आदियोगी शिव या योगेश्वर भगवान कृष्ण… कौन हैं योग के जनक? कैसे लोगों तक पहुंचा और मुरीद हो गई दुनिया

वेदों और पुराणों में योग का उल्लेख बार बार मिलता है, लेकिन यह सवाल तो लाजमी है कि योग के जनक कौन हैं, शिव या कृष्ण? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि भगवान शिव को आदियोगी कहा जाता है. वहीं भगवान कृष्ण को योगेश्वर. गीता में भगवान कृष्ण द्वारा वर्णित योग तीन भागों (ज्ञान, कर्म, भक्ति) में विभाजित है. इसमें खुद भगवान अपने आपको योग के जनक बताते हैं. प्राचीनकाल में योग के अस्तित्व के साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता में मिलते हैं.

आदि योगी भगवान शिव

भगवान शिव को आदियोगी कहा जाता है. जबकि भगवान कृष्ण का एक नाम योगेश्वर है. ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि योग है क्या, इसके जनक कौन हैं और यह दुनिया में पहली बार कैसे आया? चूंकि आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है और पूरी दुनिया इसे जाति-धर्म और क्षेत्र की बंदिशों से ऊपर उठकर इसे सामूहिक पर्व के रूप में मना रही है. इसलिए यह सही अवसर है कि इन सभी सवालों के जवाब भी जान लिए जाएं. योग की चर्चा वैसे तो वेदों में बार बार मिलती है. पुराणों में भी जगह जगह इसका जिक्र किया गया है.

इससे जाहिर होता है कि वैदिक और पौराणिक काल में योगाभ्यास की परंपरा रही है. माना जाता है कि सभ्यता का जन्म ही योग के साथ हुआ था. हालांकि उन दिनों में योग परंपरा व्यवस्थित नहीं थी.कालांतर में महर्षि पतंजलि ने इसे महान ग्रंथ योगसूत्र के माध्यम से इसे व्यवस्थित किया और आज यह दुनिया भर में जाना और पहचाना जाने लगा है. पौराणिक ग्रंथों में योग के प्रतिपादक के रूप में भगवान शिव को श्रेय जाता है. यही वजह है कि उन्हें आदि योगी कहा जाता है.

गीता में खुद को बताते हैं योग के जनक

भगवान कृष्ण को योगेश्वर भगवान कहा जाता है. उनके द्वारा कही गई पूरी गीता ही योग पर अधारित है. कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीतोपदेश करते हुए भगवान कृष्ण खुद को योग का जनक बताते हैं. वह कहते हैं कि पहली बार उन्होंने ही गीता का ज्ञान भगवान सूर्य को कराया था. इसमें भगवान कृष्ण योग के तीन रूप बताते हैं. पहला ज्ञान योग, दूसरा कर्म योग और तीसरा भक्ति योग. श्रीमद भागवत, शिवपुराण और स्कंद पुराण भी भगवान कृष्ण को ही योग का प्रणेता बताते हैं. वहीं इन ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शिव ने योग को करके दिखाया.

पहली बार ऋगवेद मिलता है वर्णन

इसके बाद वैदिक काल में ऋषि-मुनियों ने इसे आगे बढाया. योग का विवरण ऋगवेद के प्रथम मंडल में मिल जाता है. इसमें कहा गया है कि ‘स घा नो योग आभुवत् स राये स पुरं ध्याम. गमद् वाजेभिरा स न:’ मतलब वही परमात्मा हमारी समाधि के निमित्त अभिमुख हो, उसकी दया से समाधि, विवेक, ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा का हमें लाभ हो, अपितु वही परमात्मा अणिमा गरिमा आदि सिद्धियों के साथ हमारी ओर आगमन करे. इसी बात को महर्षि पतंजलि ने भी अपने ग्रंथ योगसूत्र में भी कहा है. बाद में महावीर और गौतम बुद्ध के अलावा अन्य तमाम मनीषियों ने इसे अपने तरीके से दुनिया भर में फैलाया.

योगेश्वर कृष्ण ने बताया योग का रहस्य

प्राचीन काल में योग के ऐतिहासिक साक्ष्य विभिन्न स्थानों पर खुदाई मिली वस्तुओं और मूर्तियों से भी होता है. खासतौर पर सिंधु घाटी सभ्यता की कई मूर्तियां मिली हैं, जिनमें शारीरिक मुद्राएं और आसन उस समय में योग के अस्तित्व को प्रमाणित करती हैं. उपनिषदों, महाभारत और भगवद्‌गीता में भी योग के बारे में विस्तार से चर्चा हुई है. गीता में तो योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने खुद अर्जुन को योग का महत्व बता रहे हैं.इसमें वह योग को तीन हिस्सों कर्मयोग, भक्ति योग व ज्ञानयोग में बांटते हुए इसका उद्देश्य बताते हैं. वह कहते हैं कि ‘इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्, विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्.’ मतलब हे अर्जुन मैंने इस अविनाशी योग की शिक्षा सूर्य को दी थी. फिर सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु को और मनु इसे अपने पुत्र इक्ष्वाकु को बताया. इसके बाद यह परंपरा शुरू हुई.

बृहदारण्यक उपनिषद में है वर्णन

योग की चर्चा बृहदारण्यक उपनिषद में भी मिलती है. इसमें याज्ञवल्क्य मुनि और विदुषी गार्गी के बीच हुए संवाद में इसे परिभाषित किया गया है. इसमें योग को सांस संबंधी व्यायाम, शरीर की सफाई और विभिन्न आसन का माध्यम बताया है. गार्गी द्वारा लिखित छांदोग्य उपनिषद में भी इसका विस्तार से जिक्र मिलता है. प्रमाणिक ग्रथों के मुताबिक योग इतना महत्वपूर्ण होने के बाद भी 200 ईसापूर्व तक बिखरी स्थिति में था. हालांकि महर्षि पतंजलि ने इसे संग्रहित किया और दुनिया के सामने प्रस्तुत किया.

पतंजलि ने बताया अष्टांग योग

उन्होंने अपने योगसूत्र में 195 सूत्रों की माला पिरोई, जिसे आठ अंगों यम (सामाजिक आचरण), नियम (व्यक्तिगत आचरण), आसन (शारीरिक आसन), प्राणायाम (श्वास विनियमन), प्रत्याहार (इंद्रियों की वापसी), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि में विभाजित किया गया है. इसे अष्टांग योग की संज्ञा दी गई है. हालांकि इसमें शारीरिक अभ्यास को प्रमुखता दी गई है और बाबा रामदेव भी इसी परंपरा का पालन करते हैं.