इस पितृपक्ष में नहीं जा पा रहे गयाजी तो UP के इन स्थानों पर कर सकते हैं पिंडदान
इस पितृपक्ष में यदि आप गयाजी नहीं जा पा रहे हैं? चिंता न करें! उत्तर प्रदेश में कई ऐसे पवित्र स्थान हैं जहां आप पिंडदान कर सकते हैं. वाराणसी (काशी), प्रयागराज (त्रिवेणी संगम) का जिक्र तो गरुण पुराण में भी मिलता है. इनके अलावा मथुरा (यमुना तट), और अयोध्या (सरयू तट) जैसे स्थानों पर भी पिंडदान का विशेष महत्व है. यहां पिंडदान करने से पितरों को शांति और मुक्ति मिलती है.

आगामी 7 सितंबर से पितृपक्ष शुरू होने जा रहा है. पितरों को समर्पित इस पखवाड़े में श्राद्ध कर्म के लिए बड़ी संख्या में लोग बिहार के गयाजी जाने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं काफी लोग ऐसे भी हैं, जो चाहकर भी नहीं जा सकते. चूंकि पितरों का श्राद्ध जरूरी है, ऐसे में बड़ा सवाल है कि ये लोगों के लिए क्या विकल्प है. गरुण पुराण के मुताबिक श्राद्ध कर्म के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान गयाजी को बताया गया है. हालांकि इसी ग्रंथ में कुछ और भी स्थानों का जिक्र किया गया है, जहां श्राद्ध कर्म किया जा सकता है.
इस प्रसंग में उत्तर प्रदेश में मौजूद उन्हीं स्थानों की चर्चा करेंगे. साथ ही इन स्थानों पर पिंडदान के महत्व की भी बात करेंगे. गरुण पुराण में गयाजी के बाद पिंडदान के लिए बनारस यानी काशी को श्रेष्ठ स्थान बताया गया है. मान्यता है कि काशी मोक्ष की नगरी है. यहां गंगा नदी के तट पर किया गया पिंडदान पितरों को सहज ही प्राप्त होता है. इसी मान्यता की वजह से यहां हर दिन हजारों लोग पितरों की शांति के लिए हवन-यज्ञ और तर्पण करने आते हैं.

प्रयागराज के त्रिवेणी पर भी होता है पिंडदान
उत्तर प्रदेश में पिंडदान के लिए वाराणसी के बाद प्रयागराज के त्रिवेणी को उचित स्थान बताया गया है. मान्यता है कि समुद्र मंथन में निकले अमृत के घड़े लेकर देवताओं और राक्षसों में छीना झपटी होने लगी. उस समय अमृत की कुछ बूंदे धरती पर गिरी थी. दावा किया जाता है कि वह स्थान प्रयागराज का त्रिवेणी है. यही वजह है कि इस स्थानों को पितरों की मुक्ति का मुख्य द्वार माना गया है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक त्रिवेणी पर किए गए पिंडदान या धार्मिक अनुष्ठान का पूरा फल पितरों को मिलता है.
मथुरा में पिंडदान से मिलती है मुक्ति
लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में भी पिंडदान का विशेष महत्व है. पिंडदान के लिए इस स्थान का नाम गरुण पुराण में तो नहीं, लेकिन कई अन्य उत्तर पौराणिक ग्रंथों में मिलता है. इसमें कहा गया कि यमुना भगवान कृष्ण की पटरानी हैं. इसलिए यहां यमुना के किनारे पिंडदान करने से पितरों पर उनकी सहज कृपा होती है और वह मुक्ति को प्राप्त होते हैं. इस स्थान पर पूर्वजों की शांति के लिए हवनादि कर्म का भी विधान है. मान्यता है कि पिंडदान के समय यमुना में डुबकी लगाने भर से पाप धुल जाते हैं.

अयोध्या में भी है पिंडदान की परंपरा
अयोध्या में भी पिंडदान की पुरानी परंपरा है. इस स्थान का जिक्र गरुण पुराण में नहीं है, लेकिन वाल्मिकी रामायण और तुलसीदास कृत श्रीराम चरित मानस में वर्णन मिलता है कि भगवान राम ने अपने पिता दशरथ की आत्मा की शांति के लिए यहां सरयू तट पर पिंडदान किया था. हालांकि बाद में वह गयाजी भी गए थे. ऐसी मान्यता है कि अयोध्या में सरयू नदी के तट पर पिंडदान करने से पितरों के पाप कट जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पिंडदान के लिए और भी है कई स्थान
पितरों के पिंडदान के लिए उत्तर प्रदेश में कई और भी स्थान बताए गए हैं. हालांकि इन स्थानों का नाम किसी शास्त्रीय परंपरा में नहीं है, लेकिन इन स्थानों की पवित्रता की वजह से लंबे समय से यहां पिंडदान का प्रचलन है. इसमें मिर्जापुर रामगया घाट, गाजियाबाद में छोटी गंगा, हापुड़ में गढ़गंगा आदि नाम प्रमुख हैं. विद्वानों के मुताबिक गरुण पुराण में कहा गया है कि जब कोई वंशज गयाजी ना जा पाए तो वह अपने निकटतम सरोवर या नदी के तट पर पिंडदान कर सकता है.