सोनभद्र खदान हादसा: 52 घंटे के रेस्क्यू ने खोली अवैध खनन की काली परतें
सोनभद्र के कृष्णा माइनिंग खदान हादसे ने अवैध खनन और विभागीय मिलीभगत की भयावह सच्चाई उजागर की है. 6 मजदूरों की मौत के बाद पता चला कि कागजों पर एक व्यक्ति के नाम होते हुए भी खदान 9 प्रभावशाली लोगों द्वारा सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर संचालित हो रही थी. ये त्रासदी वर्षों से चल रहे भ्रष्टाचार और लापरवाही का परिणाम है, जिस पर अब तीन जांच टीमें गठित की गई हैं.
सोनभद्र के बिल्ली मारकुंडी इलाके में कृष्णा माइनिंग खदान हादसा हुआ. इस हादसे ने खनन व्यवस्था की जमीनी सच्चाई को उजागर कर दिया है. दुर्घटना के बाद बचाव अभियान लगभग 52 घंटे तक चला. मिली जानकारी के अनुसार इस हादसे में अब तक 6 मजदूरों के शव निकाले जा चुके हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है ये सक्रियता तब क्यों नहीं दिखाई दी जब मजदूर 52 घंटे तक मलबे में जिंदा दबे थे?
हादसे के तुरंत बाद माइंस संचालक समेत तीन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. अब पुलिस उनकी तलाश में जुटी है. इस घटना के बाद बड़ा सवाल ये है कि वर्षों से चल रहे अवैध खनन पर विभाग की नजर आखिर क्यों नहीं पड़ी?
जांच में हैरान करने वाला खुलासा
कागजों पर खदान भले ही एक व्यक्ति के नाम पर दर्ज थी, लेकिन असल में संचालन 9 प्रभावशाली लोगों की अवैध हिस्सेदारी से किया जा रहा था. सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज किया गया. ये खदान 2016 से बने नियमों का पालन करते हुए संचालित होती रही. खनन विभाग की अनदेखी और स्थानीय सफेदपोशों-ठेकेदारों के संरक्षण ने इस नेटवर्क को मजबूत बनाए रखा.
पैसों का लेनदेन और गैरकानूनी खनन
खदान कुछ समय बाद एक स्थानीय ठेकेदार को सौंप दी गई. इसके बाद हिस्सेदारी का खेल, पैसों का लेनदेन और गैरकानूनी खनन और निर्भीक हो गया. ये अवैध तंत्र वर्षों से खनन विभाग की मिलीभगत के सहारे फलता-फूलता रहा. अब हादसे के बाद विभाग ने पट्टाधारकों के खिलाफ रिपोर्ट तैयार कर दी है. जिलाधिकारी बद्रीनाथ सिंह ने बताया कि ऑपरेशन अंतिम चरण में पहुंच चुका है.
प्रारंभिक रिपोर्टों से क्या पता चला?
सरकार ने हादसे की गंभीरता को देखते हुए तीन विशेष जांच टीमें गठित की हैं. प्रारंभिक रिपोर्टें साफ करती हैं कि सालो से इस खदान का संचालन स्थानीय सफेदपोश, ठेकेदारों और विभागीय अधिकारियों की मदद से होता रहा. सोनभद्र की ये त्रासदी महज एक हादसा नहीं है, बल्कि ये करोड़ों के अवैध खनन नेटवर्क में छिपी गंदगी और विभागीय लापरवाही को उजागर कर रही है.
