बाहुबली सोनू-मोनू सिंह के पिता इंद्रभद्र सिंह की कहानी, जिनकी बम मारकर की गई थी हत्या
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर की सियासत में पूर्व विधायक इंद्रभद्र सिंह की प्रतिमा को लेकर चर्चाओं का दौर है. इलाके में दबदबा रखने वाले इंद्रभद्र की बम मारकर हत्या कर दी गई थी. इनके हत्या के पीछे की क्या कहानी थी, इसके बारे में जानते हैं.

उत्तर प्रदेश का सुल्तानपुर जिला इनदिनों एक मामले को लेकर काफी चर्चा में है. मामला है जिले के इसौली विधानसभा सीट से पूर्व विधायक चंद्रभद्र सिंह सोनू का. विधायक के दिवंगत पूर्व विधायक पिता इन्द्रभद्र सिंह की हलियापुर-बेलवाई मार्ग पर स्थित धनपतगंज चौराहे पर सड़क किनारे लगी प्रतिमा को हटाए जाने के लिए स्थानीय भाजपा विधायक पूर्व मंत्री विनोद सिंह द्वारा डीएम को लिखे गए पत्र पर छिड़ी सियासी रार का है.
कौन थे इन्द्रभद्र और क्यों हुई थी इनकी हत्या?
पुरानी इसौली और नई सुल्तानपुर विधानसभा क्षेत्र मायंग गांव में बाबू शारदा सिंह के पुत्र इन्द्रभद्र सिंह अपने दौर के बॉलीबाल खेल के खिलाड़ी हुआ करते थे. इनके खेल के आधार पर इन्हें जिले के कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान कालेज में खेल शिक्षक नियुक्त किया गया. शिक्षक रहने के साथ ही इन्द्रभद्र सिंह जिले के इसौली सीट से 1989 में जनता दल से और फिर 1993 में निर्दलीय चुनाव लड़कर विधायक बने थे.
उनकी गिनती क्षेत्र में अच्छे नेताओं में होती थी. पुराने लोगों बताते हैं कि स्थानीय लोगों की समस्याओं का पुलिंदा लिए इन्द्रभद्र,उसको निपटाने के लिए वह हर कोर कसर करते थे, जिससे लोगों की समस्या का समाधान हो जाए. वह इलाके की जनता से लेकर सत्ता के गलियारों तक दखल रखते थे.
आश्रम की जमीन को लेकर हुआ विवाद
इस दौरान इन्द्रभद्र के गांव मायंग के बगल स्थित मझवारा गांव में बाराबंकी के रहने वाले सदानंद तिवारी उर्फ संत ज्ञानेश्वर ने आकर वहां अपना एक आश्रम बना लिया. आश्रम का विस्तार करने के लिए उसी मझवारा गांव के रहने वाले रामजस यादव की जमीन को संत ज्ञानेश्वर लेना चाहता था. रामजस ने जब अपनी जमीन देने के लिए संत ज्ञानेश्वर का विरोध किया तो थोड़े दिन बाद रामजस की हत्या हो गयी.
रामजस की हत्या का आरोप संत ज्ञानेश्वर व उसके शिष्यों पर लगा. रामजस की हत्या से गांववालों में गुस्सा था. आक्रोशित गांववालों ने वहां बने संत ज्ञानेश्वर के आश्रम को तहस-नहस कर उखाड़ फेंका था. संत ज्ञानेश्वर और उसके समर्थकों ने उसकी वजह इन्द्रभद्र को माना और दुश्मनी साध ली.
फिर 21 जनवरी 1999 को जिला मुख्यालय स्थित दीवानी न्यायालय के बाहर अचानक इन्द्रभद्र सिंह की बम से मारकर हत्या हो गयी. वहां मौजूद लोगों ने जिस हमलावर को मौके से पकड़ा,उसकी पहचान चंदौली जिले के रहने वाले दीनानाथ यादव के रूप में हुई. दीनानाथ यादव ने पुलिसिया जांच पड़ताल में वारदात के पीछे सदानंद तिवारी उर्फ संत ज्ञानेशर का नाम बताया और इस वारदात में 5 लोग नामजद हुए. कोर्ट ने बाद में दीनानाथ यादव को आजीवन सजा सुना दी.
साल 2006 में संत ज्ञानेशर की हुई थी हत्या
इंद्रभद्र सिंह की हत्या के पहले संत ज्ञानेश्वर का नाम उससे सन 1983 में गोपालगंज के डीएम के मर्डर में भी सामने आया था. इसमें उसे सजा माफी मिल गई थी. 2006 में प्रयागराज माघ मेले से बाराबंकी लौटते समय हंडिया थाना क्षेत्र में संत ज्ञानेश्वर के काफिले पर हमला हुआ और अंधाधुंध गोलियां चलीं. संत ज्ञानेश्वर समेत गाड़ी में सवार 8 लोगों की ताबड़तोड़ गोलियां मारकर हत्या कर दी गयी थी. संत ज्ञानेश्वर की हत्या, इन्द्रभद्र की हत्या का बदला माना गया और उसमें चंद्रभद्र सिंह सोनू और यशभद्र सिंह मोनू पर संत ज्ञानेश्वर की हत्या का आरोप लगा.
जिसका मुकदमा चला,मुकदमा ट्रायल पर आया तो कोर्ट ने सबूत और गवाहों के न होने के कारण साल 2009 में सोनू मोनू को बरी कर दिया था. संत ज्ञानेश्वर के भाई इंद्रदेव तिवारी ने इस मामले में लोवर कोर्ट से सोनू मोनू को मिली राहत के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट लखनऊ में अपील दाखिल की. वहां भी मुकदमा चला और कोर्ट ने वर्ष 2012 में सोनू मोनू को बरी कर दिया. संत ज्ञानेश्वर के भाई ने फिर से हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की,पुनः सोनू मोनू को 2019 में बरी कर दिया गया.
साल 2013 में 11 अप्रैल को पूर्वांचल का कुख्यात माफिया प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी सुल्तानपुर जेल में शिफ्ट किया गया था. उस दौरान खबरें निकाल कर आई थीं कि पूर्व मंत्री व स्थानीय भाजपा विधायक विनोद सिंह, मुन्ना बजरंगी से मिलने सुल्तानपुर जेल गए और 5 करोड रुपए में उन्होंने मोनू सिंह की हत्या करवाने की सुपारी दी थी. मोनू सिंह इसका आरोप विनोद सिंह पर खुलेआम लगाते हैं.
पंचायत चुनाव में भारी पड़ेंगे सोनू-मोनू
आगामी पंचायत चुनाव में अगर देखा जाए तो भाजपा विधायक विनोद सिंह के सामने सोनू-मोनू भारी पड़ेंगे क्योंकि मोनू दो बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ चुके हैं. ये ब्लॉक प्रमुख भी रहे हैं और चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू साल 2019 में सपा बसपा गठबंधन से मेनका गांधी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा था. महज कुछ हजार वोटों के अंतर से चुनाव हारे थे लिहाजा सोनू-मोनू को पूरे लोकसभा क्षेत्र में आने वाले हर क्षेत्र के नफ़्ज के बारे में जानकारी है अगर शासन सत्ता का प्रभाव दबाव नहीं रहा और पंचायत चुनाव साफ-सुथरा तरीके से रहा तो इसमें कोई दो राय नहीं है की सोनू-मोनू या उनके लोग पंचायत चुनाव में भारी रहेंगे.