UP में मां भवानी का वो मंदिर, जिसका दुर्गा सप्तशती के कवच मंत्र में है बखान
बलिया के शंकरपुर में स्थित मां शाङ्करी देवी के मंदिर का वर्णन दुर्गा सप्तशती, वाराह पुराण और मार्कण्डेय पुराण में है. इस मंदिर की स्थापना राजा सूरथ ने माता की कृपा और उन्हीं की प्रेरणा से कराई थी. दुर्गा सप्तशती के कवच मंत्र के मुताबिक मां शाङ्करी कर्णमूल की रक्षक हैं और कानों के रोगों, पीलिया आदि में चमत्कारिक लाभ प्रदान करती हैं.

शारदीय नवरात्र में मां भवानी के विभिन्न रूपों की पूजा होती है. माता रानी अपने अलग अलग रूपों में धरती पर आकर अपने भक्तों का कल्याण करती हैं. माता के इन स्वरूपों में मंदिर भी दुनिया भर के अलग अलग स्थानों पर बने हैं. ऐसा ही एक मां का शांकरी स्वरूप है और मां भवानी अपने इस स्वरूप उत्तर प्रदेश के बलिया स्थित शंकरपुर में साक्षात विराजमान है. उनके इस रूप की चर्चा दुर्गा सप्तशती के कवच मंत्र के 23वें श्लोक में इस प्रकार किया गया है- शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी। कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥
इस श्लोक का अर्थ है कि दोनों नेत्रों के मध्य भाग की रक्षा मां शंखिनी करें, कानों की रक्षा द्वारवासिनी करें, कालिका देवी कपोलों की रक्षा करें और मां शांकरी कानों के मूल की रक्षा करें. दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय में मां अपराजिता के अनन्य भक्त राजा सूरथ की कथा आती है. इस कथा के मुताबिक बलिया में सुरहा ताल के किनारे राजा सुरथ ने मां भगवती को प्रसन्न किया था.
राजा सूरथ ने बनवाए थे पांच मंदिर
चैत्र वंश में पैदा हुए इस राजा सूरथ ने माता को प्रसन्न करने के बाद एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था और इसी दौरान उन्होंने माता की की प्रेरणा से ही सुरहा ताल के किनारों पर अलग अलग दिशा में पांच मंदिरों की स्थापना कराई थी. इनमें मां भवानी के दो और भगवान शिव के तीन मंदिर बनवाए थे. मां भवानी के जो दो मंदिर बने, उनमें पहला ब्रह्माइन देवी हैं तो दूसरा मां शांकरी देवी का मंदिर है. इसी प्रकार बलिया जिला मुख्यालय से करीब 9 किलोमीटर दूर बलिया-बांसडीह मुख्य मार्ग पर बाबा बालखंडी नाथ, असेगा में शोकहरण नाथ और अवनिनाथ का मंदिर शामिल है.
मार्कण्डेय पुराण में भी आती है कथा
इन सभी मंदिरों का जिक्र मार्कण्डेय पुराण, वाराह पुराण और देवी भागवत में भी मिलता है. कथा आती है कि राजा सूरथ का बहुत बड़ा साम्राज्य था, लेकिन एक बार समय की ऐसी मार पड़ी कि शत्रुओं ने उन्हें परास्त कर राज्य पर अधिकार कर लिया. इसके बाद जंगल में भटकते हुए राजा सूरथ सुरहा ताल के किनारे आए और यहां तप कर रहे ऋषि मेघा की सलाह पर मां अपराजिता देवी की उपासना की. उनके कठोर तप से माता प्रसन्न हुई और फिर माता की कृपा से ही सूरथ को अपना राज्य वापस मिला था.
कर्णमूल की रक्षा करती हैं माता
इसके बाद राज सूरथ ने माता की कृपा से विशाल यज्ञ किया और इन पांचों मंदिरों की स्थापना कराई थी. कहा जाता है कि ये मंदिर बनने के बाद खुद ही प्राण प्रतिष्ठित हो गए थे. मां शांकरी देवी के मंदिर के पुजारी पंडित सनातन पांडेय के मुताबिक इस माता की पूजा से कान की बीमारियां दूर होती हैं. इसके अलावा यदि किसी को जॉइंडिस की बीमारी है तो यहां दर्शन पूजन और प्रसाद से ही उसे राहत मिल जाती है. वह कहते हैं कि माता की कृपा से भक्तों की सभी मनौतियां पूरी होती है. उन्होंने दुर्गा सप्तशती के कवच मंत्र का उल्लेख करते हुए बताया कि मां भवानी के इस स्वरुप की पूजा से कर्ण मूलों की रक्षा होती है.