आजम खान से मुलाकात के बाद बदलेगा समीकरण? मायावती की रैली से पहले अखिलेश का दांव
तमाम सियासी कयासों के बीच आजम खान और अखिलेश यादव के बीच मुलाकात होने वाली है. इधर बसपा भी अपने जमीनी पकड़ को रामपुर में मजबूत करना चाहती है. इसके लिए 09 अक्टूबर में मायावती की रैली भी होने वाली है. ऐसे में रैली से एक दिन आजम-अखिलेश की मुलाकात को सियासी पंडित बेहद अहम मान रहे हैं.

खबर है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव 8 अक्टूबर को रामपुर पहुंचकर आजम खान से मुलाकात करेंगे. आजम खान को हाल ही में 23 महीने तक जेल की सलाखों के पीछे बिताने के बाद रिहा किया गया है. अखिलेश यादव-आजम खान की मुलाकात गिले-शिकवे मिटाने का तो मौका देगी ही साथ में सपा के आंतरिक संतुलन को साधने में भी मदद करेगा.
समाजवादी पार्टी इस मुलाकात के जरिए 2027 में होने वाले विधानसभा को देखते हुए चुनावी रणनीति को भी मजबूत करने का प्रयास करेगी. बड़ी बात यह है कि यह दौरा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती की 9 अक्टूबर को रामपुर में प्रस्तावित रैली से ठीक एक दिन पहले हो रहा है. सियासी जानकारों के मुताबिक यह अखिलेश यादव का एक सोचा-समझा कदम है.
समाजवादी पार्टी के कार्यक्रम के मुताबिक अखिलेश यादव लखनऊ से सुबह 10.30 बजे निजी हेलीकॉप्टर के जरिए बरेली जाएंगे. इसके बाद बरेली से सड़क मार्ग के जरिए 11.30 बजे आजम खान के यहां पहुंचेगे. अखिलेश यादव के साथ रामपुर के सांसद मोहिबुल्ला नदवी भी हो सकते हैं. मोहिबुल्ला नदवी को 2024 लोकसभा चुनाव में आजम खान के इच्छा के खिलाफ टिकट दिया गया था.
क्या होगी बातचीत का केंद्र?
आजम खान को यूपी सपा का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा माना जाता है. रामपुर सहित कई जिलों में मुस्लिम समाज में उनकी मजबूत पकड़ है. जेल से रिहाई के बाद उन्होंने मीडिया को दिए इंटरव्यू में भावुक बयान दिए. इस दौरान उन्होंने मुलायम सिंह यादव के साथ अपने पुराने रिश्ते का जिक्र किया. कभी अखिलेश को बेटा जैसा बताते हुए उनपर तंज कसा.
आजम के बयान ने सियासी कयासों को हवा दी
आजम खान रिहाई के बाद बसपा में जाने की अटकलों पर उन्होंने विराम लगाते हुए कहा था कि मैं बिकने वाला नहीं हूं. लेकिन अखिलेश के सत्ता में आने पर सभी मुकदमे वापस होंगे वाले बयान पर उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि शायद अब जरूरत ना पड़े. उनके इस बयान ने फिर से सियासी कयासों को हवा दे दी है.
क्या चाहते हैं आजम?
सियासी जानकारों का मानना है कि इस मुलाकात का मुख्य एजेंडा सपा के नेतृत्व का संतुलन साधना होगा. एक तरफ आजम समर्थक उनकी पुरानी भूमिका, कट्टर मुस्लिम नेता के रूप में वापसी चाहते हैं. दूसरी तरफ, आजम की अनुपस्थिति में खुद को मुस्लिम चेहरा बनाने वाले अन्य नेता डर रहे हैं कि उनकी उपयोगिता कम न हो जाए. अखिलेश PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति के तहत हर वर्ग को साध रहे हैं. खासकर भाजपा की 80-20 हिंदुत्व वाली रणनीति को तोड़ने के लिए. ऐसे में आजम जैसे कट्टर चेहरे को कैसे फिट किया जाए, यही बड़ा सवाल बनते जा रहा है.
आजम की वापसी से डर रहे अन्य मुस्लिम नेता!
सपा के भीतर यह मुलाकात एक राजनीतिक द्वंद्व को जन्म दे रही है. आजम की रिहाई ने पार्टी को रणनीतिक कसौटी पर कस दिया है. एक ओर वे भावुक बयानों से माहौल बना रहे हैं. दूसरी ओर अन्य मुस्लिम नेता उनकी वापसी से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. 2022 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनावों में सपा को मुस्लिम वोटों का पूरा साथ मिला था, लेकिन अब पार्टी नहीं चाहती कि आजम ही एकमात्र मुस्लिम चेहरा बनें.
आजम को क्या संदेश देंगे अखिलेश
सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश आजम को संदेश देंगे कि पार्टी उनके साथ है, लेकिन फैसलों का केंद्र वे अकेले नहीं होंगे. सपा की सबसे बड़ी चिंता ध्रुवीकरण का डर है. आजम का पुराना रवैया तीखी बयानबाजी, भाजपा को हिंदुत्व का मौका दे सकता है. इसलिए, मुलाकात में उन्हें संयमित भूमिका निभाने की सलाह दी जा सकती है .एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह मुलाकात गिले-शिकवे मिटाने के साथ-साथ संतुलन बनाने की होगी. आजम को अकेला नहीं छोड़ा जाएगा, लेकिन पार्टी की PDA रणनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
मायावती की रैली से पहले सपा का काउंटर
बता दें कि मायवती भी 9 अक्टूबर को रामपुर में रैली करने जा रही है. वह रामपुर में बसपा की जमीनी पकड़ को मजबूत करना चाहती हैं. लेकिन यहां आजम खान का प्रभाव अब भी बरकरार है. सपा इसे अपने पक्ष में मोड़ने का मौका मान रही है. ऐसे में आजम खान और अखिलेश की मुलाकात अहम कड़ी साबित हो सकती है.