अखलाक हत्याकांड मामले में UP सरकार को बड़ा झटका, केस वापस लेने की अर्जी खारिज
अखलाक हत्याकांड में सेशन कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को झटका दिया है. अदालत ने अभियोजन पक्ष की ओर से केस वापसी की लगाई गई अर्जी को महत्वहीन और आधारहीन मानते हुए खारिज कर दिया है. बता दें कि राज्य सरकार के अधिवक्ता ने सामाजिक सौहार्द का तर्क देते हुए आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे को वापस लेने की मांग की थी.
ग्रेटर नोएडा के बिसहड़ा गांव में हुए अखलाक हत्याकांड को लेकर आज यानी 22 दिसंबर को सूरजपुर सेशन कोर्ट में सुनवाई चल रही थी. मामले में अभियोजन पक्ष की तरफ से केस वापस लेने की अर्जी दी गई थी. इसे सूरजपुर सेशन कोर्ट ने खारिज कर दिया.
अदालत ने केस वापसी की अर्जी को किया निरस्त
इस मामले में अदालत ने अभियोजन की ओर से केस वापसी की लगाई गई अर्जी को महत्वहीन और आधारहीन मानते हुए निरस्त कर दिया. बता दें कि इस अक्टूबर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अदालत में दलील देते हुए कि मामले की वापसी की अर्जी लगाई थी. इसके पीछे उन्होंने समाजिक सौहार्द बहाल होने का तर्क दिया था.
अखलाक की क्या थी प्रतिक्रिया?
केस वापसी अखलाक के परिवार ने अदालत में दाखिल अर्जी में कहा यह सिर्फ आपराधिक मामला नहीं, बल्कि भीड़ द्वारा हत्या करने का है. ऐसे मामले को वापस लेना समाज, न्याय और कानून तीनों के लिए दिक्कतें खड़ी करेगा. अब अदालत ने दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद केस वापसी की अर्जी निरस्त कर दी है.
क्या हुआ था साल 2015 में?
पीड़ित पक्ष के वकील यूसुफ सैफी ने कहा कि पीड़ित पक्ष को न्याय मिला है. उन्होंने कहा कि इस केस की अगली सुनवाई 6 जनवरी को होनी है. कोर्ट ने डे बाय डे सुनवाई होने के निर्देश दिए हैं. साल 2015 में ग्रेटर नोएडा के दादरी क्षेत्र के रहने वाले 52 वर्षीय मोहम्मद अखलाक की भीड़ ने घर में गोमांस रखने के संदेह में पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. पुलिस इस मामले में 18 आरोपियों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था जिसमें तीन नाबालिग भी शामिल थे. फिलहाल, इस वक्त सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं.
कोर्ट ने क्या कहा?
सरकार की याचिका पर कोर्ट ने कहा कि धारा 321 में सरकारी पक्ष के वकील की तरफ से कोई भी तथ्य या कोई भी ग्राउंड नहीं दिया है, जिस पर विचार किया जा सके. फिलहाल, धारा 321 हत्या के मामले में गवाही होने के बाद कोर्ट में गवाही चल रही है. आरोप तय हो चुके हैं. चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है. ऐसे में केस वापसी की याचिका आधारहीन और तथ्यहीन है.
CrPC की धारा 321 के तहत क्या होता है?
CrPC की धारा 321 में तहत पब्लिक प्रॉसिक्यूटर या असिस्टेंट पब्लिक प्रॉसिक्यूटर कोर्ट की सहमति से मुकदमा वापस लेने के लिए एप्लीकेशन दे सकते हैं. इसके बाद कोर्ट मुकदमा वापस लेने की अर्जी पर सुनवाई करती है. उसके पास यह तय करने की शक्ति होती है कि मुकदमा वापस लेना सही है या गलत.
