बुरे दौर में मुरादाबाद का पीतल उद्योग, कई कारखानों में पसरा सन्नाटा, हजारों कारीगरों हुए बेरोजगार

कच्चे माल की कीमतों में रिकॉर्ड इजाफे से मुरादाबाद के पीतल उद्योग के कई कारखानों में सन्नाटा पसरा है. हजारों मजदूर बेरोजगारी की कगार पर हैं. ऐसे में पीतल उद्योग से जुड़े हुए लोग सरकार से मदद की आस लगाए हुए हैं.

मुरादाबाद का पीतल उद्योग सबसे बुरे दौर में

उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद ‘पीतल नगरी’ के नाम से जाना जाता है. यहां का हस्तशिल्प उद्योग इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. दिवाली के बाद से कच्चे माल (सिल्ली) की कीमतों में आई उछाल ने यहां के व्यापार की कमर तोड़ दी है. स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों का कहना है कि जो सिल्ली पहले 500 रुपये प्रति किलो के आसपास उपलब्ध थी. उसके दाम अब 700 के पार पहुंच चुके हैं. इस 200 से 250 की भारी बढ़ोतरी ने उत्पादन को पूरी तरह बाधित कर दिया है. ​

व्यापारी सलमान अतीक और गुलवेज़ आलम के अनुसार, बाजार में अस्थिरता इतनी अधिक है कि सुबह और शाम के रेट में जमीन-आसमान का अंतर आ रहा है. ऐसे में नए ऑर्डर लेना घाटे का सौदा साबित हो रहा है. वहीं, पुराने ऑर्डर्स को पुराने रेट पर पूरा करना व्यापारियों की मजबूरी है. इससे उन्हें लाखों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. ऑनलाइन बाजार से जुड़े मोहम्मद रहबर का कहना है कि वे न तो ग्राहकों को नए रेट दे पा रहे हैं और न ही नई लिस्टिंग कर पा रहे हैं.

दिहाड़ी कारीगरों पर पड़ा सबसे ज्यादा असर

इस अनिश्चितता का सबसे बुरा असर उन दिहाड़ी कारीगरों पर पड़ा है, जिनके घर का चूल्हा पीतल की ढलाई और नक्काशी से जलता था. वर्तमान में मुरादाबाद के कई कारखानों में सन्नाटा पसरा है और हजारों मजदूर बेरोजगारी की कगार पर हैं. पूरा शहर अब सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है कि शायद कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाए.

मुरादाबाद की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित

पीतल उद्योग की वर्तमान स्थिति केवल व्यापारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मुरादाबाद की पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है. व्यापारियों का तर्क है कि मुरादाबाद का हर छोटा-बड़ा व्यापार, चाहे वह कपड़ा हो या जूता, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ब्रास इंडस्ट्री से जुड़ा है.

तांबा (कॉपर) और लेड जैसी धातुओं की कीमतों में दुनिया मे तेजी ने स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग को पूरी तरह ठप कर दिया है. कारीगरों की लेबर भी अब कारखानों तक नहीं पहुंच रहे हैं क्योंकि काम ही उपलब्ध नहीं है. व्यापारियों ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक कच्चे माल की कीमतें स्थिर नहीं हो जातीं, तब तक व्यापार को फिर से पटरी पर लाना असंभव है. यदि यह मंदी लंबी खिंची, तो पीतल नगरी की वैश्विक पहचान और हजारों परिवारों का भविष्य दांव पर लग जाएगा.