दिहाड़ी मजदूर की बेटी का जापान ने भी माना लोहा… तैयार किया ये मॉडल

कहते हैं न कि हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उठें, वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले है. ऐसा ही कुछ देखने को मिला है बाराबंकी के एक गांव में. बेहद गरीबी के हालात में एक बेटी ने ऐसा कर दिखाया है, जो नासा और इसरो के वैज्ञानिकों ने अब तक सोचा तक नहीं था. उसके इस काम का लोहा जापान ने भी माना है. आखिर एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी ने ऐसा क्या कर दिखाया जिसके बाद उसकी चारों तरफ चर्चा हो रही है. आपको बताते हैं.

पूजा ने तैयार किया ये मॉडल

यूपी का बाराबंकी जिला, जो राजधानी लखनऊ से महज 27 KM की दूरी पर स्थित है. यहीं के एक गांव की रहने वाली पूजा पाल ने एक थ्रैसर का एक ऐसा मॉडल विकसित किया, जिसे लेकर जापान के वैज्ञानिक लगातार रिसर्च कर रहे हैं. उनके इस काम के लिए उन्हें जापान बुलाया भी गया था. फिलहाल वे जापान से वापस अपने गांव लौट आई हैं.

कैसे दिमाग आया प्लान

पूजा कहती हैं कि एक बार वो स्कूल के क्लासरूम में बैठी थीं. इसी बीच उन्होंने देखा कि क्लासरूम की खिड़की से तेजी से धूल अंदर दाखिल हो रही थी. ऐसा उसी दिन नहीं हो रहा था, बल्कि फसलों की कटाई के वक्त हर दिन ऐसा देखने को मिलता था. इसे लेकर उन्होंने अपने टीचर से बात की. उन्होंने पूछा कि आखिर इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है. उनका कहना है टीचर ने उनके आइडियाज को एक्जिक्यूट करने में मदद की. जब आठवीं क्लास में पढ़ रही थीं, तब उन्होंने धूल रहित थ्रेसर का मॉडल तैयार कर लिया.

उनके इस मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. पूजा के गाइड टीचर राजू श्रीवास्तव का कहना है कि अब उनके मॉडल के पेटेंट कराने की कवायत की जा रही है.

पढ़ाई के साथ- साथ घर के काम में भी बटाती है हाथ

बेहद गरीबी में है परिवार

फिलहाल पूजा का परिवार बेहद गरीबी के हालात में सर्वाइव कर रहा है. उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं. पढ़ाई- लिखाई के लिए उनके पास मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं. जिसके चलते उन्हें पढ़ाई में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. पूजा के माता पिता ने भी सरकार से मदद की गुहार लगाई है. जापान से लौटी पूजा ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि हमारा देश टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं है, लेकिन यातायात व्यवस्था में काफी सुधार की जरूरत है. उन्होंने बताया कि जापान में यातायात व्यवस्था बेहद अनुशासित है, जिसकी वजह से सड़क हादसे बहुत कम होते हैं. उनका कहना है कि भविष्य में वो मूलभूत समस्याओं को लेकर काम करना चाहती है.