा से भी कई अद्भुत मंदिर हैं, जो अपनी अलौकिक इतिहास और दिव्यता के चलते प्रसिद्ध है.
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काशी विश्वनाथ, देवघर जैसे धामों में आप मंदिर में शिवलिंग के दर्शन करते हैं. क्या आपने कभी ऐसा मंदिर देखा है, जहां शिवलिंग नहीं, साक्षात भगवान शिव और मां पार्वती एक साथ विराजमान हैं. क्या आपने कभी श्रद्धा की उस राह को छुआ है, जहां हर दर्शन आत्मा को परमशांति से भर दे? आज हम ऐसे ही अद्भुत मंदिर के बारे में बताते हैं.
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उत्तर प्रदेश के सुदूर दक्षिण में, पहाड़ों और जंगलों की गोद में बसा है सोनभद्र. इसी पवित्र भूमि पर स्थित है एक ऐसा मंदिर जो पूरे देश में अपनी पहचान लिए हुए है. यह है ‘शिवद्वार मंदिर’, जहां भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त मूर्ति विराजमान है. यहां दर्शन मात्र से ही मनुष्य अपने भीतर की अधूरी शक्ति को पूर्ण होते हुए अनुभव करता है.
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‘शिवद्वार धाम’ वो पवित्र स्थान जहां भक्त केवल प्रार्थना नहीं करते, बल्कि शिव और शक्ति के मिलन का जीवंत अनुभव करते हैं. ये सिर्फ मंदिर नहीं, आस्था का वो द्वार है, जहां आत्मा परमशक्ति से संवाद करती है. यह मंदिर अपनी अनूठी स्थापत्य कला और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. यहां दर्शन से दांपत्य जीवन में प्रेम, संतान प्राप्ति और जीवन में संतुलन मिलता है
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मान्यता है कि त्रेतायुग में जब भगवान शिव कैलाश की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तब उन्होंने मां पार्वती के संग यहीं कुछ समय विश्राम किया था. इसीलिए इसे ‘शिवद्वार’ कहा गया. मान्यता है कि यहां पूजा करने से दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है, संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है, और जीवन में संतुलन आता है. कहते हैं जहां शिव और शक्ति साथ हों, वहां जीवन में कोई बाधा नहीं ठहरती.
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कहा जाता है कि सन 1938 में सतद्वारी गांव के एक खेत में हल चला रहे किसान मोती महतो को भूमि के गर्भ से यह अनुपम प्रतिमा प्राप्त हुई. गांव के जमींदार परिवार की बहुरिया अविनाश कुवरि ने इस मूर्ति को श्रद्धा से स्थापित करवाया. इसके बाद यह स्थान धीरे-धीरे लोक आस्था का केंद्र बनता गया और आज यह पूर्वांचल ही नहीं, पूरे भारत के भक्तों का तीर्थ बन चुका है.
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यह मूर्ति 11वीं सदी की बताई जाती है तीन फीट ऊंची, काले पत्थर से निर्मित, और सृजन मुद्रा में स्थित. यह वही मुद्रा है जहां शिव और शक्ति मिलकर सृष्टि का संचालन करते हैं. यहाँ शिव अकेले नहीं, शक्ति के साथ हैं. और यही इस स्थान की विशेषता है. शायद इसीलिए, भक्त इसे ‘धरती पर शिव-शक्ति का साक्षात मिलन स्थल’ कहते हैं. जो सृष्टि का मूल है.