गांव वाले नाकाम, अधिकारी फेल… नवरात्रि में बच्चों का ‘कवच’ बनी माताएं, हाथ में लाठी लेकर दे रहीं पहरा

बहराइच में आदमखोर भेड़िए का आतंक जारी है. अब तक चार बच्चों का शिकार कर चुके भेड़िए को रोकने के लिए यहां की माताएं अब खुद चंडी बन चुकी हैं. हाथों में लाठी लिए इन माताओं ने गांव में पहरेदारी शुरू कर दी है. बड़ी बात यह कि अब पहरेदारी कर रहे गांव वाले या वन विभाग की टीमें भी भेड़िए को नहीं रोक पायीं, लेकिन माताओं के मैदान में उतरते ही भेड़िया गायब हो गया है.

मांओं ने खुद उठाया बच्चों की रक्षा का जिम्मा

बहराइच में आदमखोर भेड़िए की दहशत बदस्तूर कायम है. पहले गांव वालों ने पहरेदारी की, वन विभाग की टीमें भी आईं, लेकिन आदमखोर भेड़िए के आगे किसी की एक ना चली. ऐसे में बच्चों पर खतरा देखकर इस नवरात्रि में खुद माताओं ने अपने बच्चों की सुरक्षा की कमान संभाल ली है. हाथों में लाठी लिए ये माताएं पूरी रात गांव में पहरेदारी कर रहीं है. इनकी तस्वीरें इस समय सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रही हैं.

बहराइच के कैसरगंज इलाके में अब तक इस आदमखोर भेड़िए ने दो दर्जन से अधिक लोगों का शिकार किया है. इस दौरान चार मासूम बच्चों की मौत भी हो चुकी है. इन घटनाओं को देखते हुए गांवों में लोग रात-रातभर जागकर पहरेदारी कर रहे थे. यहां तक कि सूचना मिलने पर एक्शन में आईं वन विभाग की टीमों ने खूब पिंजड़े लगाए और निगरानी की, लेकिन किसी को भेड़िया नजर तक नहीं आया. वहीं गांवों में भेड़िए का शिकार लगातार जारी रहा.

महिलाओं ने खुद शुरू की पहरेदारी

ऐसे हालात में क्षेत्र की माताओं ने अपने खुद दुर्गा बनकर अपने बच्चों की सुरक्षा का बीड़ा उठाया है. इन महिलाओं ने अपने बच्चों के लिए फुलप्रूफ सुरक्षा कवच तैयार किया है. जब से इन महिलाओं ने पहरेदारी शुरू की है, भेड़िए ने गांव में घुसने की भी हिम्मत नहीं दिखाई है. अब ये महिलाएं पूरी रात जागकर गांव में पहरेदारी कर रहीं हैं. बता दें कि क्षेत्र के मझारा तौकली से लगते करीब दर्जन भर गांवों में एक महीने से आदमखोर भेड़िए का आतंक है.

इन गांवों में भेड़िए की दहशत

भेड़िए की दहशत ऐसी थी कि वह आकर माताओं की गोंद से भी बच्चों को उठा ले जाता था. इससे इन गांवों के लोग बड़े दहशत में थे. खासतौर पर बभनन पुरवा, भिरगू पुरवा, बाबा पटाव, देवनाथ पुरवा, गांधीगंज सहित तमाम गांव के लोगों की रातों की नींद उड़ चुकी थी. लोग रात भर पहरेदारी कर रहे थे, फिर भी कोई लाभ नहीं हो रहा था. ऐसे में अब इन गांवों में महिलाओं ने अपने बच्चों की सुरक्षा की कमान संभाली है.