3 बार MLA, MP फिर जेल…कभी पूर्वांचल में थी ‘सल्तनत’, कौन हैं बाहुबली उमाकांत यादव, जिनकी आज हो सकती है रिहाई?

सात साल बाद आखिरकार पूर्वांचल के बाहुबली उमाकांत यादव आज जेल से बाहर आ सकते हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें शर्तों के साथ जमानत दे दी है. तीन बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके उमाकांत यादव पर 37 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे. इसमें 1995 में शाहगंज रेलवे स्टेशन पर गोलीकांड, 1998 में बसपा प्रत्याशी अकबर अहमद डंपी पर फायरिंग और 2007 में एक विधवा का घर गिराने का मामला शामिल है.

पूर्व बाहुबली सांसद उमाकांत यादव

पूर्वांचल के बाहुबली उमाकांत यादव आज सात साल बाद रिहा हो सकते हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शर्तों के साथ उनकी जमानत मंजूर कर ली है. ये वही उमाकांत यादव हैं, जिनकी कभी पूर्वांचल में सल्तनत थी. आजमगढ़ से लेकर जौनपुर तक इनका नाम ही काफी था, लेकिन सात साल पहले जेल जाने के साथ इनका सूरज डूब गया. अब उनकी रिहाई की खबर से उनके समर्थकों में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है. जौनपुर की खुटहन विधानसभा सीट से तीन विधायक और एक बार सांसद रहे उमाकांत यादव को 27 साल पहले हुए एक हत्याकांड में उम्रकैद की सजा हुई थी.

अब चूंकि उनकी रिहाई हो रही है, इसलिए यह सही मौका है कि तीन बार के विधायक और एक बार सांसद रहे उमाकांत यादव के बारे में ठीक से जान लिया जाए. आइए, फिर शुरू से शुरू करते हैं. 3 फ़रवरी 1954 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में रहने वाले एक किसान परिवार में पैदा हुए उमाकांत यादव प्रदेश के हनकदार नेताओं में शुमार हैं. बचपन से ही मनबढ़ स्वभाव के तो थे ही, यादव विरादरी से संबंध रखने और राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से सपा के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव के कृपा पात्र बने.

1991 में शुरू की राजनीति

हालांकि उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत साल 1991 में बसपा के बैनर तले की थी. बसपा ने उन्हें जौनपुर के खुटहन विधानसभा सीट से टिकट दिया था और वह जीते भी. दो साल बाद यानी 1993 के विधानसभा चुनाव में भी वह बसपा कोटे से सपा-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार बने. वहीं, 1995 में सपा-बसपा का गठबंधन टूटा तो उन्होंने मुलायम सिंह यादव का समर्थन कर दिया था. फिर 1996 में वह सपा के टिकट पर उसी सीट से चुनाव जीते. हालांकि इसी दौरान उनके ऊपर सपा के महाराष्ट्र अध्यक्ष अबू आसिम आज़मी के एक रिश्तेदार की ज़मीन हड़पने का आरोप लगा था. इसी दौरान 1995 गोली कांड में उनकी गिरफ्तारी भी हो गई थी.

मायावती ने घर बुलाकर कराया अरेस्ट

इस घटनाक्रम की वजह से पार्टी में उनके रिश्ते बिगड़ गए और मुलायम सिंह यादव ने उन्हें 2002 के चुनावों में टिकट नहीं दिया था. इससे नाराज होकर उमाकांत यादव ने साल 2004 के लोकसभा चुनावों से पहले बसपा में वापसी कर ली. इसके बाद बसपा ने उन्हें मछलीशहर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया. उस समय उन्होंने जेल में रहते हुए बीजेपी के दिग्गज नेता केशरी नाथ त्रिपाठी को शिकस्त दी थी. इस विजय के बाद वह जेल से बाहर तो आ गए, लेकिन साल 2007 में एक विधवा का घर गिराने का मामला सामने आने के बाद खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उन्हें अपने आवास पर बुलाकर साल 2007 में उन्हें अरेस्ट करा दिया था.

उमाकांत के खिलाफ मुकदमों की लंबी लिस्ट

बाहुबली उमाकांत यादव के खिलाफ आपराधिक मुकदमों की लंबी लिस्ट है. इनमें गैंगस्टर एक्ट समेत 37 मुकदमे तो पुलिस के रिकार्ड में दर्ज हैं. जबकि दावा किया जाता है कि इससे कहीं अधिक मामले ऐसे भी हैं, जिन्हें उमाकांत यादव ने अपनी हनक की वजह से दर्ज ही नहीं होने दिया था. इनमें दो मामले काफी चर्चित रहे हैं. एक मामला 1998 के लोकसभा चुनावों के दौरान बसपा उम्मीदवार डंपी पर फायरिंग का है तो दूसरा मामला जौनपुर के शाहगंज रेलवे स्टेशन की जीआरपी चौकी पर अंधाधुंध फायरिंग का. इसमें जीआरपी के एक कांस्टेबल की मौत हुई थी. वहीं कई अन्य घायल हो गए थे. इसी मामले में जौनपुर की अदालत ने उन्हें साल 2022 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

7 साल से जेल में थे उमाकांत

बाहुबली उमाकांत यादव को साल 2017-18 में फिर एक मामले में गिरफ्तारी हो गई. इसके बाद कोर्ट में सभी मामलों का एक साथ ट्रॉयल शुरू हो गया. इसी दौरान जौनपुर की अदालत ने 8 जुलाई 2022 को जीआरपी चौकी पर फायरिंग के मामले में उमाकांत यादव समेत छह लोगों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी. उसके बाद से ही वह जेल में अपनी सजा काट रहे थे. हाल ही में उमाकांत यादव ने अपनी उम्र और बीमारी का हवाला देकर हाईकोर्ट में जमानत की अर्जी लगाई थी. इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सात साल बाद उन्हें सशर्त जमानत दे दी है.