बरगद की जड़ से निकला शिवलिंग, अलखनाथ मंदिर की कहानी; जिसकी जमीन पर मुस्लिम शख्स ने किया दावा

बरेली का अलखनाथ मंदिर इन दिनों जमीन विवाद को लेकर सुर्खियों में है. इस मंदिर की जमीन पर अपना दावा ठोककर एक मुस्लिम युवक ने नाथ कॉरिडोर का काम रोक दिया है. द्वापर युग से जुड़ा यह प्राचीन मंदिर, जहां बरगद की जड़ से स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ, अब विवाद में आ गया है. मंदिर के महंत और श्रद्धालुओं के अनुसार, नाथ नगरी के गौरव को फीका करने की यह साजिश हो सकती है.

अलखनाथ मंदिर बरेली

बरेली का अलखनाथ मंदिर इस समय सुर्खियों में है. इसी मंदिर की जमीन पर एक मुस्लिम शख्स ने दावा कर नाथ कॉरिडोर के काम पर ब्रेक लगा दिया है. चूंकि विवाद गहरा गया है और शिकायत डीएम से लेकर सीएम योगी तक पहुंच गया है. ऐसे में यह सही समय है कि इस मंदिर की पूरी कहानी को जान और समझ लिया जाए. इसके लिए हमने इस मंदिर के पुजारी से लेकर यहां फल और प्रसाद बेचने वालों के अलावा यहां आने वाले श्रद्धालुओं से बातचीत की. आइए, शुरू से शुरू करते हैं.

मंदिर के महंत के मुताबिक यह मंदिर कितना पुराना है, इसका सटीक आंकलन तो नहीं है, लेकिन इस मंदिर का अस्तित्व द्वापर युग यानी महाभारत काल में था. उन्होंने बताया कि जनश्रुतियों के मुताबिक इस मंदिर का इतिहास करीब 6500 साल पुराना है. पूरा मंदिर परिसर करीब 84 बीघा जमीन पर फैला हुआ है. शुरू से ही इस मंदिर पर आनंद अखाड़ा के नागा साधुओं का आधिपत्य रहा है. उन्होंने बताया कि मंदिर में विराजमान शिवलिंग स्वयूंभ है और बरगद के पेड़ की जड़ों से खुद प्रकट होकर आज भी अपने यथावत स्वरुप में मौजूद है.

32.5 किलोमीटर का है परिक्रमा मार्ग

बरेली को पुराना वैभव दिलाने के लिए सीएम योगी ने यहां नाथ नगरी कॉरिडोर का काम शुरू कराया है. इसमें 32.5 किमी लंबे परिक्रमा मार्ग का पुर्ननिर्माण कराया जा रहा है. इस मार्ग से बरेली की चारों दिशाओं में विराजमान सातों शिव मंदिर धोपेश्वरनाथ, तपेश्वरनाथ, अलखनाथ, वनखंडीनाथ, पशुपतिनाथ, त्रिवटीनाथ और मढ़ीनाथ कनेक्ट होंगे. श्रद्धालुओं का मानना है कि इस परिक्रमा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं. यहां तक कि इस परिक्रमा मार्ग में ही भक्तों को काली देवी मंदिर, तुलसी स्थल, बांके बिहारी मंदिर, आनंद आश्रम, हरि मंदिर, रामायण मंदिर और नौ देवी मंदिरों के भी दर्शन हो जाएंगे.

क्यों पैदा हुआ विवाद

अलखनाथ मंदिर के महंत का आरोप है कि विवाद पैदाकर कॉरिडोर के काम में बाधा डालने के पीछे बड़ी साजिश है. इस जमीन से किसी दूसरे समुदाय का कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग अचानक आते हैं और इस जमीन पर अपनी मल्कियत का दावा कर देते हैं. उन्होंने बताया कि इस विवाद की नींव तो उसी दिन पड़ गई थी, जब मंदिर के गेट पर लिखवाया गया कि ‘यहां मुस्लिम का प्रवेश वर्जित है’.

दरगाह की पहचान फीकी पड़ने का डर

स्थानीय लोगों के मुताबिक कॉरिडोर का विरोध ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन के इशारे पर हो रहा है. दरअसल मौलाना को आशंका है कि नाथ कॉरिडोर बनने से बरेली को पुराना वैभव हासिल होगा. इसकी वजह से यहां मौजूद आला हजरत की दरगाह की पहचान फीकी पड़ जाएगी. स्थानीय लोगों के मुताबिक जब नाथ कॉरिडोर का काम शुरू हुआ तो सड़क पर लगे बिजली के खंभों पर डमरू और त्रिशूल लगाए गए थे. उसके बाद से ही मुस्लिम समुदाय के लोग विरोध में आ गए. मौलाना शहाबुद्दीन ने खुद सामने आकर इसका विरोध किया था.

अब नया विवाद क्यों?

उस समय तो अधिकारियों ने बातचीत कर विवाद को खत्म करा दिया, लेकिन अब मुस्लिम समुदाय के जमील अहमद नाम के व्यक्ति ने मंदिर की 4 बीघे जमीन पर दावा कर नया विवाद पैदा कर दिया है. मंदिर के सामने फल प्रसाद बेचने वालों और यहां आए श्रद्धालुओं से हमने इस संबंध में बात की. इन सभी लोगों का कहना है कि बीते 50 वर्षों से वह मंदिर से जुड़े हैं, लेकिन आज तक किसी मुस्लिम व्यक्ति ने तो इस जमीन पर दावा नहीं किया. एक फल विक्रेता ने बताया कि यहां फल बेचते उनकी चार पुश्तें निकल गईं. उन्होंने कभी नहीं सुनी कि यह मंदिर किसी मुस्लिम की जमीन पर है.

बड़ी साजिश का आरोप

हिंदू महासभा के मंडल अध्यक्ष पंकज पाठक के मुताबिक कॉरिडोर का काम रूकवाना बड़ी साजिश का हिस्सा है. उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मामले की जांच कराने और इस तरह की साजिश की जड़ में जाने की मांग की. कहा कि नाथ नगरी बरेली का प्राचीन वैभव फिर से दुनिया के सामने आना चाहिए. उधर, मंदिर के संत महात्माओं ने भी इसके लिए मोर्चा खोल दिया है और डीएम बरेली को इस संबंध में ज्ञापन दिया है.