सहारनपुर रामलीला की शान है ‘चंचल’ हथिनी, भगवान राम-सीता को कराती है नगर भ्रमण

सहारनपुर रामलीला की असली शान यहां की चंचल हथिनी है. विजयदशमी के मौके पर जब वह सज-धज कर निकलती है तो उससे हजारों लोग उससे आकर्षित हो जाते हैं. इस दौरान जुलूस में लोग उसके साथ फोटो खिंचवाते हैं और चंचल हथिनी भी प्यार से सबपर प्यार लुटाती है.

चंचल हथिनी

उत्तर भारत में हर साल दशहरा से पहले रामलीला का आयोजन किया जाता है. उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है. यहां के सहारनपुर में होने वाली रामलीला भी बहुत मशहूर है. इसे प्राचीन रामलीलाओं में से एक माना जाता है. विजयदशमी के अवसर पर यहां भव्य शोभायात्रा निकलती है. इस दौरान भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण और रावण नगर भ्रमण करते हैं. लेकिन रामलीला की असली पहचान चंचल नाम की हथिनी है.

भगवान श्रीराम और माता सीता की सवारी के रूप में चंचल जब सज-धज कर निकलती है तो उस हजारों लोग उससे आकर्षित हो जाते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि सहारनपुर की रामलीला, चंचल हथिनी के बिना अधूरी है. चंचल के बिना सब खाली-खाली सा लगता है.

सहारनपुर रामलीला की शान हैं चंचल हथिनी

चंचल के महावत नदीम अमरोहा के रहने वाले हैं. उनका परिवार कई पीढ़ियों से हाथी पालने का काम करता आ रहा है. धार्मिक आयोजनों से लेकर शादियों तक में वे शामिल होते आ रहे हैं. नदीम कहते हैं कि पहले उनके पास ‘लक्की’ नाम की हथिनी थी. उसके जाने के बाद चंचल हमारे परिवार का हिस्सा बनी. अब चंचल ही हमारे घर की जान और सहारनपुर रामलीला की शान है.

चंचल के भोजन पर रोजाना आता है इतना खर्च

चंचल की उम्र 45 साल की हो चुकी है. लेकिन वह अब भी उतनी ही फुर्तीली और आकर्षक है जितना किसी युवा हथिनी को होना चाहिए. उसकी देखभाल में काफी खर्च आता है. रोजाना उसके खाने में चारी, बाजरा, गन्ना, धान और गेहूं शामिल होता है. नदीम के मुताबिक हर दिन चंचल के भोजन पर लगभग एक हजार रुपए का खर्च आता है.

चंचल को बच्चे की तरह मानते हैं नदीम

नदीम बताते हैं कि वह और उनके तीन साथी मिलकर चंचल की देखभाल करते हैं. शोभायात्राओं और कार्यक्रमों में शामिल होकर उन्हें रोजाना दो से तीन हजार रुपए तक की मजदूरी मिल जाती है. हालांकि, नदीम इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि कमाई तो अलग चीज है. चंचल से हमारा रिश्ता भावनात्मक है. हम चंचल को अपने बच्चे की तरह मानते हैं. अगर हम कुछ देर के लिए उसकी आंखों से ओझल हो जाएं तो वह बेचैन हो जाती है.

नदीम ने बताई चंचल की विशेष खासियत

नदीम कहते हैं कि चंचल की सबसे बड़ी खासियत उसका स्वभाव है. वह कभी गुस्सा नहीं करती है. भीड़भाड़ वाले माहौल में भी वह पूरी तरह से शांत रहती है. जुलूस में लोग उसके साथ फोटो खिंचवाते हैं, बच्चे उसे फल और गुड़ खिलाते हैं. चंचल सबके साथ सहजता से पेश आती है.