क्रांति का कुआं, जिसका पानी पीकर बलिया में हुई बगावत, इस रूप में होने जा रहा जीर्णोद्धार
बलिया में 'क्रांति का कुआं', जिसे महादेव कूप भी कहते हैं, के दिन बहुरने वाले हैं. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण प्रतीक इस कुएं का इतिहास हजारों साल पुराना है. यह कुआं कभी ददरी मेले के श्रद्धालुओं का ठिकाना था, पर बाद में बलिया के बागियों और क्रांतिकारियों का केंद्र बना. यहीं से 1870 के दशक में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका गया और 1942 की अगस्त क्रांति की रणनीति भी बनी. आज भी यह कुआं बलिया के गौरवशाली इतिहास का साक्षी है.
उत्तर प्रदेश में क्रांति की धरती बलिया ने आजादी के आंदोलन में खूब योगदान दिया. आंदोलन के दौरान यहां ऐसी-ऐसी घटनाएं हुई, जो यहां के लोगों के लिए तो सामान्य थीं, लेकिन उन घटनाओं ने अंग्रेजों को आतंकित कर दिया था. ऐसी अनेकों घटनाएं बलिया के इतिहास में दर्ज हैं. इन्हीं में से कुछ घटनाओं को बलिया के गजट में भी शामिल किया गया है. इस प्रसंग में हम बलिया में आज भी मौजूद उस कुएं की बात करते हैं, जिसे बलिया की आजादी के इतिहास में महादेव कूप या क्रांति का कुआं नाम दिया गया.
यह कुआं बलिया जिला मुख्यालय पर जिला कोषागार (ट्रेजरी) परिसर में मौजूद है. कहा जाता है कि यह कुआं हजारों साल पुराना है. कभी यह स्थान ददरी मेले में आने वाले श्रद्धालुओं का ठिकाना होता था. श्रद्धालु इसी कुएं के पास ठहरते और इसी कुएं के पानी से सत्तू सानकर खाते थे. बाद में आजादी का आंदोलन शुरू हुआ तो यह बागियों का ठिकाना बना. 1870 के दशक में, जब बलिया गाजीपुर जिले की एक तहसील था, उस समय यहीं पर बलिया के बागियों ने अंग्रेजों के खिलाफ ब बगावत की बिगुल फूंकी. कहा जाता है कि उस समय बलिया वालों ने अंग्रेजों का खजाना लूट लिया था. अंग्रेजों के लिए यह बड़ा झटका था. जब यह खबर इंगलैंड पहुंची तो आनन फानन में बलिया को जिला घोषित करने और कलेक्टर के नेतृत्व में फौज तैनात करने के आदेश हुए थे.
1879 में जिला बना बलिया
ब्रिटिश क्राउन के इसी आदेश पर भारत में अंग्रेजी सरकार ने एक नवंबर 1879 को बलिया को जिला घोषित किया था. हालांकि इसके बाद भी बरतानिया हुकूमत बलिया वालों को रोक नहीं पायी. ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक 1942 के अगस्त क्रांति की कार्ययोजना भी इसी कुएं के मुंड़ेर पर हुई बैठक में बनी. उस समय यहां जिले भर से क्रांतिकारी पहुंचे थे. इसी कुएं के पानी से सतुआ साना गया और फिर यही पानी पीकर क्रांतिकारियों ने बलिया को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने की शपथ ली. इसके बाद 10 दिनों में ही अंग्रेज सरकार की चूलें हिला दी.
आजादी के बाद मिला नया नाम
ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक आजादी से पहले इस कुएं का नाम महादेव कूप था. लेकिन आजादी के आंदोलन में इस कुएं का बार बार जिक्र आने की वजह से कालांतर में इसका नाम ही क्रांति का कुआं पड़ गया. इस संबंध में कुएं पर एक शिलापट्ट भी लगा है. जिसपर बड़े बड़े अक्षरों में महादेव कूप और क्रांति का कुआं लिखा हुआ है. बलिया कोषाधिकारी आनंद दुबे के मुताबिक समय की मार से यह कुआं जीर्णशीर्ण हालत में पहुंच गया था. अब वह इसका जीर्णोद्धार करा रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस कुएं के पास पेंशनर्स के लिए एक पार्क बनवाया जा रहा है. इससे पहले कुएं का जीर्णोद्धार साल 1913 मे बलिया के चीफ ट्रेजरार महादेव प्रसाद ने कराया था.
