हमारे पूर्वज रामपंथी थे… गुरु पूर्णिमा पर पातालपुरी मठ में 151 मुसलमानों ने ली दीक्षा
हम सभी के जीवन में गुरु का विशेष स्थान होता है. गुरु ही सदैव हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. इस गुरु पूर्णिमा पर वाराणसी के पातालपुरी मठ में एक बेहद अनोखा नजारा देखने को मिला. जहां 151 मुसलमानों ने एक साथ दीक्षा ली. इनका कहना है कि उनके पूर्वज रामपंथी थे.
‘गुरु पूर्णिमा’ हिंदू धर्म का प्रमुख पर्व है. हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर इसे मनाया जाता है. इस बार 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा मनाया गया. गुरु पूर्णिमा धर्म और जाति से ऊपर उठकर अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करने का सबसे बड़ा त्योहार है. यह गुरु और शिष्य के रिश्ते को मजबूत करने वाला पर्व है. क्योंकि, एक शिष्य के जीवन में गुरु का बड़ा योगदान होता है. शिष्य अपने गुरु से दीक्षा लेकर उनके बताए मार्ग पर चलता है.
गुरु पूर्णिमा पर वाराणसी के पातालपुरी मठ में इस बार एक अनोखा नजारा देखने को मिला. जहां 151 मुसलमानों ने एक साथ गुरु दीक्षा ली है. उनका कहना है कि भगवान राम के रास्ते पर चलकर ही देश और परिवार के लिए त्याग किया जा सकता है. यही जगद्गुरु का संदेश है. दीक्षा पाने वाले एक सख्स का कहना है कि उनके पूर्वज रामपंथी थे और इसी मठ के अनुयायी थे. आज हम भी दीक्षा लेकर धन्य हुए हैं.
भले ही हमारी पूजा पद्धति बदल गई है लेकिन…
दीक्षा पाकर शहाबुद्दीन तिवारी, मुजम्मिल, फिरोज, अफरोज, सुल्तान, नगीना, शमशुनिशा बहुत खुश थे. शहाबुद्दीन तिवारी ने कहा कि हमारे पूर्वज रामपंथी थे, इसी मठ के अनुयायी थे. भले ही हमारी पूजा पद्धति बदल गई है लेकिन हमारे पूर्वज, परम्परा, रक्त और संस्कृति नहीं बदल सकती. वहीं, एक ने कहा कि जो धर्म हलाल-हराम और नफ़रत सिखाता हो उससे हम दूर रहना ही पसंद करेंगे. हम शांति चाहते हैं.
जीवन जीने का तरीका बिना गुरु के सम्भव नहीं
हम सभी के जीवन में गुरु का विशेष स्थान होता है. इन्हीं के जरिए व्यक्ति जीवन जीने की कला और लक्ष्यों को पूरा करने का मार्गदर्शन पाता है. इसके अलावा गुरुजनों की सहायता से समय की अहमियत और कठिन समय की पीड़ा समझ आती हैं. यही नहीं गुरु ही सदैव हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. इसलिए उनके प्रति प्रेम, लगाव और सम्मान व्यक्त करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद खास है.
शास्त्रों के मुताबिक इस तिथि पर महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था. दीक्षा लेकर अपने गुरु के बताए मार्ग पर चलना, लोक कल्याण करना, देश के लिए जीना, पारिवारिक एकता बनाये रखने के लिए त्याग करना, सभी लोगों का सम्मान करना ही असली गुरुदीक्षा है. जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना और जीवन जीने का तरीका बिना गुरु के सम्भव नहीं है.