अयोध्या: इतिहास-भूगोल भी हमारा न रहेगा… बृहस्पति कुंड में दक्षिण के संतों की प्रतिमाओं को लेकर बढ़ा विवाद

अयोध्या के बृहस्पति कुंड पर प्रतिमा विवाद ने एक नई बहस छेड़ दी है. कुंड के अंदर दक्षिण भारतीय संतों की प्रतिमाओं की स्थापना पर संत समाज नाराज हैं. अयोध्या के महंत मिथिलेश नंदिनी शरण ने इसपर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है. उनका आरोप है कि अयोध्या की मूल पहचान मिट सकती है.

अयोध्या बृहस्पति कुंड विवाद Image Credit:

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को अयोध्या में बृहस्पति कुंड का उद्घाटन किया. बृहस्पति कुंड का पुनर्निर्माण उत्तर-दक्षिण भारत संस्कृति के रुप में हुआ है. कुंड में दक्षिण भारतीय संतों त्यागराज स्वामीगल, पुरंदर दास और अरुणाचल कवि की मूर्तियों का अनावरण किया गया है. वहीं, इसके 24 घंटे की भीतर ही विवाद शुरू हो गया है.

अयोध्या धाम के संत और हनुमंत निवास के महंत मिथिलेश नंदिनी शरण ने बृहस्पति कुंड को लेकर बेहद तीखा हमला बोला है. साथ ही कुंड में देवगुरु बृहस्पति की मूर्ति न होने पर गहरी चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि अयोध्या के पौराणिक तीर्थ बृहस्पति कुण्ड का जीर्णोद्धार हुआ है. लेकिन देवगुरु बृहस्पति आपको यहां नहीं दिखेंगे.

‘बृहस्पति कुंड एक हवनकुण्ड जैसा बचा है’

मिथिलेश नंदिनी शरण ने सोशल मीडिया पर एक लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा है. इसमें उन्होंने लिखा, ‘इस कुण्ड के द्वार पर बुद्धाकृतियां आपको दिखेंगी. अन्दर भी तीन अन्य प्रतिमाएं दिखेंगी पर देवगुरु बृहस्पति आपको यहां नहीं दिखेंगे. यह कुण्ड सरकारी/गैरसरकारी अतिक्रमण के बाद एक हवनकुण्ड जैसा बचा है जहां आपको बृहस्पति के दर्शन नहीं होंगे.’

उन्होंने कहा, ‘जातीय-प्रान्तीय और भाषायी राजनीति का उल्लू सीधा करने के लिये सारे आर्ष वाङ्मय, रामायण-महाभारत आदि को आग लगाकर उससे समरसता की भस्म बनाने का कार्य चल रहा है. देखना यह है कि यह चमत्कारी भस्म राजसत्ता को अक्षुण्ण कर पाती है या नहीं. अब हम अयोध्यावासी कहां जायें, किसके आगे रोयें और किससे पूछें?

आस्था की नगरी छीनते देखना भी जीने नहीं देता

मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा, ‘अयोध्या के सन्त नहीं बोलेंगे, वे इसके फल से सुपरिचित हैं. नागरिक अपने रोजमर्रा के दुःखों से ही नहीं उबर पा रहे. कोई मार्ग नहीं दिखाई देता. अपनी निष्ठा के विरुद्ध अयोध्या छोड़ जाने का विकल्प आत्मघात जैसा लगता है. इस त्रासदी के बीच अयोध्या में दिन-ब-दिन अपनी आस्था की नगरी को छीनते देखना भी जीने नहीं देता.’

उन्होंने कहा कि हमें श्रीरामजन्मभूमि मिल गयी है, इस प्रसन्नता का कोई मोल नहीं हो सकता. इस उद्यम में जिनका-जैसा भी सहयोग मिला हो, अयोध्यावासी बारम्बार कृतज्ञ हैं. पूज्य सन्तों के कठिन संघर्ष के साथ-साथ संघ, भाजपा और विहिप इस यात्रा के नायक रहे हैं, उनका महत्त्व स्वीकृत है. पर इस सबके बावजूद इस संघर्ष का मूल्य क्या अयोध्या की आत्मवत्ता छीनकर चुकाया जाना चाहिए?

अयोध्या से अयोध्या को छीन लेना सांस्कृतिक कैसे?

संत ने आगे कहा कि भाजपा सरकार ने श्रीरामजन्मभूमि और अयोध्या को लेकर जो योगदान किया है, वह स्तुत्य है और पीढ़ियों तक स्मरणीय है. पर क्या इससे अयोध्या को सत्ता का उपनिवेश बना दिया जाना चाहिए! मुझे नहीं पता कि इसका कौन-क्या अर्थ समझेगा और उसे मेरी बात कितनी समझ में आयेगी, पर यह सब असहनीय है इसलिए कहना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा कि बजट देकर, सड़कें बनाकर, रोजगार-बाजार विकसित करके अयोध्या से अयोध्या को छीन लेना सांस्कृतिक कैसे हो सकता है. इसके इतिहास-भूगोल को राजनीति और चुनावी कुण्ठाओं से विरूपित कर देना कैसे स्वीकार्य हो सकता है. गोस्वामी श्रीतुलसीदास जी ने कहा था कि ‘ बनै तो रघुबर से बनै कै बिगरै भरपूर’ श्रीरघुनाथ जी बनाएं तो हमारी बिगड़ी बने अन्यथा सब बिगड़-जाय, आग लग जाय. हमें अपने प्रभु के अतिरिक्त किसी से अपना हित नहीं चाहिए.