एक लाश की कीमत 1.5 लाख रुपये! लावारिस लाशों का करते सौदा, स्टिंग ऑपरेशन से खुलासा

उत्तर प्रदेश के बरेली में लावारिश लाशों का सौदा किया जा रहा था. एक मीडिया हाउस के स्टिंग ऑपरेशन के बाद इस घिनौने कारनामें का खुलासा हुआ, जहां पैसो की लालच में सिपाही और पोस्टमार्टम हाउस के एक कर्मचारी की मदद से इस काम को अंजाम दिया जा रहा था.

पोस्ट मार्टम हाउस बरेली

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में लावारिश लाशों का सौदा करने के सनसनीखेज खुलासे ने जिले के स्वास्थ्य और पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. एक वायरल ऑडियो-वीडियो के बाद कोतवाली में तैनात सिपाही नरेंद्र प्रताप को एसएसपी अनुराग आर्य ने निलंबित कर दिया है. वहीं जिला अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस में ठेका एजेंसी का कर्मचारी का नाम सुनील है, जो इस गोरखधंधे में सक्रिय पाया गया है. उसे सीएमओ ने हटा दिया है. अब इस पूरे मामले की जांच संयुक्त टीम करेगी.

एक मीडिया संस्थान के स्टिंग ऑपरेशन से खुला राज

पूरा खुलासा एक मीडिया संस्थान के स्टिंग ऑपरेशन के बाद इस गोरखधंधे का भंडाफोड़ हुआ. वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है कि पोस्टमार्टम हाउस से लावारिश लाशों को मेडिकल कॉलेजों और दूसरे जगहों पर बेचने की डील कैसे होती थी. सौदेबाजी में सुनील खुलकर बात करता दिखा, वहीं सिपाही नरेंद्र प्रताप न सिर्फ सहयोग करता बल्कि इंस्पेक्टर तक को साधने की बात करता नज़र आया.

जानिए कैसे होता था सौदा

आरोप है कि सुनील और सिपाही नरेंद्र प्रताप की मिलीभगत से लावारिश लाशों को 40 हजार से डेढ़ लाख रुपये तक के सौदे में मेडिकल कॉलेज वालों को दिया जाता था. यह लाशें एनाटॉमी विभागों में पढ़ाई और प्रैक्टिकल के लिए इस्तेमाल होती थीं. नियमानुसार, किसी भी लावारिश शव का 72 घंटे में पोस्टमार्टम करके अंतिम संस्कार कर दिया जाना चाहिए, लेकिन यहां शवों को छिपाकर बेचा जा रहा था.

इतना ही नहीं, कागजों में फर्जीवाड़ा करके इन शवों का अंतिम संस्कार दिखाया जाता और सरकार से मिलने वाला अनुदान भी हड़प लिया जाता था. यानी एक ही लाश पर दोहरा खेल चल रहा था. एक तरफ उसे बेचकर लाखों की कमाई और दूसरी तरफ सरकारी अनुदान की लूट.

एसएसपी और सीएमओ की कार्रवाई

जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, जिला प्रशासन और पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. एसएसपी अनुराग आर्य ने सिपाही नरेंद्र प्रताप को निलंबित कर दिया. सीएमओ ने ठेका एजेंसी के कर्मचारी सुनील को हटा दिया है. एसएसपी ने इस मामले को बेहद गंभीर मानते हुए डीएम से बात की और जांच के लिए संयुक्त टीम गठित करने की संस्तुति की.

अब संयुक्त टीम करेगी जांच

जांच के लिए बनाई गई टीम में पुलिस विभाग से एसपी सिटी मानुष पारीक और सीओ एलआईयू शामिल किए गए हैं. स्वास्थ्य विभाग से डिप्टी सीएमओ को टीम में नामित किया गया है. यह टीम पूरे प्रकरण की तह तक जाकर रिपोर्ट देगी.

जानिए कैसे नियमों की अनदेखी?

सरकारी नियम के मुताबिक, किसी भी लावारिश शव का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए. 72 घंटे तक शव को पहचान के लिए रखा जाता है, इसके बाद पुलिस की निगरानी में उसका दाह संस्कार या दफनाया जाता है. लेकिन, बरेली में यह नियम सिर्फ कागजों तक सीमित रह गया. हकीकत यह था कि शवों का सौदा करके न केवल कानून का मखौल उड़ाया जा रहा था, बल्कि मानवता को भी शर्मसार किया जा रहा था.

क्यों गंभीर है मामला?

मेडिकल कॉलेजों को अध्ययन के लिए शवों की जरूरत होती है, लेकिन उनकी आपूर्ति का कानूनी तरीका होता है. दान किए गए शवों को ही प्रयोग में लाया जा सकता है. ऐसे में लावारिश लाशों की खरीद-फरोख्त सीधा कानून उल्लंघन है. इससे न केवल मृतकों के अधिकारों का हनन हुआ, बल्कि पूरे सिस्टम की साख पर भी बट्टा लगा.

जिम्मेदारी पर सवाल

इस मामले ने प्रशासन की जिम्मेदारी पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. पोस्टमार्टम हाउस में रोजाना दर्जनों शव आते हैं. उनकी निगरानी और रिकॉर्ड रखने का जिम्मा पुलिस और स्वास्थ्य विभाग का होता है. ऐसे में सवाल उठता है कि लंबे समय से चल रहे इस गोरखधंधे की भनक अफसरों को क्यों नहीं लगी क्या इसमें ऊपरी स्तर की मिलीभगत भी थी.

जांच की जा रही है

फिलहाल, जांच टीम को तय समय सीमा में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं. रिपोर्ट आने के बाद और भी अधिकारियों व कर्मचारियों पर गाज गिर सकती है. यह पहला मौका है जब बरेली में लावारिश शवों का सौदा इतने बड़े स्तर पर पकड़ा गया है. स्टिंग ऑपरेशन के बाद हुई कार्रवाई ने भले ही तत्काल दोषियों पर शिकंजा कसा हो, लेकिन इसने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है.