आजादी के आंदोलन में रणनीति का केंद्र रहा सहारनपुर, 3 दिन इस आश्रम की गुफा में छिपे थे सरदार भगत सिंह
आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती है. सहारनपुर का फुलवारी आश्रम वह ऐतिहासिक स्थान है जहां सांडर्स हत्याकांड के बाद वे तीन दिन छिपे थे. यहीं उन्होंने गुप्त बम फैक्ट्री स्थापित की और अनेक क्रांतिकारी योजनाएं बनाईं. स्थानीय लोगों के सहयोग से शहीदे आजम यहां अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकते रहे थे.

शहीदे आजम सरदार भगत सिंह की आज जयंती है. देश भर में इस मौके को उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है. शहीदे आजम से जुड़े किस्से सुने और सुनाए जा रहे हैं. इसी क्रम में एक किस्सा उत्तर प्रदेश में सहारनपुर स्थित फुलवारी आश्रम का भी है. यह वही आश्रम है, जहां सरदार भगत सिंह तीन दिन तक छिपे रहे थे. इसी आश्रम में उन्होंने बम बनाने की फैक्ट्री शुरू की थी और यहीं पर बैठकर उन्होंने कई क्रांतिकारी योजनाओं की रणनीति बनाई थी. इसमें सहारनपुर के कुछ स्थानीय लोग भी भागीदार बने थे.
यह वह दौर था जब लाहौर में सांडर्स की हत्या हुई थी और इसी मामले में अंग्रेजी हुकूमत चप्पे चप्पे पर भगत सिंह की तलाश कर रही थी. यहां सहारनपुर में भी पुलिस गली मोहल्लों में खाक छान रही थी, लेकिन सरदार उनकी आंखों में धूल झोंककर इस आश्रम के अंदर इंकलाब की लौ जगा रहे थे. उस समय यहां पर क्रांतिकारियों ने एक गुप्त बम फैक्ट्री खोल रखी थी. सरदार भगत सिंह ने इसी फैक्ट्री में शरण ली. हालांकि बाद में सुरक्षा कारणों की वजह से इस बम फैक्ट्री को स्थानांतरित कर दिया गया.
जीवंत है क्रांति का इतिहास
सामान्य धार्मिक स्थल जैसा दिखने वाले इस फुलवारी आश्रम की दीवारें और गुफा आज भी उस इतिहास को जीवंत रखे हुए है. कहा जाता है कि जब भगत सिंह यहां छिपकर रह रहे थे, उस समय स्थानीय लोगों ने रसद एवं अन्य आवश्यक सामग्री पहुंचा. उन दिनों आश्रम के बाहर पुलिस फोर्स खड़ी होती थी, वहीं भगत सिंह गुफा के अंदर या छत पर बैठकर रणनीति बना रहे होते थे. ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक भगत सिंह और उनके साथियों ने यहां पुरानी मंडी, मोहल्ला चौक फिरोजशाह में गुप्त रूप से बम फैक्ट्री बना रखी थी.
फैक्ट्री में बनाए जाते थे हथियार
बाहर से यह स्थान किसी क्लीनिक की तरह से नजर आता था, लेकिन अंदर क्रांति की चिंगारियां फूटती थीं. दवाइयों की बोतलों और उपकरणों की आड़ में बम और हथियार तैयार किए जाते थे. यह हथियार यहां से अन्य जगहों पर भी भेजे जाते थे. इसी दौरान कहीं से अंग्रेजों को खबर लग गई. उसके बाद भगत सिंह बड़ी चतुराई से फरार हो गए थे. स्थानीय लोग बताते हैं कि अंग्रेज आम तौर पर उनकी तलाश गली मोहल्लों में करते थे, जबकि वह अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर रहते थे.