बागपत में ब्रोंज एज सभ्यता की नई खोज, मिले 4500 साल पुराने दुर्लभ अवशेष
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में कांस्य युगीन (Bronze Age) सभ्यता की नई खोज हुई है. यहां के एक गांव में 4500 साल पुराने दुर्लभ अवशेष मिले हैं. बागपत में ओसीपी (Ochre Coloured Pottery) संस्कृति का कुआं मिला है. यह प्राचीन मानव बसावट और जल प्रबंधन संरचना का प्रमाण देता है.
देश की राजधानी दिल्ली से महज 40 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश का बागपत जिला एक बार फिर इतिहास और पुरातत्व की सुर्खियों में है. यहां 4500 साल पुराना एक दुर्लभ ओसीपी (Ochre Coloured Pottery) संस्कृति का कुआं मिला है. यह छपरौली क्षेत्र के तिलवाड़ा गांव में एक खेत से मिले हैं. पुरातत्वविद् इस पर विस्तृत शोध की तैयारी कर रहे हैं.
सूत्रों के अनुसार तिलवाड़ा गांव के किसान दुरजा के खेत में मिट्टी समतलीकरण के दौरान बड़ी आकार की ईंटें और प्राचीन मृदभांड (मिट्टी के पात्र) मिले है. संरचना को गहराई से देखने पर यह सामान्य दीवार नहीं बल्कि एक सुविकसित प्राचीन कुआं प्रतीत हुआ. जब इतिहासकारों द्वारा इसका सर्वेक्षण किया गया तो पता चला कि यह करीब 4500 साल पुराना है.
इससे पहले कुषाण काल का कुआं मिला था
शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक और इतिहासकार डॉ. अमित राय जैन ने रविवार को स्थल का प्रारंभिक सर्वेक्षण किया. उनके अनुसार यह कुआं करीब 4500 वर्ष पुराना है और ओसीपी संस्कृति का दुर्लभ और अत्यंत महत्त्वपूर्ण अवशेष है. उन्होंने बताया कि अब तक बागपत में इस संस्कृति के चिह्न तो मिले थे, लेकिन ओसीपी काल का कुआं पहली बार मिला है.
उन्होंने बताया कि यह बागपत जिले के प्राचीन मानव बसावट, जल प्रबंधन और सामाजिक संरचना का प्रमाण देता है. इससे पहले जिले के बामनौली क्षेत्र से कुषाण काल (लगभग 1800 से 2000 वर्ष पुराना) का कुआं मिला था, लेकिन तिलवाड़ा का यह कुआं उससे दोगुना प्राचीन माना जा रहा है. यह संकेत है कि यहां एक समय उन्नत कृषि और जल संरचना होगी.
प्राचीन बसावट या ग्राम-नगरीय केंद्र रहा होगा
सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त गेरुआ रंग के छिद्रयुक्त बर्तन, काले पैटर्न वाली मिट्टी की हांडियां और सामान्य ईंटों से कहीं बड़ी आकार की पकी ईंटें मिले हैं, जिसने यहां की सभ्यता को उजागर किया है. ओसीपी संस्कृति अक्सर उत्तर हड़प्पा और प्रारंभिक वैदिक काल के बीच का सांस्कृतिक पुल कहलाई जाती है. ऐसे में यह खोज बागपत को नई पहचान दिला सकती है.
यह कुआं, मानव निवास, धार्मिक जीवन और स्थानीय समुदाय की संरचना को समझने में नई दिशा देगा. इतिहासकारों का मानना है कि तिलवाड़ा क्षेत्र केवल एक गांव भर न होकर संभवतः एक प्राचीन बसावट या ग्राम-नगरीय केंद्र रहा होगा, जहां सामाजिक रूप से संगठित जीवन, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और कारीगरी का विकास मौजूद था.
खेत की जुताई और मिट्टी हटाने का काम रोका
खेत से लगातार मिट्टी उठान से इस धरोहर को नुकसान पहुंचने की आशंका बनी हुई थी. हालांकि किसान ने पुरातत्व विभाग के निर्देश पर खेत की जुताई और मिट्टी हटाने का कार्य रोक दिया है. डॉ. अमित राय जैन ने बताया कि स्थल की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जा रही है, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के महानिदेशक डॉ. युद्धवीर सिंह को सौंपा जाएगा.