गीता में भगवान ने बताया कर्म प्रधान, फिर रामायण में क्यों कहा- होइहिं सोइ जो राम रचि राखा? दिमाग खोल देगा प्रसंग
गीता में भगवान कृष्ण कर्मयोग का उपदेश देते हैं, जबकि रामायण में चौपायी आती है कि "होइहिं सोइ जो राम रचि राखा". यह दोनों बातें सुनने में विरोधाभाषी लगती हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि दोनों महान ग्रंथों में वर्णित ऐसा क्यों है. दरअसल, यह दोनों बातें अलग अलग प्रसंग में कहीं गई हैं और जब तक पूरे प्रसंग की चर्चा ना हो, सही अर्थ सामने आ ही नहीं सकता. इस कहानी में इन्हीं दोनों प्रसंगों की चर्चा की गई है.

श्रीरामचरित मानस के बालकांड में एक चौपायी आती है, जिसमें लिखा है कि- होइहिं सोइ जो राम रचि राखा. इसका सीधा सा अर्थ है कि जो विधाता ने पहले से रच दिया है, वही होगा. इस चौपायी को पढ़ने के बाद यदि श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में 47वां श्लोक पढ़ें तो भ्रम की स्थिति बन जाती है. इसमें लिखा है कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ इसका अर्थ यह है कि तुम्हारा अधिकारी कर्म भर करने का है, इसलिए कर्म करो, फल की इच्छा ना करो. कर्म करने से उसके परिणाम बदल भी जाते हैं.
सवाल यहीं से उठता है कि श्रीराम चरित मानस के बालकांड में भगवान शंकर क्यों कहते हैं कि जो विधाता ने रच रखा है, वहीं होगा. यदि उनकी बात सही है तो फिर भगवान कृष्ण गीता में क्यों कहते हैं कर्म करो. जब होना वहीं है, जो पहले ही लिख दिया गया है तो फिर कर्म करने की जरूरत क्या है. यह दोनों प्रसंग दिमाग खोलने वाले हैं. यहां हम इन्हीं दोनों प्रसंग की व्याख्या विस्तार से करने वाले हैं. तो आइए फिर, शुरुआत श्रीरामचरित मानस से ही करते हैं.
श्रीरामचरित मानस के बालकांड में है चौपायी
श्रीरामचरित मानस के बाल कांड में चौपायी आती है कि ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहं प्रभु सुखधामा॥’ यह चौपायी उस समय की है जब भगवान शंकर माता पार्वती को रामकथा सुना रहे हैं. उस कथा में सीता हरण के बाद भगवान राम व्याकुल हो जाते हैं और सभी जीव जंतु, जड़ चेतन से सीता का पता पूछते हैं तो माता पार्वती को भगवान राम पर शक हो जाता है. वह भगवान शिव से पूछती हैं कि क्या ये वही राम है, जिनकी पूजा आप निरंतर करते हैं, यदि ये वही भगवान हैं तो फिर व्याकुल क्यों नजर आ रहे हैं.
भगवान शिव के समझाने पर भी नहीं मानी माता पार्वती
इस सवाल पर भगवान शिव माता पार्वती को खूब समझाने की कोशिश करते हैं. खूब तर्क भी देते हैं, लेकिन माता का संदेह मिटने का नाम नहीं ले रहा. यहां तक कि माता भगवान राम की परीक्षा के लिए भी तैयार हो जाती है. ऐसे में भगवान शिव को भविष्य का आभाष हो जाता है और फिर वह आखिर में इस चौपायी को कहते हैं. इस चौपायी का कत्तई यह मतलब नहीं है कि विधि के भरोसे ही रहा जाए और कर्म ना किया जाए. इसी बात को भगवान कृष्ण गीता में अर्जुन को भी समझाते हैं.
इसी प्रश्न पर अर्जुन को भी हुआ था भ्रम
गीता में अर्जुन को भी यही भ्रम हुआ था कि जब विधि द्वारा पहले से ही परिणाम लिख दिया गया है तो हम कर्म क्यों करें. इसी बात को समझाते हुए अपने विराट स्वरुप में भगवान कृष्ण उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि इंसान के अधिकार क्षेत्र में कर्म है, उसका फल नहीं. कोई भी व्यक्ति जैसा कर्म करता है, फल भी उसी के अनुसार होता है. कई बार कर्म की वजह से परिणाम बदल भी जाता है.



