यूपी का वो गांव जहां करवा चौथ का व्रत रखने से डरती हैं महिलाएं, जानें क्या है कहानी

उत्तर प्रदेश के मथुरा में एक ऐसा भी गांव है, जहां महिलाएं सदियों से करवा चौथ व्रत नहीं रखती हैं. न ही इस दिन चांद की पूजा होती है और न सोलह श्रृंगार. यह परंपरा एक नई दुल्हन के श्राप के कारण है, जो पति की हत्या के बाद सती हो गई थी. भय और आस्था का यह परंपरा आज भी जारी है.

श्राप के कारण महिलाएं नहीं मनाती करवाचौथ Image Credit:

देश भर में आज करवा चौथ का त्योहार धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस दिन हिंदू विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. महिलाएं रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद ही भोजन ग्रहण करती हैं. इस दिन सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी गांव है, जहां महिलाएं न तो सोलह श्रृंगार करती हैं और न ही करवा चौथ का वर्त रखती हैं.

मथुरा के सुरीर इलाके के रामनगला गांव की यह कहानी है, जहां इस दिन अधिक अंधेरा रहता है. इस गांव में महिलाएं सदियों से करवा चौथ व्रत नहीं रखतीं और न ही सोलह श्रृंगार करती हैं. यह परंपरा एक नई दुल्हन के श्राप के कारण है, जिसके पति की हत्या यहीं हुई थी और वह सती हो गई थी.

पति के सामने सज-धज कर नहीं जाती महिलाएं

सुरीर इलाके का यह गांव विधवा नई दुल्हन के श्राप से ग्रसित है. सैकड़ों साल पहले पति की हत्या के बाद सती हुई पत्नी ने मोहल्ले की महिलाओं को श्राप दिया था कि वे कभी श्रृंगार या करवाचौथ नहीं करेंगी. महिलाएं तब से अपने पति के सामने सज-धज कर नहीं जा सकती है. यह परंपरा भय और आस्था के कारण अब भी जारी है.  

कहा जाता है कि बात सैकड़ों वर्ष पुरानी है, जब नौहझील के गांव रामनगला का एक ब्राह्मण युवक यमुना के पार स्थित ससुराल से अपनी नवविवाहिता पत्नी को विदा कराकर ला रहा था. वह सुरीर के रास्ते भैंसा बुग्गी से लौट रहा था. तभी रास्ते में सुरीर के कुछ लोगों ने बुग्गी में चल कर आ रहे भैंसे को अपना बता कर विवाद शुरू कर दिया.

विधवा नई दुल्हन ने मुहल्ले के लोगों को दिया श्राप

लोगों के मुताबिक, इस विवाद में सुरीर के लोगों के हाथों गांव रामनगला के इस युवक की हत्या हो गई. अपने ही सामने पति की मौत से कुपित होकर नई दुल्हन ने इस मुहल्ले के लोगों को श्राप दे दिया. उसने कहा कि जैसे में अपने पति के शव के साथ सती हो रही हूं, उसी तरह आप में से कोई भी महिला, अपने पति के सामने सज धज कर सोलह श्रृंगार करके नहीं रह सकती.

सती का मन्दिर बनवाकर किया गया था पूजा-पाठ

इसे सती का श्राप कहें या पति की मौत से बिलखती पत्नी के कोप का कहर. ये घटना मोहल्ले पर काल बन कर टूटी और जवान युवकों की मौत होने लगी. तमाम विवाहितायें विधवा हो गईं और मोहल्ले पर मानो आफत की बरसात सी होने लगी. उस समय बुजर्गों ने इसे देखते हुए उस सती का मन्दिर बनवा, और पूजा-पाठ शुरू किया.

कहा जाता है कि बुजर्गों ने ऐसा करने के बाद से गांव में पुरुषों की मौतें कम होने लगी और धीरे-धीरे विवाहितायें सुकून से रहने लगीं. लेकिन इस घटना के बाद से आज तक गांव में किसी ने करवा चौथ नहीं रखा और न ही अपने पति के लिए सोलह श्रृंगार करती हैं. ऐसा करने पर उनके पति का आकस्मिक निधन हो जाता है.