मायावती का सेल्फ-गोल! योगी की तारीफ रणनीति का हिस्सा या फिर बड़ी भूल

कई साल बाद मायावती फिर से मंच पर दिखीं. लेकिन क्या उन्होंने इस दौरान सीएम योगी की तारीफ कर सेल्फ गोल कर लिया. फिलहाल, सीएम योगी की तारीफ के बाद समाजवादी पार्टी और कांग्रेस उनपर हमलावर है और बीजेपी से सांठगांठ करने के आरोप लगा रहे हैं.

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बड़े वक्त बाद मायावती अपने पुराने तेवरों में दिखीं. उन्होंने गुरुवार यानी 10 अक्टूबर को लखनऊ में आयोजित एक रैली में अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन किया. इस दौरान उन्होंने अपने जमीनी आधार को मजबूत करने और भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी के रूप में पेश कर भविष्य की रणनीति भी स्पष्ट की. लेकिन इस रैली में मायावती की एक टिप्पणी ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है.

दरअसल मायावती ने अपनी रैली में सीएम योगी आदित्यनाथ की तारीफ की है. अब सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या मायावती ने अनजाने में अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली? इसके अलावा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर तीखा हमला इस बात का संकेत है कि बसपा की असली लड़ाई भाजपा से कम, सपा से ज्यादा है.

याद आए मायावती के पुराने दिन

बसपा के दावे के मुताबिक मायावती की रैली में 5 लाख की भीड़ जुटी. वर्षों बाद मायावती ने जिस जोश और आत्मविश्वास के साथ मंच संभाला तो उनके समर्थको पुराने दिन याद आ गए. मंच पर अकेली कुर्सी, हल्के रंग का सूट, और पन्ने पर लिखे हुए भाषण के साथ मायावती ने अपने चिर-परिचित अंदाज में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. लेकिन इस बार उनका भाषण केवल कांशीराम को श्रद्धांजलि तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह 2027 के विधानसभा चुनावों की रणनीति का एक मजबूत संदेश था.

योगी की तारीफ कर क्या माया की रणनीति या भूल?

मायावती ने अपने भाषण की शुरुआत में ही सपा पर हमला बोला और उसी क्रम में योगी सरकार की तारीफ कर डाली. उन्होंने कहा कि सपा सरकार ने दलित नेताओं के स्मारकों के लिए आवंटित धनराशि रोकी, जबकि योगी सरकार ने बसपा के अनुरोध पर ध्यान देकर इन स्मारकों की मरम्मत के लिए पार्कों के टिकट से होने वाली आय का उपयोग करने की अनुमति दी. यह तारीफ शायद धन्यवाद के तौर पर थी, लेकिन इसका समय और संदर्भ गलत साबित हुआ.

मायावती पर बीजेपी से सांठगांठ के आरोप

विपक्षी दलों, खासकर सपा और कांग्रेस, ने इसे तुरंत भुनाने की कोशिश की. मायावती पर पहले से ही भाजपा के साथ गुप्त सांठगांठ के आरोप लगते रहे हैं, और इस टिप्पणी ने उन आरोपों को हवा दे दी. राजनीतिक विश्लेषक इसे मायावती का ‘आत्मघाती गोल’ मान रहे हैं. “मायावती का योगी सरकार की तारीफ करना उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. यह उनके पारंपरिक वोटरों, खासकर मुस्लिम समुदाय को, जो पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक उनके साथ रहा है, नाराज कर सकता है.

सपा पर तीखा हमला, BJP पर नरम रुख

मायावती का सबसे तीखा हमला सपा और उसके नेता अखिलेश यादव पर था. उन्होंने अखिलेश को ‘दोगला’ करार देते हुए कहा कि सपा सत्ता में आने पर अपने ही पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को भूल जाती है. मायावती ने सपा पर दलित नेताओं के सम्मान में शुरू की गई योजनाओं को बंद करने और उनके नाम पर रखे गए शहरों के नाम बदलने का आरोप लगाया. उन्होंने कांग्रेस को भी नहीं बख्शा और उसे ‘खोखली बातें’ करने वाली पार्टी बताया.

लेकिन सवाल यह है कि मायावती का गुस्सा भाजपा से ज्यादा सपा और कांग्रेस पर क्यों केंद्रित था? विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा के पीडीए फॉर्मूले ने बसपा के वोट बैंक, खासकर दलित और मुस्लिम मतदाताओं, को भारी नुकसान पहुंचाया. सपा ने पिछड़ी जातियों, दलितों और अल्पसंख्यकों को एक साथ लामबंद करने में सफलता हासिल की, जिससे बसपा का पारंपरिक वोट बैंक कमजोर हुआ. यही वजह है कि मायावती की रणनीति सपा को कमजोर करने और अपने खोए हुए आधार को वापस पाने पर केंद्रित है.

आकाश आनंद का लॉन्च, नई पीढ़ी का आगाज

रैली का एक और अहम पहलू था मायावती के भतीजे आकाश आनंद का प्रभावशाली लॉन्च. मायावती के भाषण से ठीक पहले आकाश ने समर्थकों को संबोधित करते हुए उन्हें पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनाने का आह्वान किया. भीड़ ने “आकाश आनंद जिंदाबाद” के नारों से उनका स्वागत किया. मायावती ने भी स्पष्ट किया, “जैसे आप कांशीराम के बाद मेरे साथ खड़े रहे, वैसे ही मेरे बाद आकाश के साथ खड़े रहिएगा.” यह न केवल आकाश की आधिकारिक लॉन्चिंग थी, बल्कि बसपा के भीतर उनके विरोधियों को भी एक सख्त संदेश था.

मायावती ने अपने करीबी सहयोगी सतीश चंद्र मिश्रा के बेटे कपिल मिश्रा को भी मंच पर जगह दी. जातिगत समीकरणों को संतुलित करने के लिए भाई आनंद कुमार, भतीजा आकाश आनंद,सतीश चंद्र मिश्रा, उमा शंकर सिंह,विश्वनाथ पाल, मुकाद अली को भी प्रमुखता दी गई. यह दिखाता है कि मायावती नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने के साथ-साथ पार्टी के सामाजिक समीकरणों को भी मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं.

शक्ति प्रदर्शन, लेकिन चुनौतियां बरकरार

यह रैली बसपा के लिए एक शक्ति प्रदर्शन थी, जो यह दिखाने की कोशिश थी कि मायावती का जनाधार अब भी बरकरार है. पार्टी ने महीनों तक इस रैली की तैयारी की, और इसका असर भी दिखा. लेकिन चुनौतियां कम नहीं हैं. मायावती की लंबी खामोशी और राष्ट्रीय स्तर पर कम सक्रियता ने उनके राजनीतिक संदेश को कमजोर किया है. केवल पारंपरिक वोटों के दम पर सत्ता हासिल करना मुश्किल है, और इसके लिए नए समूहों तक पहुंचना जरूरी है.

मायावती ने अपने भाषण में कहा, “मैं लड़ूंगी, अकेले लड़ूंगी, और जीतूंगी. आपको बहनजी को फिर से सत्ता में लाना होगा.” लेकिन उनकी राह आसान नहीं है. योगी सरकार की तारीफ ने उनके मुस्लिम मतदाताओं को नाराज करने का जोखिम पैदा किया है, जो पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक उनके साथ रहे हैं. साथ ही, सपा के पीडीए फॉर्मूले ने बसपा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा किया है.

मायावती को स्पष्ट करना होगा अपना संदेश

राजनीति में धारणा अक्सर हकीकत पर भारी पड़ती है. मायावती की तारीफ ने अनजाने में ही सपा और कांग्रेस को मौका दे दिया कि वे बसपा पर भाजपा के साथ गठजोड़ का आरोप और मजबूत करें. हालांकि, 2027 के चुनाव अभी डेढ़ साल दूर हैं, और मायावती के पास समय है कि वे इस नुकसान को कम करें. लेकिन इसके लिए उन्हें अपने संदेश को और स्पष्ट करना होगा, खासकर अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं के बीच.

रैली ने यह तो साबित कर दिया कि मायावती अब भी एक ताकत हैं, लेकिन योगी सरकार की तारीफ और सपा पर तीखा हमला उनकी रणनीति का हिस्सा था या अनजाने में हुई भूल, यह आने वाला समय ही बताएगा. फिलहाल, मायावती की यह रैली न केवल उनके समर्थकों के लिए एक जोश भरने वाली थी, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नया मोड़ लाने वाली भी साबित हो सकती है.