माफिया डॉन और राजनेता के बाद अब धर्म और आध्यात्म की शरण में बृजेश सिंह! बने ट्रस्टी

पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह को कभी माफिया डॉन के रूप में जाना जाता था. अब वाराणसी के 225 साल पुराने जगन्नाथ रथयात्रा मेला ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी हैं. जानिए बृजेश सिंह धर्म और आध्यात्म के प्रति अचानक झुकाव को लेकर कहते हैं.

पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह

सनातन परंपरा में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब हिंसा छोड़ व्यक्ति धर्म की राह पर लौटा है. एक ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश विधान परिषद के पूर्व सदस्य रहे बृजेश सिंह की है. बृजेश सिंह को कभी माफिया डॉन के रूप में जाना जाता था. लेकिन अब वह वाराणसी के 225 साल पुराने जगन्नाथ रथयात्रा मेला ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी हैं. उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों के बाद धर्म और आध्यात्म की ओर रुख किया.

पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह ने टीवी9 को दिए साक्षात्कार में अपने धर्म और अध्यात्म के प्रति झुकाव और अचानक से इस रुझान पर खुलकर बात की है. उन्होंने कहा कि ये रुझान अचानक नहीं है. धर्म के प्रति आस्था तो शुरु से थी लेकिन जीवन के संघर्षो की वजह से और झुकाव बढ़ा. बृजेश सिंह का मानना है कि धर्म और राजनीति साथ चल सकते हैं. उन्होंने जगन्नाथ कॉरिडोर विवाद पर भी बात की है.

मुख्य ट्रस्टी बनने का ख़्याल कैसे आया?

बृजेश सिंह, वाराणसी जगन्नाथ रथयात्रा मेला ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी बनाए गए हैं. वाराणसी में लक्खे मेले के रूप में तीन दिवसीय रथ यात्रा मेले की पहचान है, जिसमें काशी के लोग भगवान जगन्नाथ के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाते हैं. इस दौरान रथ पर सवार भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ काशी के लोगों को दर्शन देते हैं.

बृजेश सिंह से धर्म के प्रति झुकाव पर सवाल किया गया तो, उन्होंने कहा कि उनकी हमेशा से इसमें आस्था थी. उन्होंने कहा, ‘जब जब संकट में आया तब तब धर्म ने मुझे सहारा दिया. ध्यान से दर्शन का बोध हुआ फिर ख़ुद पर समय देना शुरू किया. एकांत में अपने भीतर जाने का प्रयास किया और धीरे धीरे ख़ुद को भीतर से शांत महसूस करने लगा.’

जगन्नाथ रथयात्रा मेला ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी बनने का ख़्याल कैसे आया? इसपर बृजेश सिंह ने कहा, ‘ये ख़्याल मुख्य ट्रस्टी दीपक शापुरी जी और बाकी ट्रस्टियों को आया. उन्होंने कहा कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती है, इसलिए ये जिम्मेदारी आप उठाइए. उन्हीं लोगों के कहने पर मैंने मुख्य ट्रस्टी की जिम्मेदारी ली.’ इस दौरान बृजेश सिंह ने अपने इतिहास के बारे में पूछे सवालों को टाल दिया.

बृजेश सिंह की नज़र में धर्म क्या है?

बृजेश सिंह ने इस पर कहा कि ‘परहित सरस धरम नहीं भाई, परपीड़ा समझ नहीं अधमाई’. उन्होंने कहा, ‘मानस की इस चौपाई में धर्म का मर्म छुपा हुआ है. धर्म व्यक्ति को संघर्षो में संबल प्रदान करता है. मैं जिस संघर्ष से निकला हूं उसमें ध्यान और व्यायाम मेरी सबसे बड़ी ताकत थे.’ उन्होंने कहा कि युवाओं से भी कहता हूं कि वो अपने जीवन में ध्यान और व्यायाम को शामिल करें. उनकी सोचने की दिशा बदल जाएगी.

साथ ही बृजेश सिंह ने कहा कि संघर्षो से घबराइए मत. जो जितना झेल सकता है उसके जीवन में उतना संघर्ष आता है. लेकिन ईश्वर कभी इतना कठोर नही होता कि वो आपको ऐसे संघर्ष में उलझा दे जहां से निकलने का कोई रास्ता ही न हो.इसलिए संघर्ष के सामने डटे रहिए रास्ता जरूर निकलेगा.

धर्म और राजनीति क्या साथ चल सकते हैं?

बृजेश सिंह मानस की चौपाई सुनाते हैं और धर्म और राजनीति के साथ साथ चलने की वकालत करते हैं. ‘मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक, पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक’. बृजेश सिंह कहते हैं कि बिना धर्म के राजनीति चल ही नहीं सकता. इसलिए धर्म के विवेकपूर्ण व्यवहार से ही वर्तमान में जो राजनीति चल रही है उसका लाभ भी लोगों को मिल रहा है.

वाराणसी में जगन्नाथ कॉरिडोर को लेकर चल रहे विवाद पर भी उन्होंने बात की. बृजेश सिंह ने कहा, ‘मैंने अभी जिम्मेदारी संभाली है. लेकिन मैं लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि कॉरिडोर के नाम पर किसी को उजाड़ा नहीं जाएगा. भगवान जगन्नाथ का दिव्य और भव्य मंदिर बनेगा. इसके लिए न तो जमीन की कमी है और न ही धन की.’