नारायण को लात मारकर भृगु मुनि ने यहां धोया पाप, क्या जानते हैं तमसा नदी की ये कहानी? ददरी मेले से कनेक्शन
महर्षि भृगु ने भगवान नारायण को लात मारकर अपने अपराधबोध से मुक्ति पाने के लिए तमसा नदी में स्नान किया था. बलिया की तमसा नदी में कार्तिक पूर्णिमा पर डुबकी लगाने से ब्रह्म हत्या सहित सभी पाप धुल जाते हैं. ददरी मेले से जुड़ा यह स्नान वैज्ञानिक रूप से भी त्वचा रोगों व मातृत्व गुणों को मजबूत करने में सहायक माना जाता है. यह प्राचीन परंपरा आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है.
आज कार्तिक पूर्णिमा है. वैसे तो समूचे देश में इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. आधी रात से ही लोग पवित्र सरोवरों में स्नान कर दानपुण्य कर रहे हैं. इधर, उत्तर प्रदेश के बलिया में इस पर्व को लेकर अलग ही उत्साह है. एक तरफ यहां ददरी मेले का आयोजन किया गया है तो दूसरी ओर तमसा के तट पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. आपके मन में सवाल उठ सकता है कि गंगा स्नान छोड़ तमसा के तट पर इतनी भीड़ क्यों?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें वैदिक काल में चलना होगा. आइए, चलते हैं. बात उस समय की है जब परमपिता ब्रह्मा भगवान नारायण की प्रेरणा से इस सृष्टि का विस्तार कर रहे थे. उस समय देवताओं को शक हो गया कि आखिर ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठ कौन है. चूंकि यह सवाल पूछने की हिम्मत देवराज इंद्र में भी नहीं थी, इसलिए सभी देवताओं ने इन तीनों देवों के परीक्षण की जिम्मेदारी भृगु मुनि को दी.

ब्रह्मा की प्रेरणा धरती पर आए महर्षि भृगु
महर्षि भृगु ने अपने तरीके से परीक्षण किया. इसके लिए जब उन्होंने भगवान नारायण के वक्ष पर लात मारा तो भगवान उनकी चरण सेवा करने लगे. यह देखकर महर्षि भृगु ने भगवान नारायण को सर्वश्रेष्ठ तो घोषित कर दिया, लेकिन उन्हें अपराधबोध हुआ और काफी ग्लानि होने लगी. ऐसे में उन्होंने ब्रह्मा से इसका निवारण पूछा और फिर ब्रह्मा के ही कहने पर वह धरती पर उतरे. यहां बलिया में तमसा के तट पर उन्होंने डुबकी लगाकर अपना पाप धोया था.
तमसा नदी को लेकर यह है मान्यता
तमसा में स्नान से महर्षि भृगु को अपराधबोध से मुक्ति मिल गई. उसके बाद से ही यहां स्नान और दानपुण्य की परंपरा शुरू हो गई. ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर तमसा नदी के श्रीरामपुर घाट पर स्नान भर कर लेने से ब्रह्म हत्या तक के पाप धुल जाते हैं. चूंकि तमसा नदी का प्रवाह क्षेत्र ऐसा है कि वह नदी अपने साथ ढेर सारी औषधियों को बहाकर लाती है. इसलिए इसमें स्नान करने से चर्म रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है. यह बात कई वैज्ञानिक शोध में भी प्रमाणित हुई है.
क्या तमसा स्नान से भर जाती है गोद?
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर तमसा नदी के अलावा घाघरा और गंगा के संगम में स्नान को लेकर भी कई तरह की लोक मान्यताएं है. इसमें एक मान्यता यह है कि पहले प्रहर (अरुणोदय से लेकर सुबह के करीब 10 बजे तक) स्नान करने से जिन महिलाओं की गोद नहीं भर रही है, उनकी भी मुरादें पूरी हो जाएंगी. इस मान्यता के पीछे वैज्ञानिक वजह भी है. दरअसल इन दिनों सूर्य की क्षैतिज किरणें धरती के इस भूभाग पर पड़ती हैं. ऐसे में जब कोई महिला या पुरूष यहां स्नान करता है कि इन किरणों के रिफ्लेक्शन से उसके पुरुषोत्व और मातृत्व के गुण मजबूत होते हैं.
