क्या एक साथ 6 सरकारी नौकरी की जा सकती है? अर्पित सिंह केस में क्या कहता है नियम

यूपी में एक साथ छह जिलों में एक ही पद पर सरकारी नौकरी करने और सभी जगह से अलग अलग वेतन उठाने को लेकर आगरा के अर्पित सिंह ने इस समय सुर्खियों में हैं. अर्पित सिंह के नाम पर सरकारी नौकरियों में यह धांधली साल 2016 में हुई भर्ती के दौरान हुई थी. यह भर्ती UPSSSC ने कराई थी, लेकिन अधिकारियों से मिलीभगत कर पांच अलग अलग लोग फर्जीवाड़ा कर अलग स्थानों पर अर्पित सिंह के नाम से नौकरी करने लगे.

भर्ती घोटाले में आया अर्पित सिंह का नाम

उत्तर प्रदेश में आगरा के रहने वाले एक्सरे टेक्निशियन अर्पित सिंह इस समय सुर्खियों में हैं. आरोप है कि वह हाथरस ही नहीं, प्रदेश के पांच अन्य जिलों में नौकरी कर रहे थे और इन सभी 6 जिलों से तनख्वाह भी ले रहे थे. इस संबंध में उत्तर प्रदेश की चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं लखनऊ की निदेशक पैरामेडिकल डॉ. रंजना खरे ने एफआईआर दर्ज कराई है. उधर, अर्पित सिंह ने दावा किया है कि उन्होंने वैध तरीके से नौकरी हासिल की और तब से हाथरस में नौकरी कर रहे हैं. बड़ा सवाल यह कि एक ही भर्ती में एक ही नाम और पते छह लोग कैसे भर्ती हुए? यही नहीं, इन सभी छह लोगों को नौ साल तक कैसे वेतन भी जारी होता रहा?

प्रसंग में आगे बढ़ने से पहले जान लीजिए कि ऐसा हुआ कैसे? दरअसल साल 2016 में प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार थी. उन्हीं दिनों स्वास्थ्य विभाग में एक्स-रे टेक्निशियन के लिए अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UPSSSC) के माध्यम से भर्ती आई. यह भर्ती 25 मई 2016 को हुई और कुल 403 उम्मीदवार चयनित हुए थे. इनमें क्रम संख्या 80 पर अर्पित सिंह पुत्र अनिल कुमार सिंह की नियुक्ति हुई. इसके आधार पर अर्पित सिंह को हाथरस में पोस्टिंग मिली और वह नौकरी करने लगे.

नौ साल बाद एचआर सिस्टम ने पकड़ा

अब स्वास्थ्य नौ साल बाद स्वास्थ्य विभाग के एचआर सिस्टम ने पाया है कि जिस अर्पित सिंह की भर्ती हुई थी, वह केवल हाथरस ही नहीं, पांच अन्य जिलों बलरामपुर, फर्रुखाबाद, रामपुर, बांदा, अमरोहा और शामली में भी नौकरी कर रहे हैं और वेतन भी ले रहे हैं. इस खुलासे के बाद अर्पित सिंह के खिलाफ एफआईआर कराई गई. मामले की जांच हुई तो मामला कुछ और ही निकला. पता चला कि अर्पित सिंह के नाम पते का इस्तेमाल कर पांच अन्य लोग सरकारी नौकरी का लाभ ले रहे हैं. अब सवाल उठ रहा है कि यह हुआ कैसे और अब तक विभाग कहां सोया था?

मिलीभगत और दस्तावेज सत्यापन में गड़बड़ी का मामला

मामले की जांच में यह पूरा मामला अधिकारियों कर्मचारियों से मिलीभगत और दस्तावेजों के सत्यापन में गड़बड़ी का पाया गया है. आरोप कि अलग अलग पांच लोगों ने अर्पित सिंह की डिटेल के आधार पर फर्जी आधार कार्ड और प्रमाण पत्र लगाया और नियुक्ति पाकर सरकारी नौकरी का लाभ उठाते रहे. इससे विभाग को करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ है. मामले का खुलासा होने के बाद एक बार फिर राजनीति तेज हो गई है. खुद सीएम योगी ने इस मामले में समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव पर हमला बोला है. कहा कि एक परिवार के लोग पैसा लेकर भर्ती करते थे. कहा कि उनके जमाने में हुई लगभग सभी भर्तियों की सीबीआई जांच करानी पड़ी है.

ये है नियम

अधिकारियों के मुताबिक अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा चयनित लोगों की सूची स्वास्थ्य विभाग में आती है. इसके बाद इसी सूची के आधार पर विभाग द्वारा अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र और जॉइनिंग लेटर दिया जाता है. इससे पहले सभी अभ्यर्थियों के आधार, पैन, बैंक डिटेल और एजुकेशनल प्रमाण पत्रों का भौतिक सत्यापन कराया जाता है. इस मामले में भी यह सारी प्रक्रिया हुई है, लेकिन अधिकारियों और कर्मचारियों ने जालसाजों से मिलीभगत कर अपने ऑफिस में बैठे-बैठे ही कर दिया.