1.05 लाख में’सन्नी देओल’ तो 70 हजार में ‘शाहरुख’, औरंगजेब के समय से यहां होती आ रही गधों की नीलामी

चित्रकूट का प्रसिद्ध गधा मेला, जिसकी शुरुआत औरंगजेब ने 300 साल पहले की थी, इस बार फिर फिल्मी सितारों के नाम वाले गधों की वजह से चर्चा में रहा. 'सन्नी देओल' 1.05 लाख में बिका, वहीं 'शाहरुख' को 70 हजार मिले. औरंगजेब को जब अपने सैनिकों और गधों के बीमार पड़ने पर बाबा बालक नाथ ने भगवान मत्स्यगयेन्द्र नाथ से क्षमा मांगने की सलाह दी, तभी से यह मेला चला आ रहा है.

चित्रकूट में लगा गधा मेला

उत्तर प्रदेश का चित्रकूट वैसे तो भगवान राम की वजह से जाना और पहचाना जाता है. यहां वनवास के वक्त भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ काफी समय तक रहे थे. हालांकि यही चित्रकूट इन दिनों गधा मेले की वजह से सुर्खियों में रहता है. इस गधा मेले की शुरूआत मुगल बादशाह औरंगजेब ने कराई थी. रामघाट के पास दिवाली के दूसरे दिन लगने वाले इस तीन दिवसीय मेले में कई राज्यों से व्यापारी गधों की खरीद फरोख्त के लिए आते हैं.

बीते कुछ समय से यह मेला इसलिए भी चर्चा में रहता है कि यहां फिल्मी सितारों के नाम वाले गधों पर बड़ी बोली लगती है. इस बार भी फिल्मी सितारों के नाम वाले गधे ही सबसे ज्यादा डिमांड में रहे. मेले में आए गधा व्यापारी गोविंद त्रिपाठी के मुताबिक पहले दिन शाहरूख नाम का गधा आकर्षण का केंद्र था. इस गधे की बोली 70 हजार तक लगी थी. इस दौरान सन्नी देओल नाम का गधा आकर्षण का केंद्र बन गया. इस गधे की कीमत तो एक लाख 50 हजार रखी गई थी, लेकिन बोली 1 लाख 5 हजार पर आकर रूक गई.

तेरा क्या होगा सलमान?

गधा मेले में सलमान खान नाम का गधा भी बिक्री के लिए आया था. इसके मालिक ने इसकी कीमत 90 हजार रुपये रखी थी, लेकिन अब तक किसी भी व्यापारी ने इस गधे को खरीदने की इच्छा जाहिर नहीं की है. गधा व्यापारी गोविंद त्रिपाठी के मुताबिक पांच-10 हजार रुपये के गधे भी मेले में खूब आए हैं, इनकी बिक्री भी हो रही है, लेकिन चर्चा में फिल्मी सितारों के नाम वाले गधे ही हैं. उन्होंने बताया कि साल दर साल इस गधा मेले की रौनक खतम हो रही है. यही वजह है कि मेले में गधों की संख्या भी अब बहुत कम रह गई है.

रोचक है मेले का इतिहास

गधा मेला के आयोजकों के मुताबिक दुनिया का यह अनोखा गधा मेला है. इसकी शुरूआत करीब 300 साल पहले मुगल बादशाह औरंगजेब ने कराई थी. दरअसल, अपने लावलश्कर के साथ औरंगजेब एक बार चित्रकूट आया था. यहां उसने मत्स्यगयेन्द्र नाथ स्वामी मन्दिर में तोड़फोड़ करने की कोशिश की थी. लेकिन ऐसा करते समय उसके सैनिकों को उल्टी, दस्त होने लगी. वहीं, साथ में चल रहे गधे गिरकर मरने लगे. परेशान होकर औरंगजेब ने रामघाट पर धुनी रमाकर बैठे बाबा बालक नाथ से उपचार पूछा तो उन्होंने भगवान मत्स्यगयेन्द्र नाथ से क्षमा मांगने की सलाह दी. उस समय तक औरंगजेब के सभी गधे मर चुके थे.

औरंगजेब ने लगवाया मेला

अब चूंकि औरंगजेब को आगे जाना था और उसके गधे बचे ही नहीं, इसलिए उसने आसपास के इलाके में मुनादी कराई और लोगों को अपने गधे ऊंची कीमत पर बेचने की अपील की. उसी समय से इस स्थान पर गधों का मेला लगाने की परंपरा शुरू हो गई. बाद में गधों का यह मेला दो परिवारों के बीच वैवाहिक रिश्तों का जरिया भी बना. दरअसल दूर दराज से लोग इस मेले में गधों को खरीदने बेचने के लिए आते और अपने बेटे बेटियों के लायक वर की तलाश कर शादियां भी फिक्स करने लगे. हालांकि समय के साथ यह परंपरा भी अब खत्म होने की कगार पर है.