ना जंग लगने का डर, न वेल्डिंग मशीन से कटने का खतरा; बलिया की ट्रेजरी में आज भी है अंग्रेजों की तिजोरी

बलिया की धरती अंग्रेजों के समय में खूब राजस्व देती थी, लेकिन चोरी-डकैती के कारण ब्रिटिश सरकार ने 1921 में यहां 4 खास तिजोरियां बनवाईं. ये तिजोरियां आज भी वैसी ही हैं, न जंग लगा, न रंग उतरा. जमीन में तीन-चौथाई धंसी ये तिजोरियां कथित तौर पर गैश कटर से भी नहीं कटतीं. ये तत्कालीन चार तहसीलों का राजस्व सुरक्षित रखने के लिए बनी थीं, जो अब इतिहास का हिस्सा हैं.

कोषागार में तिजोरी दिखाते जिला कोषाधिकारी

आज के समय में बलिया भले ही उत्तर प्रदेश का पिछड़ा जिला है, लेकिन अंग्रेजों के जमाने में यहां की धरती सोना उगलती थी. ब्रिटिश सरकार को यहां से हर महीने खूब राजस्व भी मिलता था. चूंकि गंगा और घाघरा के दोआबे में बसे इस क्षेत्र में चोरी और लूट डकैती की वारदातें भी खूब होती थीं. इसलिए अंग्रेजों ने राजस्व की सुरक्षा के लिए बलिया की ट्रेजरी में खास किस्म की 4 तिजोरियां बनवाई थीं. यह चारों तिजारियां आज भी अपने उसी स्वरुप में मौजूद हैं.

100 साल बाद भी इन तिजोरियों पर ना तो जंग लगा है और ना ही रंग उतरा है. दावा किया जाता है कि जमीन में आधा धंसी इन तिजोरियों पर गैश कटर भी काम नहीं करता. आइए, आज इस प्रसंग में आपको अंग्रेजों की उन्हीं तिजोरियों की कहानी बताते हैं. दरअसल अंग्रेज सरकार ने भले ही बलिया को 1 नवंबर 1979 में जिला घोषित किया था, लेकिन इस इलाके से एकत्र होने वाले राजस्व का रखरखाव उस समय भी बलिया में होता था.

1921 में बनीं थी ये चार तिजोरियां

इसके लिए अंग्रेजों ने साल 1900 में यहां कोषागार बनाया था. चूंकि उन दिनों देश में अंग्रेजों के खिलाफ लोग सिर उठाने लगे थे. जगह जगह राजस्व लूट की खबरें भी आने लगीं थी. इसलिए अंग्रेज सरकार ने 21 साल बाद यानी साल 1921 में कोषागार के अंदर चार तिजोरियों का निर्माण कराया. यह चारों तिजोरियों चार अलग अलग तहसीलों से आने वाले राजस्व को जमा करने के लिए थीं.

तीन चौथाई भूमिगत हैं तिजोरियां

इन तिजोरियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनके निर्माण ब्रिटिश वास्तु कला का इस्तेमाल किया गया है. यह चारों तिजोरियां जमीन में तीन चौथाई धंसी हुई है. ऊपर का करीब एक फुट हिस्सा जमीन के बाहर है. इसमें इस तरह के लोहे का इस्तेमाल किया गया है कि आज भी इनमें ना तो जंक लगा है और ना ही रंग उतरा है. बलिया के कोषागार अधिकारी आनंद दुबे के मुताबिक अंग्रेजों ने बहुत ही सुव्यवस्थित सिस्टम से इन तिजोरियों को बनाया था. यहां खजाना रखा जाता था और कैश कलेक्शन भी यहीं से होता था.

चारों तहसील की अलग हैं तिजोरियां

उस समय जिले में चार तहसीलें बैरिया,रसड़ा, बांसडीह और बलिया सदर थीं. इन चारों तहसीलों के कलेक्शन को जमा करने के लिए यह चारों तिजारियां थी. चूंकि उन दिनों में सोने, चांदी और सिक्कों के रूप में राजस्व आता था. इसलिए उन्हें गिनकर कपड़े की थैलियों में डालकर इन तिजोरियों में रख दिया जाता था. बाद के समय में कैश भी रखा जाने लगा. हालांकि अब काफी समय से इन तिजारियों का इस्तेमाल नहीं होता. बल्कि बैंकिंग सिस्टम के चलन के बाद से तो सारा कैश बैंक में ही जमा होता है और ट्रेजरी से ऑनलाइन ट्रांजेक्शन होता है.