प्रयागराज का हॉन्टेड प्लेस, जहां शाम ढलने के बाद पसर जाता है सन्नाटा; डरा देगी इसकी कहानी
प्रयागराज प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र के तौर पर जाना जाता है. यहां अंग्रेजों के दौर की पहचान आज भी मौजूद है. प्रयागराज में एक ऐसी भी जगह से जहां दिन के उजाले में भी लोग जाने से डरते हैं. इस हॉन्टेड प्लेस पर शाम 6 बजे के बाद नो एंट्री रहती है.
प्रयागराज को अंग्रेजों के समय से पहले से प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र के तौर पर जाना जाता है. यहां अंग्रेजों के दौर की एक ऐसी पहचान आज भी मौजूद है जहां शाम 6 बजे के बाद नो एंट्री रहती है. इसे हॉन्टेड प्लेस के तौर पर देखा जाता है. लोगों का मानना है कि यहां भूत-प्रेत का साया है.
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स्थानीय लोगों की मानें तो यहां देर रात एक नकाबपोश औरत लोगों से लिफ्ट मांगती है और रुकने के बाद लोगों को अपना चेहरा दिखाती है . जिसके बाद लोग बीमार होकर दम तोड़ देते है. अब तक चार लोग इसके शिकार हो चुके हैं. जिसकी वजह इस हॉन्टेड प्लेस पर जाने से लोग खौफ खाते हैं.
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प्रयागराज में आखिर कहां है ये हॉन्टेड प्लेस? ये जगह प्रयागराज के बैरहना मोहल्ले में स्थित है जिसका नाम गोरा कब्रिस्तान हैं. यह 1857 के विद्रोह में मारे गए अंग्रेज अधिकारियों की समाधि स्थल है. जहां 1857 की क्रांति के समय मारे गए 600 से अधिक अंग्रेजी अफसरों की सीमेट्री है .
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गोरा कब्रिस्तान के नाम से पहचान रखने वाले इस स्थान की सुरक्षा खुद सरकार करती है. इसे एंग्लो-इंडियन और ईसाई समुदाय के इतिहास का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है. कब्रों की डिजाइन, नक्काशी और इसे बनाने की शैली हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचती है.
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि इस कब्रिस्तान को बनाने में अंग्रेजों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. महंगे कपड़े और गहनों के साथ कई वीआईपी अंग्रेजों को यहां दफनाया गया. उनकी कब्र में महंगी धातुओं के शिलालेख या नेम प्लेट लगाई गई.
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इस कब्रिस्तान को हॉन्टेड प्लेस के तौर पर देखा जाता है. जुलाई 2015 में एक 24 वर्षीय युवक की अचानक मौत हो गई . पीड़ित के पिता के मुताबिक, युवक एक शादी से स्कूटर से लौट रहा था. गोरा कब्रिस्तान से पहले एक नक़ाब पॉश लड़की ने लिफ्ट मांगी. जिसका चेहरा युवक ने देखा और 24 घंटे में दम तोड़ दिया.
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यह कोई अंधविश्वास है या कोई शरारत जिसे कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करना चाहते है यह जांच का विषय बना . पुलिस ने इसके लिए जांच बैठाई लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. यहां केवल वीआईपी अंग्रेजों का ही कब्र है. इनमें लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन रसल, सर विलियम म्योर भी शामिल हैं.
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि गोरा कब्रिस्तान, प्रयागराज में जो कब्रें बनाई गई थीं, वे मुख्य रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की ईसाई कब्र-शैली की मिश्रित शैली को दर्शाती हैं. कब्र निर्माण की कई शैलियों का इसमें मिश्रण है.
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ईसाइयों में शव को ताबूत में रखकर कब्र में दफनाया जाता है. शव का सिर पश्चिम की ओर और पैर पूर्व की ओर रखा जाता है ताकि पुनरुत्थान के समय वह पूर्व की ओर देख सके. कब्र के ऊपर एक क्रॉस, लगाया जाता है. लेकिन गोरा कब्रिस्तान में कुछ कब्रों मे वर्टिकल दफनाने के साक्ष्य मिले हैं.