यूपी SIR: शहरी वोटर लिस्ट सिमटी, गांव की ओर बढ़ा मतदाताओं का झुकाव; 2.45 करोड़ फॉर्म अभी भी गायब

उत्तर प्रदेश में SIR प्रक्रिया 31 दिसंबर तक बढ़ा दी गई है. प्रदेश में अब तक 17.7% SIR फॉर्म (लगभग 2.45 करोड़) जमा ही नहीं हुए हैं. आंकड़ों के मुताबिक, सबसे खराब हालत शहरी इलाकों की है. शहरी मतदाता गांव में वोट बरकरार रख रहे हैं, जिससे बीजेपी के शहरी गढ़ों को बड़ा नुकसान हो सकता है.

यूपी में 2.45 करोड़ फॉर्म अभी भी गायब

निर्वाचन आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया है. जो अभियान शुरू में फर्जी वोटर और घुसपैठियों को हटाने के नाम पर शुरू हुआ था, वह अब बीजेपी के लिए सबसे बड़ा सियासी संकट बनता दिख रहा है. वजह चौंकाने वाली है. बीजेपी का पूरा फोकस अब शहरी क्षेत्रों मे है.

इसकी कमान मुख्यमंत्री और दोनी डिप्टी CM के साथ पूरी सरकार संभाल ली है. संगठन से बीजेपी अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष तक लगाए गए हैं. जानकारी के अनुसार, शहरी मतदाता अपना वोट गांव में ही रखना चाहते हैं. जिससे लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद, नोएडा, वाराणसी, आगरा, मेरठ जैसे बड़े शहरी केंद्रों की मतदाता सूची सिमटने लगी है.

2.45 करोड़ फॉर्म गायब, शहरों में सबसे खराब रिस्पॉन्स

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में अब तक 17.7% SIR फॉर्म (लगभग 2.45 करोड़) जमा ही नहीं हुए हैं. सबसे खराब हालत शहरी इलाकों की है. लखनऊ में करीब 2.2 लाख वोटर, प्रयागराज 2.4 लाख, गाजियाबाद 1.6 लाख, सहारनपुर 1.4 लाख, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, कानपुर, आगरा और मेरठ में भी एक से 1.5 लाख तक की कटौती तय मानी जा रही है.

शहर छोड़ो, वोट गांव में रखो; नई रणनीति क्यों?

निर्वाचन आयोग ने दबाव में आकर अंतिम तारीख 31 दिसंबर तक बढ़ा दी है, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि लोग फॉर्म भरकर लौटा ही नहीं रहे हैं. जो लोग 10-15-20 साल से शहरों में रह रहे हैं, वे भी जानबूझकर SIR फॉर्म नहीं भर रहे. वजहें साफ हैं… पुश्तैनी जमीन-जायदाद गांव में है, भविष्य में विवाद न हो. पंचायत चुनाव में हर परिवार का सीधा हित जुड़ा है.

शहर में किराए का मकान, नौकरी अनिश्चित और “स्थायी पता” गांव ही दिखाना सुरक्षित. गांव में वोट रहेगा तो सरकारी योजनाओं, जाति-प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र में आसानी से बनेगें. कई लोग तो दो-तीन जगह वोट रखे हुए थे. अब एक ही रखना है तो गांव को चुना. SIR ने साबित कर दिया कि मतदाता का दिल अभी भी गांव में बसता है.

‘लोग जानबूझकर फॉर्म नहीं भर रहे, यह नई समस्या’

बड़े पैमाने पर पलायन भी कारण इसका एक कारण माना जा रहा है. गांव से शहर, यूपी से दिल्ली-मुंबई-पुणे तक लाखों लोग
बस गए. मृतकों के नामों में दो दशक में अप्राकृतिक वृद्धि हुई थी. फर्जी वोटर की पहली बार इतने बड़े स्तर पर सफाई हुई. लेकिन सबसे बड़ा ट्विस्ट ये आया कि सफाई के साथ-साथ “शहरी मतदाता का ग्रामीणकरण” भी हो गया.

यही वजह है कि SIR डेडलाइन बढ़ाया गया. कुल 2.45 करोड़ नाम एक झटके में कटे तो बवाल तय है. इसलिए निर्वाचन आयोग ने समयसीमा बढ़ाई, कैंप लगवाए, SMS-कॉल किए जा रहे हैं. आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘हम नहीं चाहते कि कोई वास्तविक मतदाता छूटे. लेकिन लोग जानबूझकर फॉर्म नहीं भर रहे, यह नई समस्या है.’

SIR 2027 चुनाव का सबसे बड़ा गेम-चेंजर बनेगा?

शहरी मध्य वर्ग बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है. लखनऊ की 9, कानपुर की 6, गाजियाबाद-नोएडा की 7, वाराणसी-आगरा आदि हमेशा से बीजेपी का गढ़ रही हैं. लेकिन अगर 1-2 लाख वोट भी कम हो गए तो मार्जिन 10-15 हजार तक सिमट जाएगा. बीजेपी के लिए सवर्ण, वैश्य, मध्य वर्ग का जो ठोस वोट बैंक था, वह कम हो सकता है.

राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह SIR 2027 विधानसभा का सबसे बड़ा गेम-चेंजर बनेगा. शहरों में बीजेपी का जो अजेय किला था, उसकी नींव हिल गई है. वहीं ग्रामीण सीटों पर वोटर लिस्ट और फूल हो जाएगी, जहां पहले से ही सपा-कांग्रेस मजबूत स्थिति में हैं. अब सवाल है क्या बीजेपी अगले 20 दिनों में लाखों शहरी मतदाताओं को फॉर्म भरने के लिए मना पाएगी?