जलाया नहीं, यहां पूजा जाता है रावण; साल में केवल दशहरे के दिन खुलता है ये मंदिर

उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक अनूठी परंपरा है. यहां दशहरे पर रावण दहन के बजाय उनकी पूजा की जाती है. शिवाला क्षेत्र में रावण का एक भव्य मंदिर है. यह 200 साल पुराना दशानन मंदिर सिर्फ विजयादशमी के दिन खुलता है. भक्त रावण को भगवान शिव के परम भक्त और शक्ति का प्रतीक मानकर सरसों के तेल के दीपक जलाते हैं और मनोकामनाएं मांगते हैं. मान्यता है कि यहां पूजा से ग्रह दोष दूर होते हैं और सुख-समृद्धि आती है.

विजयादशमी को खुलता है रावण मंदिर

वैसे तो देश भर में दशहरे के दिन रावण को जलाया जताया है. इस मौके पर जगह जगह मेले लगते हैं और लोगों बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं. जबकि उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक अनूठी परंपरा है. यहां शिवाला क्षेत्र में दशानन रावण मंदिर का एक मंदिर है, जहां उसे जलाया नहीं, बल्कि भक्ति भाव से पूजा जाता है. यह मंदिर पूरे साल बंद रहता है और केवल एक बार वो भी विजयादशमी के दिन ही खुलता है.

इस मंदिर में रावण को शक्ति के प्रतीक और भगवान शिव के परम भक्त के रूप में देखा जाता है और इसी रूप में उसकी पूजा भी होती है. विजयादशमी के दिन सुबह से ही इस मंदिर में श्रद्धालु की भीड़ उमड़ने लगती है और पूरे दिन लोग आकर अपनी आस्था और विश्वास के मुताबिक पूजन करते हैं. चूंकि कल यानी गुरुवार को दशहरा है और एक बार फिर यह मंदिर खुलने वाला है. इसलिए आइए इस मंदिर के बारे में जानने और समझने की कोशिश करते हैं.

200 साल पुराना है मंदिर का इतिहास

कानपुर में शिवाला क्षेत्र के कैलाश मंदिर परिसर में स्थित इस दशानन मंदिर का निर्माण करीब 200 वर्ष पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था. महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल रावण की भक्ति और विद्वता से प्रेरित थे. उनका मानना था कि रावण जैसा प्रकांड पंडित और विद्वान तथा महान शिव भक्त ना कभी हुआ और ना होगा. इसलिए उन्होंने शक्ति के प्रहरी के रूप में इस मंदिर में रावण को स्थापित किया. यहां रावण के मंदिर के साथ ही मां छिन्नमस्तिका का मंदिर भी है, जिसका निर्माण लगभग 206 वर्ष पहले संवत 1868 में तत्कालीन राजा ने कराया था.

पांच ऊंची है रावण की मूर्ति

बताया जाता है कि मां छिन्नमस्तिका ने रावण को वरदान दिया था कि उनकी पूजा तभी पूर्ण होगी, जब भक्त रावण की भी अराधना करेंगे. इस वरदान के चलते मां छिन्नमस्तिका के साथ-साथ रावण की पूजा की परंपरा शुरू हुई. उसी समय से इस मंदिर में रावण और मां छिन्नमस्तिका की पूजा निर्बाध रूप से जारी है. इसके लिए हर विजयादशमी के दिन सुबह आठ बजे मंदिर के कपाट खुलते हैं. इस दिन मंदिर में विशेष तैयारियां की जाती हैं. यहां मौजूद पांच फुट ऊंची मूर्ति का साज-श्रृंगार किया जाता है. मूर्ति को फूलों, वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है. इसके बाद मंदिर में मां छिन्नमस्तिका और रावण की विशेष पूजा-अर्चना शुरू होती है.

मनौतियां भी मांगते हैं भक्त

इस मंदिर में भक्तगण श्रद्धा पूर्वक सरसों के तेल का दीपक जलाते हैं और पीले फूल चढ़ाकर अपनी मनौतियां मांगते हैं. पूजन के बाद रावण की भव्य आरती होती है. फिर शाम को एक विशेष समारोह के साथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. मान्यता है कि यहां रावण की पूजा से भक्तों के ग्रह-नक्षत्रों के दोष दूर होते हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है. यहां पूजा से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.