वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर जुटे अघोरी,आधी रात को विशिष्ट पूजा की और कहा ‘हैप्पी बर्थडे काशी’

उत्तर प्रदेश के वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर अघोर चतुर्दशी के मौके पर मध्यरात्रि में एक विशेष पूजा का आयोजन किया गया. इसमें दुनिया भर से अघोर पंथ के साधक शामिल हुए. यह पूजा भगवान शिव द्वारा काशी की स्थापना के दिन मनाई जाती है. इसमें योगिनी चक्र पूजन और भैरवी पूजन शामिल हैं. पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चंडेश्वर कपाली जी महाराज ने इस पूजा के महत्व और अघोर परंपरा के बारे में बताया.

घाट पर पूजा करते अघोरी Image Credit:

अघोर चतुर्दशी पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर दुनियां भर से अघोर पंथ के साधक और अघोरी आधी रात को जुटे.आधी रात को अघोर योगिनी श्मशान पीठ पूजन का आयोजन किया गया था. ये विशेष पूजा भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हो की जाती है क्योंकि अघोर पंथ का मानना है कि इसी दिन भगवान शिव ने काशी की स्थापना की थी. ये विशेष पूजा जिसे चक्र पूजा और भैरवी पूजा भी कहते हैं. यहां पर सिर्फ हरिश्चंद्र घाट जिसे अघोर योगिनी श्मशान पीठ भी कहते हैं यहीं पर इसकी पूजा होती है.

आधी रात बारह बजे से तड़के चार बजे तक ये विशेष पूजा सम्पन्न कराई गई. अवधूत उग्र चंडेश्वर कपाली जी महाराज इस पीठ के पीठाधिश्वर हैं. टीवी 9 डिजिटल ने जब इस विशेष पूजा पर उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि पहले वो इस पूजा से मीडिया को दूर रखते थे. लेकिन अघोर और तंत्र को लेकर जो दुष्प्रचार और संदेह बढ़ रहा है उसके निर्मूलन के लिए उन्होंने मीडिया को यहां अनुमति दी है.

आज है काशी उत्पत्ति दिवस

श्मशान पीठ के पीठाधीश्वर कपाली जी महाराज ने बताया कि आज काशी उत्पत्ति दिवस है. यानी कि आज ही आधी रात को भगवान अविमुकतेश्वर जो कायिक, मानसिक और वाचिक से मुक्त हैं उन्होंने काशी की उत्पत्ति की थी. तो आज काशी का हैप्पी बर्थडे भी है. अघोर परम्परा में इस हैप्पी बर्थडे को मनाने का अपना तरीका है. दुनिया में एकमात्र यही पीठ है जहां अघोर चतुर्दशी पर आधी रात को योगिनी चक्र पूजन, भैरवी चक्र पूजन और श्मशान पीठ पूजन एक साथ होती है.

दुनिया भर से आए अघोर से जुड़े साधक इस महान पूजा में शामिल होते हैं. स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों ही प्रकार के शरीर को रोग, व्याधियां और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करने वाली और समस्त बधाओं को दूर कर मोक्ष प्रदान करने वाली ये महान पूजा है. इस पूजन में तंत्र और मंत्र दोनों ही का समावेश है. हालांकि अघोर परम्परा में इसमें कोई विभाजन नहीं है सब एक ही है लेकिन, सामान्य जनमानस में ये भ्र्म है. उनसे जब हमने पूछा कि क्या अघोर और तंत्र एक ही है? इसपर उन्होंने जवाब दिया कि “तंत्र एक व्यवस्था है जबकि अघोर एक अवस्था है “. वैष्णव में जिसको परमहंस, शाक्त में कैवल्य कहते हैं शैव परम्परा में उसी को अघोर कहते हैं.

अघोरी ने बताया इस पूजा का महत्व

अघोर पीठ पर आयोजित विशेष पूजन में शामिल आदित्य आनंद अघोर परम्परा के एक साधक हैं. जिन्हें जनसामान्य की भाषा में अघोरी भी कहते हैं. इन्होंने टीवी 9 डिजिटल से बातचीत में बताया कि अघोर चतुर्दशी पर यह महान पूजा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि काशी की उत्पत्ति के साथ ही इसी दिन महान अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी का जन्मदिवस है. साथ ही इस परम्परा के महान योगी बामदेव जी को आज ही अर्धरात्रि में मां भगवती ने दर्शन दिया था. महान ऋषि वशिष्ठ जी को भी आज ही के दिन सिद्धियां प्राप्त हुई थी. राशियों के लिहाज से भी यह बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण समय है.


आदित्य आनंद जी कहते हैं कि ये महान पूजा तंत्र शास्त्र में चक्रअह शक्ति समूह के रूप में वर्णित है. इसे सामान्य भाषा में योगिनी चक्र पूजा अनुष्ठान भी कह सकते हैं. अघोर परम्परा में ये कहा जाता है कि भगवान अविमुक्तेश्वर ने अपने पांच मुखों से अलग-अलग उपदेश दिए.

अघोर,सद्योजात,बामदेव, ईशान और तत्पुरुष ये पांच उपदेश दिए. भगवान अविमुक्तेश्वर ने अपने दक्षिण मुख से अघोर का उपदेश दिया था. इस पूजन में भी आगम और वैदिक दोनों ही मंत्रों का समागम है. लेकिन, अघोर परम्परा में आगम और वैदिक का कोई भेद नहीं है. समस्त मंत्र एक ही ईश्वर से प्राप्त है और उसी को समर्पित है. ये विशेष पूजा अर्द्धरात्रि से शुरू होकर ब्रह्म मुहूर्त तक चली और पूरी दुनिया से 101 तंत्र साधक और अघोर परम्परा के अनुयायी इसमें शामिल हुए.