सपा विधायक सुधाकर सिंह का निधन, मुख्तार अंसारी के बेटे के रिसेप्शन से लौटते वक्त बिगड़ी थी तबीयत

विधायक सुधाकर सिंह की तबीयत पिछले कुछ दिनों से खराब चल रही थी. स्वास्थ्य में गंभीर गिरावट आने के बाद उन्हें मंगलवार को इलाज के लिए लखनऊ ले जाया गया था. इलाज के दौरान उनका निधन हो गया.

सुधाकर सिंह

सपा विधायक सुधाकर सिंह का निधन हो गया है. वह मंगलवार यानी 18 नवंबर को दिल्ली से मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी के रिसेप्शन से घर लौट रहे थे. इस दौरान उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. हालत गंभीर होने के चलते घोसी से सपा विधायक सुधाकर को सिंह लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन दो दिन के इलाज के बाद उनका निधन हो गया. सुधाकर सिंह मधुबन विधान सभा से एक बार. घोसी विधान सभा से दो बार विधायक रहे हैं.

विधायक सुधाकर सिंह की तबीयत पिछले कुछ दिनों से खराब चल रही थी. स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के चलते उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था. उनकी उम्र तकरीबन 67 साल थी. उनके निधन से मऊ, घोसी, आजमगढ़ और वाराणसी मंडल में उनके समर्थकों में शोक की लहर दौड़ गई है.

मंत्री दारा सिंह को हराकर चर्चा में आए थे

सुधाकर सिंह का नाम जब भी लिया जाएगा, 2023 का घोसी उपचुनाव जरूर याद आएगा. योगी कैबिनेट के मंत्री दारा सिंह चौहान ने सपा से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा और फिर उसी घोसी सीट पर उपचुनाव लड़ा. पूरी योगी सरकार, प्रशासन और सरकारी मशीनरी दारा सिंह को जिताने में लगी थी. लेकिन सुधाकर सिंह ने अखिलेश यादव के भरोसे और अपनी जनता की ताकत से मुकाबला किया. नतीजा चौंकाने वाला था. सुधाकर सिंह ने दारा सिंह चौहान को 42,820 वोटों के विशाल अंतर से धूल चटाई. घोसी की जनता ने साफ संदेश दे दिया था कि वे अपने “सुधाकर भैया” के साथ हैं.

शेर ए घोसी कहलाते थे सुधाकर सिंह

सुधाकर सिंह की बेबाकी और जनता से सीधे जुड़ाव की वजह से उन्हें पूर्वांचल में शेर-ए-घोसी कहा जाने लगा था. अखिलेश यादव ने उनके निधन पर गहरा दुख जताते हुए कहा कि सुधाकर भाई हमारे परिवार के सदस्य थे. उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती. सपा ने एक योद्धा खो दिया. सुधाकर सिंह का पार्थिव शरीर आज शाम घोसी लाया जाएगा, जहां कल सुबह उनका अंतिम संस्कार होगा.

मुलायम से बगावत, फिर सपा में शानदार वापसी

2017 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने सुधाकर सिंह का टिकट काट दिया था. नाराज सुधाकर ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और सपा के अधिकृत उम्मीदवार को ही हरा दिया. बाद में अखिलेश यादव ने फिर पार्टी में सम्मान के साथ उन्हें वापस लेकर आए.