महानवमी पर श्रीनेत क्षत्रियों ने दिखाई अनोखी आस्था, कुल देवी का किया रक्ताभिषेक; हजारों साल पुरानी परंपरा

गोरखपुर में महानवमी पर श्रीनेत वंशीय क्षत्रियों की हजारों साल पुरानी अनोखी परंपरा देखने को मिली. अपनी कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए ये भक्त अपने रक्त से देवी का अभिषेक करते हैं. छोटे छोटे बच्चे भी इस अनुष्ठान में शामिल होते हैं. यह प्रथा उनकी अटूट आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है, जहां घाव पर सिर्फ हवनकुंड की भभूत लगाई जाती है.

देवी मंदिर में रक्ताभिषेक के लिए उमड़े श्रीनेत वंशीय क्षत्रिय

वैसे तो देवी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि में लोग तरह तरह के उपक्रम तो करते ही है, लेकिन उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में महानवमी पर एक अनोखी परंपरा देखने को मिली है. यहां हजारों की तादात में लोगों ने अपने रक्त से बांसगांव स्थित ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर में देवी का अभिषेक किया. इसके लिए मंदिर में सुबह से ही लोगों की लंबी कतारें लगी थी. मां भगवती का रक्ताभिषेक करने वाले ये सभी लोग श्रीनेत वंशीय क्षत्रिय थे, जो छोटे-छोटे बच्चों को लेकर यहां पहुंचे थे.

हजारों साल से चली आ रही इस परंपरा के तहत माता के अभिषेक के लिए लोग मंदिर परिसर में पंक्तिवद्ध और अनुशासित होकर खड़े थे. आगे हाथ में उस्तरा लिए खड़े नाई माता के इन भक्तों के शरीर पर चीरा लगा रहे थे. इसके बाद बेलपत्र पर रक्त लेकर लोग मंदिर में माता के चरणों में अर्पित करते जा रहे थे. इसके बाद मंदिर के हवनकुंड से भभूत लेकर चीरा लगे स्थान पर पोत ले रहे थे. इससे रक्तश्राव तत्काल बंद हो जाा रहा था. इस तरह से माता का अभिषेक करते लोगों का उत्साह देखने लायक था.

पूरे दिन लगी रहीं कतारें

माता मंदिर में श्रीनेत वंशीय क्षत्रिय सुबह से ही आने लग और देर शाम तक माता को रक्त चढ़ाने का दौर जारी रहा. इस दौरान मंदिर में भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगी रहीं. इस दौरान मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के जयघोष और घंटे-घड़ियाल व शंख ध्वनि से पूरा मंदिर परिसर गूंजता रहा. बताया जा रहा है कि यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है. श्रीनेत वंशीय क्षत्रिय इस मंदिर को अपनी कुलदेवी का मंदिर बताते हुए उन्हें रक्तपान कराते हैं.

ये है परंपरा

जानकारी के मुताबिक माता के इस मंदिर में विवाहित क्षत्रिय अपने शरीर के नौ अंगों ललाट, छाती के दोनों तरफ, दोनों भुजाओं, दोनों हाथ एवं दोनों जांघों पर चीरा लगाकर माता को रक्त अर्पित करते हैं. वहीं अविवाहित क्षत्रिय केवल अपने ललाट पर चीरा लगवाकर बेलपत्र पर रक्त लेकर मां के चरणों में अर्पित करते हैं. इस वैज्ञानिक युग में भी श्रीनेत वंशीय क्षत्रियों की यह परंपरा उनके आस्था, श्रद्धा और माता पर अटूट विश्वास को दर्शाता है. बड़ी बात यह कि चीरा लगे हुए स्थान पर ये लोग कभी कोई दवा नहीं लगाते, बल्कि उस घाव पर हवनकुंड की राख मलते हैं. इससे इन्हें कोई बीमारी भी नहीं होती.